
Pawan Singh's political journey 2025: BJP comeback, Bihar elections, wife Jyoti Singh
पवन सिंह का राजनीतिक द्वंद्व: कालक्रम, विवाद, और बिहार 2025 की राजनीतिक बिसात पर एक विश्लेषण
पवन सिंह की राजनीति में एंट्री कोई नई परिघटना नहीं है; यह भोजपुरी कलाकारों (जैसे मनोज तिवारी, रवि किशन, और दिनेश लाल यादव 'निरहुआ') के राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की एक लंबी परंपरा का हिस्सा है । हालांकि, पवन सिंह की राजनीतिक राह अन्य भोजपुरी कलाकारों की तुलना में अधिक जटिल रही है, क्योंकि उनका करियर हमेशा सफलता और कंट्रोवर्सी (विवाद) के चक्र में फंसा रहा है । राजनीतिक गलियारों में यह माना जाता है कि उनके विवादित अतीत ने उनकी छवि को जोखिम भरा बना दिया है, लेकिन उनके बड़े जनाधार ने राष्ट्रीय पार्टियों के लिए उन्हें अनदेखा करना असंभव बना दिया है।
बीजेपी के साथ आरंभ और शुरुआती भूमिका (2014 - 2023)

पवन सिंह का राजनीतिक सफर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ शुरू हुआ। 4 सितंबर 2017 को पवन सिंह ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। लेकिन यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि वह 2014 के बाद से ही पार्टी के सांस्कृतिक प्रचारक रहे और धीरे-धीरे उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं बढ़ती गईं।
राजनीति में आने की वजह
पवन सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से प्रभावित होकर राजनीति में आए हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि वे चुनाव लड़ने के लिए नहीं बल्कि एक सिपाही के रूप में काम करने के लिए पार्टी में शामिल हुए हैं।
उनके शब्दों में
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवन सिंह ने कहा था: "मैं मोदी जी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। उनकी वजह से राजनीति में आया हूं। मैं राजनीति में एमपी या एमएलए बनने नहीं आया हूं। मैं पिछले कई सालों से गाना गा रहा हूं और एक्टिंग कर रहा हूं। राजनीति में अभी तो मैं नया सिपाही हूं।"
2019 लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी से उनको टिकट मिलने वाला था। उसके काफी चर्चा हुवा था। लेकिन आखरी समय में कुछ अंदरूनी कारणों से पवन सिंह को टिकट नहीं मिला
2024 लोकसभा चुनाव का नाट्य रूपांतरण: कालानुक्रमिक घटनाक्रम
पवन सिंह की राजनीतिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद दौर 2024 का लोकसभा चुनाव रहा, जिसने उनकी प्रतिष्ठा, पार्टी के प्रति निष्ठा और वास्तविक जनाधार की कठोर परीक्षा ली। यह घटनाक्रम मार्च से जून 2024 तक एक नाटकीय मोड़ लेता रहा।
आसनसोल विवाद: टिकट, वापसी और बंगाली अस्मिता का टकराव (मार्च 2024)
मार्च 2024 की शुरुआत में, बीजेपी ने पवन सिंह को पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया । यह सीट महत्वपूर्ण थी क्योंकि यहां से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता शत्रुघ्न सिन्हा सांसद थे । यह राष्ट्रीय राजनीति में उनके पदार्पण का प्रतीक था।
हालांकि, टिकट की घोषणा के ठीक 24 घंटे के भीतर, पवन सिंह ने अचानक आसनसोल से चुनाव न लड़ने का फैसला करते हुए सोशल मीडिया पर इसकी घोषणा कर दी । इस तीव्र यू-टर्न का मूल कारण एक गहरा सांस्कृतिक और राजनीतिक टकराव था। टीएमसी ने तुरंत पवन सिंह के कुछ गानों पर आपत्ति जताई, यह आरोप लगाते हुए कि वे अश्लील थे और विशेष रूप से 'बंगाली महिलाओं का अपमान' करते थे । टीएमसी ने इस मुद्दे को बंगाली अस्मिता से जोड़कर राजनीतिक हथियार बना लिया । इस घटना ने दिखाया कि उनका 'भोजपुरी पावर स्टार' ब्रांड, जो बिहार और यूपी में काम करता है, पश्चिम बंगाल की क्षेत्रीय राजनीति में तत्काल एक राजनीतिक 'दायित्व' (Liability) बन गया। राष्ट्रीय पार्टी (बीजेपी) पर बंगाली भावनाओं को शांत करने का दबाव पड़ा। लेकिन पवन सिंह के समर्थक इस बात को पूरा सही नहीं मानते उनका कहना है की बीजेपी में बहुत सरे नेता है जो बंगाल पे गाने गाये है। ये सिर्फ एक बहाना है। पवन सिंह को टिकट नहीं देने का।
