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Bihar Election 2025 Analysis: Exit Polls, Voter Turnout and Hot Seat

बिहार चुनाव 2025 का महा-विश्लेषण: महिलाओं ने तोड़ा 74 साल का रिकॉर्ड, 'जंगल राज' बनाम 'पलायन' की जंग

बिहार का चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं होता; यह राजनीति का एक महाकुंभ है, एक ऐसा लिटमस टेस्ट जो न केवल पटना की गद्दी का फैसला करता है, बल्कि दिल्ली की भावी राजनीति की दिशा भी तय करता है। लेकिन 2025 ने जो कर दिखाया है, वह अभूतपूर्व है। 11 नवंबर 2025 की शाम को जब दो चरणों का मतदान समाप्त हुआ, तो EVM में केवल 2,616 उम्मीदवारों  की किस्मत ही नहीं, बल्कि 1951 से लेकर आज तक के सारे वोटिंग रिकॉर्ड भी कैद हो गए । 

आंकड़ों का महासागर: 66.91% मतदान का ऐतिहासिक सच

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में टर्नआउट सर्वाधिक रहा। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार कुल मतदान प्रतिशत 66.91% दर्ज हुआ, जो 1951 के बाद का उच्चतम है। पहले चरण में 65.08% वोटिंग हुई जबकि दूसरे चरण में 68.76%। यह पिछले चुनावों से साफ बढ़त है – 2020 में 57.29%, 2015 में 56.91%, 2010 में 52.73%, 2005 (अक्टूबर) में 45.85% और 2000 में 62.57% मतदान हुआ था ।

इसकी भयावहता को समझने के लिए, 2020 के विधानसभा चुनाव से इसकी तुलना करें, जब 57.29% मतदान हुआ था । यह लगभग 9.6% की सीधी छलांग है। यह 2024 के लोकसभा चुनाव (56.28%)  से भी 10% से अधिक है। यह कोई मामूली वृद्धि नहीं है; यह एक अभूतपूर्व जन-उत्साह को दर्शाता है ।   

चरण दर चरण बढ़ता उत्साह

यह उत्साह दोनों चरणों में स्पष्ट दिखा:

चरण 1 (6 नवंबर): 18 जिलों की 121 सीटों पर 65.08% मतदान हुआ । यह अपने आप में एक रिकॉर्ड था, जिसने 2000 के 62.57% के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया था ।   
चरण 2 (11 नवंबर): 20 जिलों की 122 सीटों पर यह उत्साह और भी बढ़ गया, जहाँ मतदान का आंकड़ा 68.76% (कुछ रिपोर्टों में 68.79% ) तक पहुँच गया ।   

कहाँ बरसे सबसे ज़्यादा वोट (और कहाँ रहे सुस्त)?

जब हम जिला-वार आंकड़ों को देखते हैं, तो यह कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है। दूसरे चरण के सीमांचल और कोसी क्षेत्रों  ने मतदान के सारे कीर्तिमान स्थापित कर दिए:   

टॉप परफॉर्मर:

कटिहार: 78.63%  (कुछ स्रोतों में 75.23%  या 79.10%  भी रिपोर्ट किया गया)।   
किशनगंज: 76.26%  (या 78.16% )।   
पूर्णिया: 73.79%  (या 76.45% )।   

पिछड़ने वाले:

नवादा: 57.11%  - यह एकमात्र जिला रहा जो 60% का आंकड़ा भी नहीं छू सका ।   
रोहतास: 60.69%    
मधुबनी: 61.79%    

यह स्पष्ट है कि मतदान में वृद्धि किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक राज्यव्यापी लहर थी। हालाँकि, इस लहर का केंद्र स्पष्ट रूप से सीमांचल (Seemanchal) और कोसी क्षेत्र था । यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह क्षेत्र उच्च मुस्लिम आबादी , उच्च प्रवासन दर , और 2020 में AIMIM की मजबूत उपस्थिति  के लिए जाना जाता है। इन जिलों में 75% से अधिक मतदान का होना अत्यधिक प्रतिस्पर्धा का संकेत है, न कि किसी एक तरफा लहर का।   

बिहार की 'नारी शक्ति' (71.6%) ने कैसे सारा खेल पलट दिया?

