Bihar Election Result 2025: NDA Wins, Nitish Kumar CM 10 time, Full Analysis in Hindi
बिहार चुनाव 2025: नीतीश कुमार की दसवीं पारी - जब बिहार की जनता ने इतिहास रच दिया!
वर्ष 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव राज्य के राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ है। तमाम एग्जिट पोल्स, सत्ता-विरोधी लहर (Anti-incumbency) के कयासों और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमानों को ध्वस्त करते हुए, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 में से 202 सीटों पर जीत दर्ज कर एक अभूतपूर्व जनादेश प्राप्त किया है। यह जीत न केवल नीतीश कुमार की 'सुशासन' की छवि पर जनता की मुहर है, बल्कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'डबल इंजन' के नारे की सफलता का भी प्रमाण है।
बिहार में राजनीतिक निरंतरता की जीत
बिहार की राजनीति, जो अक्सर जातिगत समीकरणों और अस्थिरता के लिए जानी जाती रही है, ने 2025 में 'स्थिरता' और 'निरंतरता' को चुना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने पिछले दो दशकों में राज्य की राजनीति को परिभाषित किया है, रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने में सफल रहे। यह चुनाव परिणाम इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि 2020 के चुनावों में जनता दल यूनाइटेड (JDU) का प्रदर्शन कमजोर रहा था, और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन 2025 में स्थिति पूरी तरह पलट गई।
इस जनादेश के पीछे कई कारक छिपे हैं महिलाओं का बंपर वोटिंग, जातिगत गोलबंदी का नया स्वरूप, और विपक्ष का बिखराव। जहाँ एक तरफ आरजेडी अपने पारंपरिक 'MY' (मुस्लिम-यादव) समीकरण से आगे नहीं बढ़ पाई, वहीं एनडीए ने 'MY' का नया अर्थ गढ़ा—'महिला और युवा' (Mahila & Youth) ।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य केवल चुनावी आंकड़ों को प्रस्तुत करना नहीं है, बल्कि उन धाराओं को समझना है जिन्होंने इस विशाल जनादेश को जन्म दिया। हम यह भी विश्लेषण करेंगे कि बीजेपी के 'बड़े भाई' की भूमिका में आने के बावजूद नीतीश कुमार को नेतृत्व क्यों सौंपा गया, और इसके बदले में जेडीयू को कौन सी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी।
चुनाव परिणाम 2025
दलीय स्थिति और गठबंधन का प्रदर्शन
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए हुए चुनाव में एनडीए ने लगभग 90% स्ट्राइक रेट के साथ क्लीन स्वीप किया है। 2020 के मुकाबले यह एक भारी बदलाव है।
NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन)
राजनीतिक दल सीटें जीतीं वोट शेयर (%) 2020 से बदलाव
भारतीय जनता पार्टी (BJP) 89 20.1% +15
जनता दल यूनाइटेड (JDU) 85 19.3% +42
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 19 5.0% +18
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM-S) 5 1.2% +1
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) 4 1.1% (नई पार्टी)
कुल 202 46.5% +77 सीटें
MGB (महागठबंधन)
राजनीतिक दल सीटें जीतीं वोट शेयर (%) 2020 से बदलाव
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) 25 23.0% -50
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) 6 8.7% -13
CPI (ML) लिबरेशन 2 2.8% -10
CPI (M) 1 0.6% -1
कुल 35 37.6% -75 सीटें
अन्य
राजनीतिक दल सीटें जीतीं वोट शेयर (%) 2020 से बदलाव
AIMIM 5 1.9% 0 (स्थिर)
निर्दलीय/अन्य 1 - -
जन सुराज 0 3.42% नई पार्टी
जेडीयू का पुनरुत्थान : 2020 में 43 सीटों पर सिमटने वाली जेडीयू ने 85 सीटें जीतकर अपनी प्रासंगिकता फिर से साबित कर दी है। यह दर्शाता है कि नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक (कोइरी-कुर्मी और ईबीसी) उनके साथ मजबूती से खड़ा रहा।
बीजेपी का विस्तार: 89 सीटों के साथ बीजेपी गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बनी। उसने अपनी स्ट्राइक रेट में सुधार किया है और नए क्षेत्रों में पैठ बनाई है।