बाद में, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने भी इस बात की पुष्टि की कि पवन सिंह को टिकट मिला, फिर उनसे वापस लेने को कहा गया, और फिर दूसरी जगह से टिकट देने का वादा करके भी नहीं दिया गया । आरके सिंह ने स्वीकार किया कि इस स्थिति से पवन सिंह को 'स्वाभाविक रूप से दर्द' हुआ होगा । और यह दर्द दूसरी बार हुवा था (पहली बार 2019 में ) यह हताशा ही उनकी बाद की विद्रोही राजनीति का आधार बनी।
काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवारी और पार्टी से निष्कासन (मई 2024)
आसनसोल विवाद और कहीं और से टिकट न मिलने के बाद , पवन सिंह ने संगठनात्मक अनुशासन को दरकिनार करते हुए, बिहार की काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का साहसिक फैसला लिया । यह सीट एनडीए गठबंधन के तहत उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय लोक मोर्चा) को दी गई थी, जिससे पवन सिंह की उम्मीदवारी सीधे गठबंधन धर्म का उल्लंघन थी।
चुनाव परिणाम और निष्कासन
कराकाट में तीनकोनी मुकाबला हुआ जिसमें:
CPI(ML) लिबरेशन के राजा राम सिंह विजयी हुए
उपेंद्र कुशवाहा दूसरे स्थान पर रहे
पवन सिंह तीसरे स्थान पर आए
पवन सिंह के कारण NDA की हार हुई, इस अनुशासनहीनता के कारण 22 मई 2024 बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी के आदेश पर पवन सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया ।
उनका यह फैसला सिर्फ व्यक्तिगत हताशा का परिणाम नहीं था। यह उनके स्टारडम को संगठनात्मक अनुशासन से ऊपर रखने का एक जानबूझकर किया गया प्रदर्शन था। उनका लक्ष्य पार्टी को यह स्पष्ट संदेश देना था कि उनका व्यक्तिगत आधार इतना मजबूत है कि वह गठबंधन के आधिकारिक उम्मीदवार को चुनौती दे सकते हैं। यह राजनीतिक विद्रोह इस बात पर जोर देता है कि सेलिब्रिटी नेता राष्ट्रीय पार्टी की इच्छा के विरुद्ध भी अपनी राजनीतिक राह खुद तय कर सकते हैं, जिससे गठबंधन की राजनीति में अस्थिरता पैदा होती है।
निहितार्थ: 'पावर स्टार' का निर्णायक हस्तक्षेप
काराकाट का परिणाम भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन के लिए एक स्पष्ट संदेश था। पवन सिंह का व्यक्तिगत वोट आधार (जो अनुमानतः 1 लाख वोटों से अधिक था ) इतना मजबूत साबित हुआ कि इसने गठबंधन के वोटों को भारी रूप से विभाजित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप एनडीए उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा की हार हुई।
यह परिणाम सिद्ध करता है कि पवन सिंह ने भले ही गठबंधन धर्म तोड़ा हो, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता को अत्यधिक मजबूत किया। उन्होंने सफलतापूर्वक यह प्रदर्शित किया कि वह अपनी फैन फॉलोइंग के कारण किसी भी गठबंधन के चुनावी समीकरणों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इस घटनाक्रम ने एनडीए नेतृत्व को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भविष्य की चुनावी रणनीतियों में उनकी व्यक्तिगत शक्ति को कैसे शामिल किया जाए।
निष्कासन की स्थिति और सुलह के प्रयास
मई 2024 में बीजेपी से निष्कासित होने के बावजूद , पवन सिंह लगातार पार्टी में वापसी के प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अपनी स्थिति को स्पष्ट करने और सुलह की राह तलाशने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की है। हाल ही में उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरा के सांसद आरके सिंह से मुलाकात की, जिसने सियासी हलकों में चर्चाएं तेज कर दीं ।