इस चुनाव की सबसे बड़ी, सबसे निर्णायक और सबसे ज़बरदस्त कहानी आंकड़ों के भीतर छिपी है। यह कहानी बिहार की महिलाओं की है।

जब महिलाओं ने पुरुषों को मीलों पीछे छोड़ दिया
इस चुनाव में 'साइलेंट वोटर' कही जाने वाली महिलाएँ, निर्णायक मतदाता बनकर उभरी हैं। आंकड़े देखें:

कुल महिला मतदाता मतदान: 71.6%    
कुल पुरुष मतदाता मतदान: 62.8%    

इसका मतलब है कि महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में लगभग 8.8% अधिक मतदान किया । कुछ विश्लेषकों ने इस अंतर को 10 प्रतिशत अंक तक आँका है । यह 2020 के 5.3%  या 2015 के 7.2%  के अंतर से कहीं अधिक बड़ा "जेंडर गैप" है। यह एक 'जेंडर-क्वेक' (Gender-Quake) है।   

तालिका 1: बिहार चुनाव 2025: लिंग-आधारित मतदान का ब्रेकडाउन
श्रेणी            महिला मतदान (%)           पुरुष मतदान (%)       कुल मतदान (%) 
चरण 1           69.04%                        61.56%                65.08%
चरण 2          74.03%                         64.10%                68.76%
कुल (Total)   71.60%                         62.80%                 66.91%

क्यों 'एम-फैक्टर' (M-Factor) बना बिहार का नया 'M-Y'?

दशकों से, राजनीतिक विश्लेषक बिहार की राजनीति को 'M-Y' (मुस्लिम-यादव) समीकरण के चश्मे से देखते आए हैं। लेकिन 2025 का चुनाव 'M-Factor' यानी 'महिला फैक्टर'  का हो सकता है।   

NDA का तर्क: एनडीए का मानना है कि यह अभूतपूर्व महिला मतदान उनकी कल्याणकारी योजनाओं का सीधा परिणाम है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछले 20 वर्षों का ट्रैक रिकॉर्ड, विशेषकर महिलाओं के लिए, एक बड़ा कारक माना जा रहा है । 'जीविका दीदियाँ' , लखपति दीदी योजना, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10,000 रुपये की सहायता  और 125 यूनिट मुफ्त बिजली  जैसी योजनाओं ने महिलाओं को एक ऐसा 'वोट बैंक' बना दिया है जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर शिक्षा, स्वास्थ्य और सबसे बढ़कर, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर वोट करता है ।   

महागठबंधन का प्रति-तर्क: तेजस्वी यादव का तर्क इसके ठीक विपरीत था। उन्होंने दावा किया कि महिलाएँ एनडीए के खिलाफ वोट कर रही हैं क्योंकि वे 'पलायन' (Migration) से त्रस्त हैं और "अपने बेटों को वापस चाहती हैं" ।   

तो, महिलाएँ किसके लिए बाहर निकलीं? स्थिरता के लिए या बदलाव के लिए?

इसका संकेत हमें एग्जिट पोल के गहरे विश्लेषण से मिलता है। मैट्रीज (Matrize) एग्जिट पोल ने एक चौंकाने वाला (लेकिन तार्किक) आँकड़ा दिया: 65% महिला मतदाताओं ने NDA को वोट दिया, जबकि केवल 27% ने महागठबंधन को । यदि यह आँकड़ा 14 नवंबर को सही साबित होता है, तो खेल यहीं खत्म हो जाता है। इसका मतलब है कि नीतीश कुमार का 'महिला-केंद्रित शासन' का मॉडल  तेजस्वी यादव के 'रोजगार/पलायन' के नैरेटिव पर भारी पड़ा है।   

पुरुषों और युवाओं के मुद्दे: 'रोज़गार' की तलाश और 'पलायन' का दर्द

पुरुषों का मतदान (62.8%) - फोकस कहाँ था?
जबकि महिलाएँ रिकॉर्ड तोड़ रही थीं, पुरुषों का मतदान (62.8%)  भी 2020 के 54.45%  की तुलना में काफी अधिक था। पुरुषों और विशेषकर युवाओं  के लिए, मुख्य चुनावी मुद्दे स्पष्ट थे:   

रोज़गार/बेरोज़गारी: यह शायद इस चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा था ।  
पलायन (Migration): यह सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि बिहार के लाखों परिवारों का दर्द है, जो तेजस्वी यादव के अभियान के केंद्र में था ।   
विकास और कानून-व्यवस्था: यह एनडीए का मुख्य नैरेटिव था ।   

युवा मतदाता - क्या 2020 वाला जादू फीका पड़ गया?
बिहार में मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा युवा है । अकेले पहले चरण में ही 10.72 लाख नए मतदाता थे । 2020 में, तेजस्वी यादव ने 'रोजगार' के मुद्दे पर युवाओं को सफलतापूर्वक अपने साथ जोड़ा था। लेकिन 2025 में मुकाबला कड़ा था।   

यह चुनाव मतदाताओं की प्राथमिकताओं में एक स्पष्ट लैंगिक विभाजन (gender split) दिखाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि महिला मतदाताओं (71.6%) ने स्थिरता, सुरक्षा (कानून-व्यवस्था), और प्रत्यक्ष लाभ (कल्याणकारी योजनाएँ) को प्राथमिकता दी , जबकि पुरुष/युवा मतदाताओं (62.8%) ने आर्थिक चिंताओं (नौकरियाँ, पलायन) पर ध्यान केंद्रित किया ।   