आरजेडी का पतन: तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी 75 सीटों (2020) से गिरकर मात्र 25 सीटों पर आ गई। यह पार्टी के लिए एक अस्तित्वगत संकट की तरह है।
चिराग फैक्टर: चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) ने 19 सीटें जीतकर यह सिद्ध कर दिया कि वे ही रामविलास पासवान के असली राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। दलित वोटों का एनडीए को हस्तांतरण उनकी वजह से सुगम हुआ ।
क्षेत्रीय विश्लेषण (Region-wise Analysis)
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में मतदान के रुझान अलग-अलग रहे, लेकिन एनडीए की लहर लगभग हर क्षेत्र में दिखाई दी।
मिथिलांचल: यहाँ बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन पारंपरिक रूप से मजबूत रहा है। ब्राह्मण और ओबीसी वोटों के ध्रुवीकरण ने यहाँ एनडीए को एकतरफा जीत दिलाई। दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों में आरजेडी का खाता भी मुश्किल से खुला।
सीमांचल: यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है और आरजेडी का गढ़ माना जाता था। लेकिन यहाँ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 5 सीटें जीतकर आरजेडी को भारी नुकसान पहुँचाया। AIMIM ने अमौर, बहादुरगंज और कोचाधामन जैसी सीटों पर जीत दर्ज की, जिससे 'सेक्युलर' वोटों का बंटवारा हुआ और एनडीए को फायदा मिला ।
मगध और भोजपुर: यहाँ वाम दलों (CPI-ML) का प्रभाव माना जाता था। लेकिन इस बार एनडीए ने, विशेषकर बीजेपी ने, यहाँ भी बड़ी सेंधमारी की। आरा और बक्सर जैसे जिलों में बीजेपी ने बढ़त बनाए रखी ।
मतगणना का दिन: रोमांच, रुझान और 'डबल दिवाली'
14 नवंबर 2025 की सुबह 8 बजे जब मतगणना शुरू हुई, तो पूरा बिहार टीवी स्क्रीन और मोबाइल फोन से चिपका हुआ था। शुरुआत में पोस्टल बैलेट की गिनती में ही एनडीए ने बढ़त बना ली थी, जो ईवीएम खुलने के बाद और मजबूत होती गई।
मतगणना का घटनाक्रम (Timeline)
सुबह 8:00 - 10:00 बजे: शुरुआती रुझानों में एनडीए 120 सीटों के पार चला गया। बीजेपी और जेडीयू के कार्यालयों में हलचल शुरू हो गई। आरजेडी खेमे में सन्नाटा पसरने लगा।
दोपहर 12:00 बजे: एनडीए का आंकड़ा 180 के पार पहुँच गया। यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई साधारण जीत नहीं, बल्कि एक 'सुनामी' है। पटना में जेडीयू और बीजेपी कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे को गुलाल लगाना शुरू कर दिया।
दोपहर 2:00 बजे: कई वीआईपी सीटों के परिणाम स्पष्ट होने लगे। तेजस्वी यादव राघोपुर से आगे चल रहे थे, लेकिन उनका मार्जिन 2020 के मुकाबले कम दिख रहा था। दूसरी ओर, जेडीयू के कई मंत्री जो 2020 में खतरे में थे, इस बार बड़े अंतर से जीत रहे थे।
वायरल पल और जश्न
मतगणना के दौरान सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए, जिन्होंने इस राजनीतिक घटनाक्रम को मनोरंजक बना दिया।
'लालू' की मिमिक्री: बीजेपी मुख्यालय के बाहर एक कार्यकर्ता द्वारा लालू प्रसाद यादव के अंदाज में बोलने और नतीजों पर व्यंग्य करने का वीडियो आग की तरह फैला। इसमें कार्यकर्ता ने कहा, "ई तो होना ही था!" जिसे लोगों ने खूब साझा किया ।
डबल दिवाली: पटना में शाम होते-होते आतिशबाजी शुरू हो गई। इसे समर्थकों ने 'डबल दिवाली' का नाम दिया क्योंकि दिवाली हाल ही में बीती थी और नतीजों ने जश्न का दूसरा मौका दे दिया ।
शंखनाद: जीत के औपचारिक ऐलान के साथ ही बीजेपी कार्यालय में शंखनाद किया गया, जो हिंदुत्व और विजय का प्रतीक माना गया।
कांटे की टक्कर
रामगढ़: यहाँ बीएसपी के सतीश कुमार सिंह यादव ने मात्र 30 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। यह इस चुनाव की सबसे छोटी जीत थी ।
नवीनगर: जेडीयू के चेतन आनंद ने आरजेडी उम्मीदवार को सिर्फ 112 वोटों से हराया ।
ढाका: आरजेडी के फैसल रहमान ने बीजेपी उम्मीदवार पवन कुमार जायसवाल को 178 वोटों से मात दी ।
जीत के कारण: उम्मीदों से परे परिणाम क्यों?
राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करने वाली इस जीत के पीछे कई ठोस कारण थे।
'आधी आबादी' का मौन समर्थन (The Silent Women Voter)
बिहार में महिला मतदाता पिछले कुछ चुनावों से नीतीश कुमार का सबसे मजबूत 'वोट बैंक' बनकर उभरी हैं। 2025 में महिलाओं का मतदान प्रतिशत (71.78%) पुरुषों (62.98%) से लगभग 9% अधिक रहा ।
कारण: शराबबंदी का सामाजिक प्रभाव और 'जीविका' (Jeevika) स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण।
योजनाएं: चुनाव से ठीक पहले 'मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना' और नकद सहायता राशि (Direct Benefit Transfer) ने महिलाओं को एनडीए के पक्ष में गोलबंद किया। प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया कि महिलाओं को 10,000 रुपये दिए गए, जिसने गेम चेंजर का काम किया ।
'जंगल राज' बनाम 'सुशासन'
चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए ने आरजेडी के पुराने कार्यकाल (1990-2005) को 'जंगल राज' के रूप में पेश किया। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने नई पीढ़ी के मतदाताओं (Gen Z) को, जिन्होंने वह दौर नहीं देखा था, बार-बार याद दिलाया कि अगर आरजेडी सत्ता में आई तो कानून-व्यवस्था की क्या स्थिति होगी। यह डर (Fear Factor) काम कर गया और फ्लोटिंग वोटर्स एनडीए की तरफ मुड़ गए ।
जातिगत समीकरणों का विस्तार (Social Engineering)
सवर्ण + ईबीसी (EBC): बीजेपी का सवर्ण आधार और नीतीश का ईबीसी (अति पिछड़ा) आधार पूरी तरह एकजुट रहा।
दलित और महादलित: चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के साथ आने से दलित वोटों का बिखराव रुका और वे एकमुश्त एनडीए को मिले।
यादव वोट में सेंध: बीजेपी ने मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को प्रचार में उतारकर आरजेडी के कोर यादव वोट बैंक में भी सेंधमारी की ।
विपक्ष का बिखराव और नेतृत्व का अभाव
महागठबंधन (MGB) में समन्वय की भारी कमी दिखी। कांग्रेस को दी गई सीटें (गठबंधन में) आरजेडी के लिए बोझ साबित हुईं। कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा। इसके अलावा, तेजस्वी यादव के पास नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की संयुक्त लोकप्रियता की काट नहीं थी।
सरकार गठन का नाटक: कुर्सी, कसम और कुर्बानी
परिणामों के बाद सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह था: क्या बीजेपी, जिसके पास जेडीयू से ज्यादा सीटें हैं (89 vs 85), नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाएगी?
नीतीश ही क्यों?
