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आधुनिक भोजपुरी सिनेमा: वर्तमान परिदृश्य, चुनौतियाँ और भविष्य की राह
भारतीय सिनेमा का विशाल और विविध परिदृश्य विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्मों से समृद्ध है, और इनमें से एक महत्वपूर्ण हिस्सा है भोजपुरी सिनेमा। इसे अक्सर 'भोजपुरीवुड' या 'भोजवुड' के नाम से भी जाना जाता है, जो मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा के दर्शकों के लिए फिल्मों का निर्माण करता है । हाल के वर्षों में, इस उद्योग ने उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान और ग्रामीण जीवन से गहरे जुड़ाव के कारण यह दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बना चुका है ।
वर्तमान में, भोजपुरी फिल्म उद्योग लगभग ₹2000 करोड़ का एक अनुमानित उद्योग बन चुका है । 2022 में, कुल 186 फीचर फिल्में (थिएट्रिकल) निर्मित की गईं, और उद्योग प्रति वर्ष 100 से अधिक फिल्में बनाता है । इसके प्रमुख उत्पादन केंद्र पटना और लखनऊ में स्थित हैं।
इस उद्योग की पहुंच भारत की सीमाओं से कहीं आगे है। यह उन दूसरी और तीसरी पीढ़ी के प्रवासियों के बीच भी गूंजता है जो अभी भी गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भोजपुरी भाषा बोलते हैं । कैरिबियन, ओशिनिया और उत्तरी अमेरिका में लाखों लोग भोजपुरी को अपनी मूल या दूसरी भाषा के रूप में बोलते हैं । यह विस्तार दर्शाता है कि भोजपुरी सिनेमा केवल एक क्षेत्रीय उद्योग नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक सेतु है जो प्रवासियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है। यह "माटी की महक" को सीमाओं के पार ले जाता है, स्थानीय और वैश्विक तत्वों के बीच एक अनूठा तालमेल बिठाता है।
इतिहास के पन्नों से: कल और आज का भोजपुरी सिनेमा
भोजपुरी सिनेमा का सफर 1963 में पहली बोलती फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो' की रिलीज के साथ शुरू हुआ। बिस्वनाथ प्रसाद शाहबादी और जय नारायण लाल द्वारा निर्मित और कुंदन कुमार द्वारा निर्देशित यह फिल्म पूर्व राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद के अनुरोध पर रिलीज हुई थी, जिसने इस उद्योग की नींव रखी । शुरुआती वर्षों में, 1960 और 1970 के दशक में, भोजपुरी फिल्मों का निर्माण आमतौर पर कम होता था, हालांकि 'बिदेसिया' (1963) और 'गंगा' (1965) जैसी कुछ फिल्में लाभदायक और लोकप्रिय रहीं । इस दौर में, भोजपुरी सिनेमा मुख्य रूप से पौराणिक और ऐतिहासिक विषयों पर केंद्रित था, जो क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से प्रेरणा लेता था। 'नईहर भाऊजी' (1965) और 'लागी नाही छूटे राम' (1966) जैसी फिल्मों ने पारंपरिक लोककथाओं और किंवदंतियों के चित्रण से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया ।
1980 के दशक में भोजपुरी सिनेमा में उत्पादन और व्यावसायिक सफलता में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई, लेकिन असली पुनरुत्थान 2004 में 'ससुरा बड़ा पैसावाला' की रिलीज के साथ हुआ । इस फिल्म ने मनोज तिवारी को व्यापक दर्शकों के सामने पेश किया, और यह बेहद कम बजट (लगभग $65,000) में बनी होने के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर $3 मिलियन से अधिक की कमाई की, जो इसकी उत्पादन लागत का दस गुना से भी अधिक था । इस सफलता ने भोजपुरी सिनेमा की दृश्यता में नाटकीय वृद्धि की, और उद्योग अब एक पुरस्कार समारोह और एक व्यापार पत्रिका, 'भोजपुरी सिटी' का समर्थन करता है । अमिताभ बच्चन और मिथुन चक्रवर्ती जैसे मुख्यधारा के बॉलीवुड सितारों ने भी भोजपुरी फिल्मों में काम किया है , जिसमें मिथुन चक्रवर्ती की 'भोले शंकर' (2008) को अब तक की सबसे बड़ी भोजपुरी हिट माना जाता है ।