आरके सिंह ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि पवन सिंह को टिकट मिलने के बाद वापस लेने और दूसरे जगह से टिकट देने का वादा पूरा न होने से उन्हें 'दर्द' हुआ था । आरके सिंह ने यह भी माना कि पवन सिंह को बीजेपी में आना चाहिए । बीजेपी के भीतर से इस तरह की सहानुभूति यह संकेत देती है कि पार्टी का एक बड़ा धड़ा उनके जनाधार और उपयोगिता को पहचानता है और उन्हें वापस संगठन में लाने का पक्षधर है।
भाजपा में वापसी (2025)

दिल्ली में महत्वपूर्ण बैठकें
सितंबर 2025 में पवन सिंह दिल्ली पहुंचे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण नेताओं से मुलाकात की:
गृह मंत्री अमित शाह से 20 मिनट की बैठक
भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मुलाकात
उपेंद्र कुशवाहा से सुलह की बैठक
उपेंद्र कुशवाहा से सुलह
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच सुलह हो गई। 2024 में दोनों के बीच कड़वाहट थी, लेकिन भाजपा नेतृत्व की मध्यस्थता से यह समस्या हल हो गई। दोनों नेताओं के गले मिलने की तस्वीरें वायरल हुईं।
औपचारिक वापसी
30 सितंबर 2025 को भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने औपचारिक रूप से पवन सिंह की भाजपा में वापसी की घोषणा की। इस मौके पर कहा गया कि पवन सिंह एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में NDA गठबंधन को मजबूत बनाने के लिए काम करेंगे।
आरा/बढ़हरा सीट की अटकलें
आरा सीट की संभावना
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भाजपा पवन सिंह को आरा विधानसभा सीट से टिकट देने पर विचार कर रही थी। यह सीट शाहाबाद क्षेत्र में आती है जहाँ राजपूत वोटरों की अच्छी संख्या है। पवन सिंह स्वयं राजपूत समुदाय से हैं।
बढ़हरा की संभावना
बढ़हरा विधानसभा सीट पवन सिंह का गृह क्षेत्र है और वहाँ उनकी पकड़ मानी जाती है। भाजपा इस सीट से भी उनकी उम्मीदवारी पर विचार कर रही थी।
शाहाबाद क्षेत्र की रणनीति
भाजपा की रणनीति शाहाबाद क्षेत्र की 22 विधानसभा सीटों पर फोकस करना था। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में NDA का प्रदर्शन खराब रहा था। पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के गठजोड़ से राजपूत-कुशवाहा वोट बैंक को साधने की योजना थी।
चुनाव न लड़ने की घोषणा (अक्टूबर 2025)
अचानक फैसला बदलना
11 अक्टूबर 2025 को पवन सिंह ने अचानक घोषणा की कि वे बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा: "मैं पवन सिंह अपने भोजपुरीया समाज से बताना चाहता हूँ कि मैंने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी ज्वाइन नहीं किया था और न ही मुझे विधानसभा चुनाव लड़ना है। मैं पार्टी का सच्चा सिपाही हूँ और रहूँगा।"
पारिवारिक विवाद का प्रभाव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्योति सिंह के साथ चल रहे वैवाहिक विवाद का पवन सिंह के इस फैसले पर प्रभाव पड़ा है। ज्योति सिंह की प्रशांत किशोर से मुलाकात और राजनीतिक सक्रियता ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
भाजपा के लिए झटका
पवन सिंह के इस फैसले को भाजपा के लिए बड़ा झटका माना गया क्योंकि पार्टी शाहाबाद क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहती थी।
बिहार चुनाव 2025 में भूमिका
वर्तमान स्थिति
फिलहाल पवन सिंह भाजपा के सदस्य हैं लेकिन चुनाव नहीं लड़ रहे। वे कार्यकर्ता के रूप में पार्टी के लिए प्रचार करेंगे।
शाहाबाद क्षेत्र में प्रभाव
भले ही पवन सिंह चुनाव न लड़ रहे हों, लेकिन शाहाबाद क्षेत्र में उनका प्रभाव महत्वपूर्ण रहेगा। इस क्षेत्र की 22 सीटों में से भाजपा को अधिक सीटें जीतने की जरूरत है।
बिहार चुनाव 2025 की तारीखें
बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में होगा:
पहला चरण: 6 नवंबर 2025 (121 सीटें)
दूसरा चरण: 11 नवंबर 2025 (122 सीटें)
मतगणना: 14 नवंबर 2025
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