तर्क कहता है कि लोकतंत्र में संख्या बल ही सब कुछ है। 2020 में भी बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थीं (74 vs 43), और तब भी नीतीश सीएम बने थे। 2025 में यह अंतर कम था (89 vs 85), लेकिन बीजेपी बड़ी पार्टी थी। फिर भी, बीजेपी ने नीतीश कुमार को सीएम पद सौंपा। इसके कारण
गठबंधन धर्म और पूर्व घोषणा: चुनाव से पहले ही अमित शाह और जेपी नड्डा ने घोषणा कर दी थी कि चुनाव नतीजे चाहे जो हों, नेतृत्व नीतीश कुमार का ही होगा ।
नीतीश की अपरिहार्यता: बीजेपी जानती है कि बिहार में अभी भी सामाजिक न्याय और ईबीसी वोटों का चेहरा नीतीश कुमार ही हैं। उनके बिना एनडीए का सामाजिक गठबंधन कमजोर पड़ सकता है ।
2029 का लक्ष्य: बीजेपी का मुख्य लक्ष्य केंद्र में सत्ता बनाए रखना है, जिसके लिए बिहार की 40 लोकसभा सीटें महत्वपूर्ण हैं। नीतीश को खुश रखकर बीजेपी इस लक्ष्य को साधना चाहती है।
ऐतिहासिक समझौता: गृह विभाग का हस्तांतरण
इस बार सरकार गठन में एक बड़ा पेच फंसा—मंत्रालयों का बंटवारा। नीतीश कुमार 2005 से (2014 के संक्षिप्त अंतराल को छोड़कर) लगातार मुख्यमंत्री रहे हैं और गृह विभाग (Home Ministry) हमेशा उनके पास रहा है। गृह विभाग का मतलब है पुलिस, खुफिया विभाग और प्रशासन पर सीधा नियंत्रण।
लेकिन इस बार बीजेपी ने अपनी बढ़ी हुई ताकत का एहसास कराया। लंबी बातचीत और मोलभाव के बाद एक ऐतिहासिक समझौता हुआ
बीजेपी को मिला 'गृह': पहली बार नीतीश कुमार ने गृह विभाग छोड़ा। यह विभाग अब बीजेपी के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पास है । यह बीजेपी के लिए एक बड़ी वैचारिक और प्रशासनिक जीत है।
जेडीयू को मिला 'वित्त': इसके बदले में, जेडीयू को वित्त विभाग (Finance) दिया गया, जो पारंपरिक रूप से बीजेपी (सुशील मोदी/तारकिशोर प्रसाद) के पास रहता था। विजय कुमार चौधरी अब वित्त मंत्री हैं ।
नई सरकार का स्वरूप: मंत्री और उनके विभाग
20 नवंबर 2025 को पटना के गांधी मैदान में भव्य समारोह हुआ। नीतीश कुमार के साथ 26 अन्य मंत्रियों ने शपथ ली। इस कैबिनेट में जातिगत संतुलन (Caste Balance) और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का पूरा ध्यान रखा गया है।
क्र. मंत्री का नाम, पार्टी, आवंटित विभाग (Portfolio), विशेष टिप्पणी/प्रोफाइल
1. नीतीश कुमार, JDU, मुख्यमंत्री, सामान्य प्रशासन, मंत्रिमंडल सचिवालय, निगरानी, निर्वाचन, 10वीं बार सीएम, 'सुशासन बाबू'
2. सम्राट चौधरी, BJP, उपमुख्यमंत्री, गृह, खेल, कुशवाहा नेता, पहली बार गृह विभाग बीजेपी के पास
3. विजय कुमार सिन्हा, BJP, उपमुख्यमंत्री, राजस्व एवं भूमि सुधार, खान एवं भूतत्व, भूमिहार नेता, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, आक्रामक छवि
4. विजय कुमार चौधरी, JDU, वित्त, वाणिज्यिक कर, नीतीश के सबसे करीबी, पहले संसदीय कार्य मंत्री थे
5. बिजेन्द्र प्रसाद यादव, JDU, ऊर्जा, योजना एवं विकास, कोसी क्षेत्र के कद्दावर यादव नेता, दशकों से ऊर्जा मंत्री
6. प्रेम कुमार, BJP, सहकारिता, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, गया टाउन से 8 बार के धायक, अति-पिछड़ा चेहरा
7. श्रवण कुमार, JDU, ग्रामीण विकास, नालंदा (नीतीश के गृह जिले) से कुर्मी नेता
8. अशोक चौधरी, JDU, ग्रामीण कार्य, दलित नेता, पासी समाज से, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष
9. मंगल पांडे, BJP, स्वास्थ्य, कृषि, ब्राह्मण चेहरा, पहले भी स्वास्थ्य मंत्री रहे
10. संतोष कुमार सुमन, HAM(S), लघु जल संसाधन, आपदा प्रबंधन, जीतन राम मांझी के पुत्र, महादलित चेहरा
11. नितिन नवीन, BJP, पथ निर्माण, नगर विकास एवं आवास, कायस्थ चेहरा, युवा और तेजतर्रार
12. दिलीप जायसवाल, BJP, उद्योग, वैश्य समाज, संगठन में मजबूत पकड़
13. मदन सहनी, JDU, समाज कल्याण, निषाद/मल्लाह समाज का प्रतिनिधित्व
14. लेसी सिंह, JDU, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण, राजपूत समाज, सीमांचल की कोशी बेल्ट से
15. सुनील कुमार, JDU, शिक्षा, दलित, पूर्व आईपीएस अधिकारी
16. जमा खान, JDU, अल्पसंख्यक कल्याण, कैबिनेट में एकमात्र मुस्लिम चेहरा
17. सुमित कुमार सिंह, निर्दलीय/JDU, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, चकाई से (चुनाव हारे, फिर भी मंत्री?) - विवादित
18. जयंत राज, JDU, भवन निर्माण, युवा कुशवाहा नेता