समय के साथ, भोजपुरी सिनेमा में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। पहले यह पारिवारिक नाटकों, साफ-सुथरे संवादों और सदाबहार धुनों के लिए जाना जाता था । हालांकि, हाल के वर्षों में, प्रस्तुतियों में सुसंगत कहानियों की कमी, स्थानीय बारीकियों को पकड़ने में विफलता और समग्र गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है, जिससे अश्लीलता, अभद्रता, उत्तेजक दृश्यों और अनावश्यक हिंसा को बढ़ावा मिला है । इस 'अश्लील' झुकाव के कारण उद्योग और भाषा दोनों के प्रति एक गहरी कलंक पैदा हो गई है, जिससे यह अनुचित धारणा बनी है कि 'भोजपुरीवुड' अपरिष्कृत वर्गों को पूरा करता है, और इसके निवासियों द्वारा इसे अस्वीकार किया जा रहा है । रवि किशन जैसे अनुभवी अभिनेता भी इस बदलाव से नाखुश हैं और महसूस करते हैं कि "जूनियर्स ने भोजपुरी सिनेमा की प्रतिष्ठा खराब कर दी है" ।
भोजपुरी सिनेमा का "कम बजट, उच्च लाभ" मॉडल एक दोधारी तलवार साबित हुआ है। 'ससुरा बड़ा पैसावाला' जैसी फिल्मों की कम बजट में भारी सफलता ने उद्योग में निवेश और उत्पादन में तेजी लाई । यह आर्थिक सफलता "फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटरों" को आकर्षित करती है। हालांकि, इसी तेजी से बढ़ते उत्पादन के साथ, त्वरित लाभ की तलाश में सामग्री की गुणवत्ता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता से समझौता किया गया, जिससे अश्लीलता की प्रवृत्ति बढ़ी है । यह दर्शाता है कि आर्थिक प्रोत्साहन हमेशा कलात्मक उत्कृष्टता के साथ संरेखित नहीं होते हैं। सामग्री में आए इस बदलाव ने भोजपुरी सिनेमा को एक पहचान के संकट में डाल दिया है। यह अपने मूल दर्शकों से भी दूरी बना रहा है, जो अपनी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हैं । यह सिर्फ फिल्मों की गुणवत्ता का मुद्दा नहीं है, बल्कि भोजपुरी भाषी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और आत्म-सम्मान का भी मुद्दा है, क्योंकि सिनेमा अक्सर समाज का दर्पण होता है।
भोजपुरी फिल्मों की कहानियाँ: माटी की महक और बदलते विषय
भोजपुरी फिल्में अपनी कहानियों के माध्यम से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक आत्मा को दर्शाती हैं। ये कहानियाँ अक्सर ग्रामीण जीवन, पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। भोजपुरी सिनेमा ग्रामीण आबादी को लक्षित करता है और अक्सर सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर केंद्रित होता है, जिसमें रोमांस, कॉमेडी और एक्शन के तत्व शामिल होते हैं । फिल्में अक्सर वास्तविक जीवन की स्थितियों पर आधारित होती हैं और उनमें चित्रित भावनाएं बहुत प्रासंगिक होती हैं उदाहरण के लिए, 'देवरा बड़ा सतावेला' में एक पिता अपनी तीन बेटियों की शादी की व्यवस्था करता है । 'ससुरा बड़ा पैसावाला' एक युवा महिला की कहानी बताती है जो अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपने प्यार से शादी करती है, जो उसे स्वतंत्र और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला दिखाती है ।