पीपुल्स पल्स (People's Pulse) के एक पोलस्टर के अनुसार, 2020 में तेजस्वी के साथ जो 'युवाओं का खिंचाव' (traction with youth) था, वह इस बार नहीं दिखा । यदि यह सच है, तो इसका मतलब है कि 'स्थिरता और सुरक्षा' (NDA का नैरेटिव) की महिला प्राथमिकता, 'आर्थिक चिंता' (MGB का नैरेटिव) की पुरुष प्राथमिकता पर भारी पड़ गई है। 

बिहार की 6  'सुपरहॉट' सीटें: कहाँ फँसी थी दिग्गजों की साँसें?
इस चुनाव में सिर्फ पटना की गद्दी ही नहीं, बल्कि कई दिग्गजों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी दांव पर थी। पाँच सबसे चर्चित सीटों पर मुकाबला बेहद कड़ा रहा:

राघोपुर (वैशाली): यह महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे  तेजस्वी यादव (RJD) का पारंपरिक गढ़ था। उन्हें चुनौती दी सतीश कुमार यादव (BJP) ने, जिन्होंने 2010 में इसी सीट से राबड़ी देवी को हराया था ।   

तारापुर (मुंगेर): यह बिहार के सबसे शक्तिशाली बीजेपी नेताओं में से एक, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (BJP) की सीट थी। उनका मुकाबला अरुण कुमार साह (RJD) से था ।

छपरा: खेसारी लाल यादव (मशहूर भोजपुरी अभिनेता) राजद की टिकट पर आए. ये सीट पिछले 25 सालो से राजद के पहुंच के बहार थी    

लखीसराय: यह एनडीए के दूसरे डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा (BJP) की सीट थी। 2020 में RJD समर्थकों द्वारा उनके काफिले पर हमले के बाद यह एक संवेदनशील सीट बन गई थी । उन्हें अमरेश कुमार (Congress) ने चुनौती दी ।   

अलीनगर (दरभंगा): यह इस चुनाव की सबसे ग्लैमरस सीट थी। बीजेपी ने प्रसिद्ध लोक गायिका मैथिली ठाकुर (BJP)  को RJD के पुराने गढ़ में विनोद मिश्रा (RJD) के खिलाफ उतारकर 'मिथिला' गौरव पर दांव खेला था ।   

जाले (दरभंगा): यह दरभंगा क्षेत्र  में एक और हाई-प्रोफाइल लड़ाई थी, जहाँ राज्य सरकार के मंत्री जीवेश मिश्रा (BJP) के खिलाफ कांग्रेस ने ऋषि मिश्रा को उतारा । 

बयानों के तीर: मोदी का '65-वोल्ट झटका' बनाम तेजस्वी का 'पलायन कार्ड'

यह चुनाव ज़मीन पर जितना लड़ा गया, उतना ही बयानों और नैरेटिव में भी लड़ा गया। दो स्पष्ट ध्रुव थे।

एनडीए का अभियान - "मातृ शक्ति" और "जंगल राज"
एनडीए का अभियान स्पष्ट रूप से दो स्तंभों पर टिका था: पीएम मोदी का चेहरा और 'जंगल राज' का डर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 रैलियाँ कीं । उनके भाषणों के मुख्य अंश थे:   

"जंगल राज": उन्होंने मतदाताओं को RJD के पिछले शासन की याद दिलाते हुए 'जंगल राज'  की वापसी के प्रति बार-बार आगाह किया।   

"65-वोल्ट का झटका": उन्होंने पहले चरण के रिकॉर्ड 65% मतदान को "जंगल राज" की ताकतों के लिए "65-वोल्ट का झटका" (shock) करार दिया ।   

"मातृ शक्ति": उन्होंने इस रिकॉर्ड मतदान का पूरा श्रेय "मातृ शक्ति" (महिलाओं) को दिया, जिन्होंने, उनके अनुसार, 'जंगल राज' को रोकने के लिए "मतदान केंद्रों के चारों ओर एक किला" (fortress) बना लिया । 

महागठबंधन का अभियान - "नौकरी" और "पलायन"
महागठबंधन ने अतीत के बजाय भविष्य की आर्थिक चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया । तेजस्वी यादव ने 155 रैलियों के साथ सबसे सघन अभियान चलाया । उनके मुख्य वादे थे:   

"एक परिवार, एक नौकरी": उनका सबसे बड़ा वादा 20 दिनों के भीतर एक कानून पारित करना था ताकि हर परिवार को एक सरकारी नौकरी मिल सके ।   