19. रत्नेश सदा, JDU, मद्यनिषेध (Excise), मुसहर समाज, शराबबंदी लागू करने की जिम्मेदारी
20. शीला मंडल, JDU, परिवहन, अति-पिछड़ा वर्ग, महिला मंत्री
21. महेश्वर हजारी, JDU, सूचना एवं जनसंपर्क, पासवान समाज, पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष
22. राम कृपाल यादव, BJP, कृषि, पाटलिपुत्र के कद्दावर यादव नेता, पूर्व आरजेडी
23. संजय सिंह 'टाइगर', BJP, श्रम संसाधन, राजपूत नेता
24. अरुण शंकर प्रसाद, BJP, पर्यटन, कला, संस्कृति और युवा
25. संजय कुमार सिंह, LJP(RV), लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण (PHED), लोजपा कोटे से मंत्री
26. संजय कुमार, LJP(RV), गन्ना उद्योग, लोजपा कोटे से दूसरे मंत्री
27. दीपक प्रकाश, RLM, पंचायती राज, उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी से एकमात्र मंत्री
जातिगत समीकरण: कैबिनेट में सवर्ण (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, कायस्थ), ओबीसी (यादव, कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य), ईबीसी (मल्लाह, नाई, कानू) और दलित/महादलित (पासवान, मुसहर, पासी) का संतुलित मिश्रण है।
मुस्लिम प्रतिनिधित्व: एनडीए की प्रचंड जीत के बावजूद, जमा खान (JDU) के रूप में केवल एक मुस्लिम मंत्री है। बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था और न ही मंत्री बनाया।
महिला प्रतिनिधित्व: लेसी सिंह, शीला मंडल और श्रेयसी सिंह ।
बिना चुनाव लड़े मंत्री: 'चोर दरवाजे' से सत्ता या संवैधानिक आवश्यकता?
बिहार में विधायिका है विधानसभा और विधान परिषद। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति बिना जनता द्वारा सीधे चुने गए (MLA बने बिना) मंत्री बन सकता है, बशर्ते वह विधान परिषद (MLC) का सदस्य हो या 6 महीने के भीतर बन जाए। इस बार भी कई प्रमुख मंत्री इस रास्ते से सरकार में आए हैं।
नीतीश कुमार (मुख्यमंत्री)
यह एक विडंबना ही कही जाएगी कि राज्य के सबसे लोकप्रिय नेता और मुख्यमंत्री ने पिछले 20 वर्षों में एक बार भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है। नीतीश कुमार 2004 में लोकसभा सदस्य थे, और 2005 में सीएम बनने के बाद उन्होंने विधान परिषद (MLC) का रास्ता चुना। 2025 में भी उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और एमएलसी के रूप में शपथ ली। विपक्ष अक्सर इसे 'जनादेश का डर' कहकर तंज कसता है, लेकिन संवैधानिक रूप से यह पूरी तरह वैध है ।
अशोक चौधरी (मंत्री, ग्रामीण कार्य)
अशोक चौधरी जेडीयू के दलित चेहरे और नीतीश कुमार के बेहद करीबी रणनीतिकार हैं। वे वर्तमान में विधान परिषद के सदस्य हैं और उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा। उन्हें सरकार में महत्वपूर्ण ग्रामीण कार्य विभाग दिया गया है ।
संतोष कुमार सुमन (मंत्री, लघु जल संसाधन)
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के अध्यक्ष और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के पुत्र, संतोष सुमन भी एमएलसी हैं। उनका एमएलसी कार्यकाल 2024 से 2030 तक है, इसलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं उठाया ।
सुमित कुमार सिंह का अनोखा मामला: 'हार कर भी जीत'
सबसे दिलचस्प मामला सुमित कुमार सिंह का है। वे चकाई विधानसभा सीट से निर्दलीय/जेडीयू समर्थित उम्मीदवार थे। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, वे आरजेडी की सावित्री देवी से चुनाव हार गए (1st Runner Up रहे) । इसके बावजूद, उनका नाम कैबिनेट मंत्रियों की सूची में शामिल है और उन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग दिया गया है । यदि उन्होंने शपथ ली है, तो यह एक दुर्लभ राजनीतिक घटना है जहाँ जनता द्वारा नकारे जाने (चुनाव हारने) के तुरंत बाद किसी को मंत्री बनाया गया हो। संवैधानिक रूप से, एक हारा हुआ प्रत्याशी मंत्री बन सकता है, लेकिन उसे 6 महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य बनना होगा (संभवतः एमएलसी के जरिए)। यह लोकतंत्र की नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है, लेकिन 'राजनीतिक अपरिहार्यता' इसे संभव बनाती है। सुमित सिंह को मंत्री बनाना संभवतः राजपूत वोटों और अंग क्षेत्र में उनके परिवार के प्रभाव को साधने के लिए किया गया है।
वीआईपी सीटें: कौन जीता, कौन हारा?