संगीत भोजपुरी फिल्मों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है । यह भावनात्मक गहराई और नाटक जोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है । भोजपुरी लोक संगीत और नृत्य उद्योग की एक विशिष्ट विशेषता है । भोजपुरी गाने अपनी ऊर्जा और आकर्षक लय के लिए जाने जाते हैं, जो अक्सर सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सवों के साथ होते हैं ।
कुछ फिल्म निर्माता सनसनीखेजता को गुणवत्ता वाली सामग्री पर प्राथमिकता देते हुए अश्लील भाषा, उत्तेजक दृश्यों और अश्लील हास्य का उपयोग करते हैं । इसके बावजूद, कुछ फिल्म निर्माता प्रयोगात्मक कहानी कहने और विषयगत विविधता में रुचि दिखा रहे हैं । मनोज तिवारी का कहना है कि वेब सीरीज 'मिर्जापुर' या 'महारानी' जैसी कहानियां भोजपुरी क्षेत्र की हैं, और अगर सिनेमा ऐसी कहानियों का समर्थन करना शुरू कर दे, तो यह दक्षिण भारतीय सिनेमा से प्रतिस्पर्धा कर सकता है ।
भोजपुरी सिनेमा की मूल अपील इसकी ग्रामीण जड़ों, वास्तविक जीवन की कहानियों और स्थानीय संस्कृति से जुड़ाव में निहित थी । हालांकि, शहरीकरण और प्रवासी दर्शकों के विस्तार के साथ, उद्योग ने व्यापक व्यावसायिक अपील के लिए अपनी सामग्री को समायोजित किया है, जिससे अक्सर "मासला मनोरंजन" और उत्तेजक सामग्री पर जोर दिया गया है । यह उद्योग अपनी मूल "माटी की महक" और ग्रामीण प्रामाणिकता को बनाए रखने और शहरी दर्शकों की बदलती मांगों और व्यावसायिक दबावों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह संघर्ष सामग्री की गुणवत्ता और उद्योग की प्रतिष्ठा में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
सितारे और कलाकार: भोजपुरी सिनेमा के चमकते चेहरे
भोजपुरी सिनेमा में कई प्रतिभाशाली कलाकार हैं जिन्होंने उद्योग के विकास में योगदान दिया है। इन सितारों ने अपनी क्षेत्रीय जड़ों और दर्शकों के साथ सीधे जुड़ाव के कारण अपार लोकप्रियता हासिल की है।
प्रमुख अभिनेता:
रवि किशन : 200 से अधिक भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाले एक प्रसिद्ध अभिनेता, जिन्होंने बॉलीवुड में भी काम किया है ।
दिनेश लाल यादव (निरहुआ): भोजपुरी फिल्म उद्योग के सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक, जिन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया है । उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री आम्रपाली दुबे के साथ सबसे ज्यादा पसंद की जाती है ।
खेसारी लाल यादव : एक लोकप्रिय अभिनेता और गायक, जिन्होंने 50 से अधिक भोजपुरी फिल्मों में काम किया है । वह प्रति फिल्म ₹50-60 लाख चार्ज करते हैं ।
पवन सिंह : एक प्रसिद्ध अभिनेता और गायक, जिन्होंने 50 से अधिक भोजपुरी फिल्मों में काम किया है । वह प्रति फिल्म ₹55-65 लाख चार्ज करते हैं ।आम्रपाली दुबे : भोजपुरी सिनेमा की सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्रियों में से एक, जो प्रति फिल्म ₹30-35 लाख चार्ज करती हैं । उनकी दिनेश लाल यादव के साथ ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री बहुत पसंद की जाती है ।
प्रमुख अभिनेत्रियाँ:
रानी चटर्जी : एक दशक से अधिक समय से काम कर रही हैं और प्रति फिल्म ₹25-30 लाख कमाती हैं ।
अक्षरा सिंह: भोजपुरी फिल्म उद्योग में सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्रियों में से एक, जो प्रति फिल्म ₹12-18 लाख चार्ज करती हैं । उन्होंने 50 से अधिक फिल्मों में काम किया है और एक गायिका के रूप में भी एल्बम जारी किए हैं ।
मोनालिसा: बिग बॉस 10 से लोकप्रिय हुईं, भोजपुरी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं और अब टीवी में भी सक्रिय हैं। वह प्रति प्रोजेक्ट ₹35-40 लाख चार्ज करती हैं ।
काजल राघवानी: प्रति फिल्म ₹28-30 लाख चार्ज करती हैं । खेसारी लाल यादव के साथ उनकी ऑन-स्क्रीन जोड़ी दर्शकों द्वारा पसंद की जाती है ।
अंजना सिंह: 2012 में डेब्यू किया और प्रति फिल्म ₹15-20 लाख चार्ज करती हैं । उन्हें उद्योग की 'लेडी रजनीकांत' के नाम से भी जाना जाता है ।
पक्खी हेगड़े, निधि झा, शुभी शर्मा, मधु शर्मा, स्मृति सिन्हा, यामिनी सिंह भी प्रमुख अभिनेत्रियों में से हैं ।
इन अभिनेताओं की करिश्माई उपस्थिति और त्रुटिहीन अभिनय क्षमता ने उन्हें भोजपुरी भाषी बेल्ट और उससे आगे के दर्शकों के बीच प्रिय बना दिया है । ये कलाकार अक्सर पेशेवर अभिनेता नहीं होते हैं, बल्कि ऐसे वास्तविक लोग होते हैं जिनकी मजबूत क्षेत्रीय जड़ें होती हैं, जो उन्हें अपने पात्रों की भावनाओं में स्वाभाविक रूप से टैप करने में मदद करती हैं । कई मुख्यधारा के बॉलीवुड व्यक्तित्व भी भोजपुरी फिल्म उद्योग से संबंधित परियोजनाओं की ओर आकर्षित हुए हैं ।
भोजपुरी सिनेमा में सितारों का उदय अक्सर उनकी क्षेत्रीय लोक कला और संगीत की पृष्ठभूमि से जुड़ा है। मनोज तिवारी, दिनेश लाल यादव (निरहुआ) और पवन सिंह , खेसारी लाल यादव जैसे कई शीर्ष अभिनेता पहले लोक गायक थे । संगीत भोजपुरी सिनेमा की सफलता की कुंजी है । यह उन्हें सीधे अपने दर्शकों से जोड़ता है और बॉलीवुड के 'ग्लैमर' आधारित स्टारडम से अलग है, जो भोजपुरी सिनेमा के 'ज़मीन से जुड़े' स्वरूप को दर्शाता है।
पर्दे के पीछे का अर्थशास्त्र: लागत और कमाई
भोजपुरी फिल्म उद्योग अपने कम बजट और उच्च लाभ मार्जिन के लिए जाना जाता है, हालांकि हाल के वर्षों में उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है। भोजपुरी फिल्मों का बजट आमतौर पर ₹80 लाख से ₹2.50 करोड़ के बीच होता है । मनोज तिवारी के अनुसार, उनकी किसी भी फिल्म का बजट ₹1.5 करोड़ से अधिक नहीं था । हाल की सबसे महंगी भोजपुरी फिल्मों में 'संघर्ष 2' (₹6 करोड़, 2023) और 'निरहुआ चलाल लंदन' (₹4 करोड़, 2019) शामिल हैं । यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उत्पादन लागत का लगभग 70 प्रतिशत महाराष्ट्र में खर्च होता है, जिससे जूनियर कलाकारों, मेकअप पुरुषों, स्पॉट बॉय और स्थानीय स्टूडियो को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है ।
कम बजट के बावजूद, भोजपुरी फिल्में अक्सर बड़े लाभ मार्जिन अर्जित करती हैं । 'ससुरा बड़ा पैसावाला' (2004) इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो $65,000 के बजट में बनी और बॉक्स ऑफिस पर $3 मिलियन से अधिक की कमाई की । मनोज तिवारी की पहली फिल्म ने ₹56 करोड़ कमाए । उद्योग में लगभग 50 फिल्मों में से, 7-8 फिल्में अपनी लागत वसूल करती हैं और एक या दो हिट होती हैं । यह हिंदी फिल्मों की तुलना में बेहतर सफलता दर है, जहां 220 में से 10 से भी कम फिल्में लागत वसूल करती हैं । निर्माता वीडियो सीडी अधिकार औसतन ₹40 लाख प्रति फिल्म और संगीत अधिकार ₹30 लाख में बेचते हैं ।