"पलायन का दर्द": उन्होंने 'पलायन' को मुख्य मुद्दा बनाया और महिलाओं के मतदान को इससे जोड़ा।

"महिलाएँ अपने बेटों को वापस चाहती हैं": उनका यह बयान  सीधे तौर पर पीएम मोदी के 'मातृ शक्ति' नैरेटिव का जवाब था।   

यह चुनाव "अतीत के डर" (कानून-व्यवस्था का बिगड़ना) बनाम "भविष्य का डर" (बेरोज़गारी/पलायन) का था। मतदान के आंकड़ों और एग्जिट पोल के विश्लेषण से ऐसा लगता है कि पीएम मोदी का "जंगल राज से सुरक्षा" का नैरेटिव, जिसे "मातृ शक्ति" ने समर्थन दिया, तेजस्वी यादव के "पलायन से मुक्ति" के नैरेटिव पर भारी पड़ गया।

2025 का अंतिम एग्जिट पोल: क्या NDA की सुनामी आ रही है?

11 नवंबर की शाम जैसे ही मतदान समाप्त हुआ, लगभग एक दर्जन एग्जिट पोल के नतीजे आए। और अभूतपूर्व रूप से, सभी (10 से अधिक) पोल एकमत थे: एनडीए की प्रचंड वापसी हो रही है ।   

NDTV के 'पोल ऑफ पोल्स' (कई पोल्स का औसत) ने 243 सीटों में से NDA को 146 सीटें, महागठबंधन (MGB) को 91 और जन सुराज को 1 सीट दी । टाइम्स ऑफ इंडिया  और इंडिया टुडे  के 'पोल ऑफ पोल्स' ने भी एनडीए को 145-148 सीटों और MGB को 90 के आसपास सीटों का अनुमान लगाया । बिहार में बहुमत का जादुई आंकड़ा 122 है ।   

एग्जिट पोल एजेंसी    NDA (JDU+BJP+)    MGB (RJD+Cong+)   जन सुराज (PK)   अन्य
Matrize                           147-167             70-90                 0-2         2-8
People's Pulse              133-159              75-101         0-5         2-8
P-Marq                          142-162              80-98                 1-4         0-3
Dainik Bhaskar             145-160              73-91                  0-3          5-7
Chanakya Strategies    130-138              100-108           0          3-5
JVC Polls                     135-150              88-103         0-1          3-6
DV Research                137-152               83-98                 2-4          1-8

प्रशांत किशोर का 'अर्श पे या फर्श पे' दांव?

राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर  ने दावा किया था कि उनकी जन सुराज पार्टी या तो 'अर्श पे' (150 सीटें) होगी या 'फर्श पे' (10-20 सीटें) । एग्जिट पोल ने उन्हें स्पष्ट रूप से 'फर्श' पर दिखाया है। लगभग सभी पोल्स ने जन सुराज को 0-5 सीटों के बीच समेट दिया है , जो MGB या NDA को कोई बड़ा नुकसान पहुँचाता नहीं दिख रहा है ।   

बिहार 2025 का चुनाव दो स्पष्ट नैरेटिव के बीच एक जंग थी। एक तरफ एनडीए का 'जंगल राज' का डर और 'विकास/कल्याण' का वादा था , दूसरी तरफ महागठबंधन का 'पलायन' का दर्द और 'नौकरी' का वादा था ।   

मतदान के आंकड़ों (71.6% महिला मतदान)  और एग्जिट पोल के जनसांख्यिकीय विश्लेषण (65% महिलाओं का NDA को वोट)  को एक साथ देखने पर, तस्वीर स्पष्ट लगती है: 'महिला फैक्टर'  ने 'युवा/रोजगार' फैक्टर को पछाड़ दिया है।   

लेकिन... यह बिहार है। यहाँ राजनीति कभी भी सीधी रेखा में नहीं चलती।

2020 और 2015 का इतिहास हमें सिखाता है कि एग्जिट पोल 'एग्जैक्ट पोल' (सटीक नतीजे) नहीं होते । 2020 में, अधिकांश ने MGB की जीत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन नतीजा NDA (125 सीटें) के पक्ष में आया ।   

RJD  और कांग्रेस  ने इन पोल्स को पहले ही "PMO द्वारा तय" बताकर खारिज कर दिया है। असली फैसला EVM में बंद है, जो 14 नवंबर को खुलेगा । क्या एनडीए की सुनामी आएगी, या तेजस्वी का 'पलायन' का दर्द चुपचाप कोई बड़ा उलटफेर कर देगा? बिहार ने अपना फैसला सुना दिया है; अब बस सुनने का इंतज़ार है । 







Written by - Sagar

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2025-11-12 21:09:53

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