राघोपुर: तेजस्वी यादव ने अपनी सीट बचा ली, लेकिन उनकी जीत का अंतर 2020 के मुकाबले कम हुआ। यह दर्शाता है कि उनकी लोकप्रियता में थोड़ी गिरावट आई है या विरोधी खेमे की घेराबंदी मजबूत थी ।
हसनपुर: तेज प्रताप यादव (लालू के बड़े बेटे) की सीट पर भी कड़ा मुकाबला था, लेकिन वे जीतने में सफल रहे।
इमामगंज: जीतन राम मांझी (अब सांसद) की पारंपरिक सीट पर उनकी बहू दीपा मांझी (संभावित उम्मीदवार) या उनके प्रत्याशी की जीत ने हम पार्टी को मजबूती दी।
पोस्टल बैलेट विवाद
मतगणना के बाद विपक्ष ने आरोप लगाया कि पोस्टल बैलेट में धांधली हुई है। आंकड़ों के अनुसार, कुल 2.01 लाख पोस्टल बैलेट्स में से लगभग 24,000 (11.87%) रिजेक्ट कर दिए गए । आरजेडी का दावा था कि कई सीटों पर हार-जीत का अंतर रिजेक्टेड वोटों से कम था। हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि जीत का अंतर अधिकांश सीटों पर रिजेक्टेड वोटों से कहीं ज्यादा था और पोस्टल बैलेट रद्द करने के लिए सख्त मानक प्रक्रिया (जैसे हस्ताक्षर न होना, गलत फॉर्म भरना) का पालन किया गया।
8.3 'NOTA' का प्रभाव
इस चुनाव में NOTA (None of the Above) को लगभग 1.81% वोट मिले, जो लगभग 9.10 लाख वोट होते हैं । कई सीटों पर नोटा को मिले वोट जीत-हार के अंतर से ज्यादा थे, जो दर्शाता है कि एक बड़ा वर्ग अभी भी सभी राजनीतिक दलों से असंतुष्ट है।
नीतीश कुमार - 10 बार CM! 🎯
74 साल के नीतीश ने इतिहास रच दिया। उनका सफर:
2000: पहली बार CM बने - सिर्फ 7 दिन में गिर गई सरकार!
2005: लालू का 15 साल का राज खत्म किया
2010: फिर जीते
2013: BJP से नाता तोड़ा
2015: लालू से हाथ मिलाया
2017: फिर NDA में आए
2020: कमजोर नतीजों के बावजूद CM बने रहे
2022: फिर महागठबंधन में गए
2024: लोकसभा से पहले NDA में लौटे
2025: 10वीं बार CM!
उन्हें "पलटू चाचा" और "कुर्सी कुमार" कहा गया, लेकिन वे हर बार जीते!
कैबिनेट की पहली बैठक
नई कैबिनेट ने पहली ही बैठक में बड़े फैसले लिए:
5 साल में 1 करोड़ नौकरियां बनाने का लक्ष्य
डिफेंस कॉरिडोर विकसित करना
टेक्नोलॉजी हब बनाना
18वीं विधानसभा का सत्र 1 दिसंबर से
Please login to add a comment.
No comments yet.