क्रू सदस्यों की दैनिक मजदूरी परियोजना के बजट, स्थान और अनुभव पर निर्भर करती है । उदाहरण के तौर पर, एक लाइट बॉय को लगभग ₹500 प्रति दिन मिल सकता है । पटना में ऑपरेटर/मशीनिस्ट को ₹15,786 - ₹16,536 प्रति माह और हाउसकीपिंग स्टाफ को ₹8,000 - ₹18,000 प्रति माह मिल सकता है । मुंबई में, साउंड इंजीनियर ₹90,000 - ₹99,000 प्रति माह, डबिंग आर्टिस्ट ₹43,917 - ₹44,667 प्रति माह और सहायक फोटोग्राफर ₹18,500 - ₹42,500 प्रति माह कमा सकते हैं । यह देखा गया है कि कुछ निर्माता कम भुगतान करते हैं या सहायक निर्देशकों को भुगतान नहीं करते हैं, जबकि 100 करोड़ के संग्रह का दावा करते हैं ।
भोजपुरी फिल्म निर्माण का लगभग 70% खर्च महाराष्ट्र में होता है , जबकि उद्योग बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में केंद्रित है । मनोज तिवारी ने उद्योग को उत्तर प्रदेश या बिहार में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया है ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके । यह दर्शाता है कि भोजपुरी सिनेमा, अपनी क्षेत्रीय पहचान के बावजूद, उत्पादन के लिए मुंबई जैसे बड़े शहरों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। यह न केवल उत्पादन लागत को बढ़ाता है, बल्कि उन क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों को भी सीमित करता है जहां भोजपुरी भाषा बोली जाती है। उद्योग के स्थानीयकरण से न केवल लागत कम हो सकती है, बल्कि यह स्थानीय प्रतिभा और श्रमिकों के लिए अधिक अवसर भी पैदा कर सकता है।
लगभाग
स्टार कलाकार: ₹20 लाख – ₹50 लाख प्रति फिल्म
को-स्टार/सपोर्टिंग एक्टर: ₹1 लाख – ₹5 लाख
डायरेक्टर: ₹5 लाख – ₹15 लाख
कैमरामैन/एडिटर/तकनीकी स्टाफ: ₹50,000 – ₹2 लाख
वर्कर्स (लाइट, सेट, म्यूजिक): ₹500 – ₹3000 प्रतिदिन
नए कलाकारों के लिए प्रवेश का तरीका
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश अब आसान हो गया है, खासकर डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से। यदि आपके पास टैलेंट है और आप ऑडिशन के माध्यम से सही डायरेक्टर तक पहुँच सकते हैं, तो आपको मौके मिल सकते हैं।
प्रवेश :
थिएटर से शुरुआत करें – अभिनय की नींव मजबूत करें।
शॉर्ट फिल्म्स और यूट्यूब प्रोजेक्ट्स में हिस्सा लें।
सोशल मीडिया प्रोफाइल को एक्टिव रखें – इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म आज के "पोर्टफोलियो" हैं।
ऑडिशन: प्रोडक्शन हाउस अक्सर नए चेहरों के लिए ऑडिशन रखते हैं।
फिल्म स्कूल: अभिनय और फिल्ममेकिंग की ट्रेनिंग लेना भी फायदेमंद है।
लोकल कास्टिंग एजेंसियों से जुड़ें।
भोजपुरी इंडस्ट्री को और बेहतर कैसे बनाये
स्क्रिप्ट पर ज़ोर दें – कहानी मजबूत होगी तो दर्शक खुद खिंचे चले आएँगे।
अश्लीलता से परहेज़ – भोजपुरी सिनेमा की छवि को सुधारना जरूरी है।
नई प्रतिभाओं को बढ़ावा – केवल स्टार्स पर निर्भर न रहकर नए चेहरों को मौके दिए जाएँ।
महिलाओं को सशक्त रोल दें – सिर्फ डांस या ग्लैमर तक सीमित न रखें।
OTT प्लेटफॉर्म पर ध्यान – ज़्यादा से ज़्यादा फिल्में वेब और मोबाइल दर्शकों के लिए बनानी चाहिए
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