
Vishwakarma Puja: Complete information from history to present in Hindi
विश्वकर्मा पूजा: शिल्प, सृजन और श्रम का महापर्व - एक गहन और प्रामाणिक मार्गदर्शिका
"हर यंत्र में विस्वकर्मा का विस्न, हर शिल्प में उनकी कला का जादू समाया है।"
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत में अनेकों पर्व और उत्सव शामिल हैं, जिनमें से विस्वकर्मा पूजा एक ऐसा अनूठा पर्व है जो शिल्प, विज्ञान और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यह पर्व उन सभी शिल्पियों, इंजीनियरों, वास्तुकारों और मजदूरों के समर्पण और कौशल को समर्पित है जिनके हाथों से हमारा आधुनिक संसार निर्मित हुआ है। आइए जानते हैं इस दिव्य पर्व के बारे में विस्तार से।
सृष्टि के प्रथम अभियंता - कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?
हिंदू धर्म में, भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का दिव्य वास्तुकार, शिल्पकार और अभियंता माना गया है । उन्हें 'सृजन के देवता' और 'ब्रह्मांड का वास्तुकार' कहा जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड, भवन, महल, रथ और देवताओं के अस्त्र-शस्त्रों की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । उन्हें रचनात्मकता, तकनीकी कौशल और नवाचार का प्रतीक भी माना जाता है ।
पौराणिक मान्यताएँ और वंश
भगवान विश्वकर्मा के जन्म और वंश के संबंध में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में कई मान्यताएँ मिलती हैं । अधिकांश ग्रंथ उन्हें सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का वंशज मानते हैं । एक मान्यता के अनुसार, ब्रह्मा के मानस पुत्र धर्म से वास्तुदेव का जन्म हुआ, जिन्हें शिल्पशास्त्र का आदि पुरुष कहा गया, और वास्तुदेव तथा उनकी पत्नी अंगिरसी के पुत्र के रूप में भगवान विश्वकर्मा का अवतरण हुआ । वहीं, कुछ अन्य ग्रंथ उन्हें सीधे तौर पर ब्रह्मा का सातवां पुत्र बताते हैं । उनका सम्मान और प्रभाव सभी शिल्प और निर्माण से जुड़ी विधाओं पर है। और उन्हें 'शिल्प' नामक अवधारणा के ही आदि प्रवर्तक के रूप में स्थापित करता है।
स्कंदपुराण के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा पंचमुख हैं, और उनके पाँच मुखों से क्रमशः मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ नामक पाँच प्रजापतियों को उत्पन्न किया गया था । इन पाँचों पुत्रों को शिल्प और कारीगरी के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधि माना जाता है, और उनके वंशज आज भी इस महान परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं ।
जा का आरंभ और उद्देश्य
विश्वकर्मा पूजा का इतिहास प्राचीन वेदों और पुराणों में मिलता है । यह माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत प्राचीन काल से ही हुई थी, जब कारीगरों और शिल्पकारों ने अपनी कला, कौशल और कार्य के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इस दिन को चुना था । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन संक्रांति के दिन हुआ था, यही कारण है कि इस दिन को उनकी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है । यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हम अपने काम को ईश्वर की सेवा मानकर करें और उन सभी उपकरणों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें जो हमारे जीवन को आसान और समृद्ध बनाते हैं ।
दार्शनिक महत्व
विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह श्रम की प्रतिष्ठा और रचनात्मकता का एक गहरा दार्शनिक प्रतीक है । यह हमें सिखाता है कि कोई भी काम, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, सम्मान के योग्य है । यह पर्व विशेष रूप से उन शिल्पकारों और तकनीकी कर्मियों की भूमिका को मान्यता देता है, जिनका योगदान अक्सर अनदेखा रह जाता है ।
एक दिलचस्प परंपरा के रूप में, इस दिन कारखानों और कार्यस्थलों में मशीनों का उपयोग नहीं किया जाता है । यह परंपरा मशीनों को विश्राम देने के लिए है, ताकि वे अगले साल तक बिना किसी रुकावट के काम कर सकें । यह एक गहरी दार्शनिक समझ को दर्शाता है कि हमारे पूर्वज न केवल उपकरणों की पूजा करते थे, बल्कि उनके स्वास्थ्य और कार्यक्षमता का भी ध्यान रखते थे। यह प्रथा मशीनों को निर्जीव वस्तुओं के बजाय, हमारी प्रगति के जीवित सहयोगी के रूप में देखती है। यह प्राचीन ज्ञान आधुनिक "डिजिटल डिटॉक्स" या "वर्क-लाइफ बैलेंस" की अवधारणाओं के समान है, जहाँ हम अपने उपकरणों से दूरी बनाकर खुद को और उन्हें भी विश्राम देते हैं। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि हमारी समृद्धि हमारे श्रम और हमारे उपकरणों के बीच के सद्भाव पर निर्भर करती है।
वेदों और पुराणों में उल्लेख
भगवान विश्वकर्मा की महिमा का उल्लेख हिंदू धर्म के कई प्रमुख ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में उन्हें ब्रह्मांड (पृथ्वी और स्वर्ग) के निर्माता के रूप में वर्णित किया गया है । स्कंदपुराण, विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में उन्हें देवताओं का वर्धकी (बढ़ई) और शिल्प के ज्ञाता के रूप में सम्मान दिया गया है ।
भगवान विश्वकर्मा की प्रसिद्ध रचनाएँ
भगवान विश्वकर्मा की रचनाएँ केवल संरचनाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे उनकी दूरदर्शिता और दिव्य इंजीनियरिंग का प्रमाण हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ और उनसे जुड़ी कथाएँ इस प्रकार हैं:
स्वर्ग लोक और दिव्य नगरियाँ: उन्होंने देवताओं के लिए स्वर्ग लोक, इंद्रप्रस्थ और कुबेर पुरी जैसे भव्य और कलात्मक नगरों का निर्माण किया, जहाँ देवता सुख-समृद्धि के साथ रहते थे ।
द्वारका नगरी: द्वापर युग में, जब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बुलाया, तो उन्होंने समुद्र के बीच में एक भव्य और टिकाऊ द्वारका नगरी का निर्माण किया था । यह उनकी अद्भुत वास्तुकला का प्रमाण है ।
सोने की लंका: उन्होंने कुबेर के लिए सोने से बनी भव्य लंका का निर्माण किया था, जिसे बाद में रावण ने अपने कब्जे में ले लिया ।
दैवीय अस्त्र-शस्त्र: उन्होंने देवताओं के लिए अनेक शक्तिशाली अस्त्रों का निर्माण किया, जिनमें भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल, इंद्र का वज्र और पुष्पक विमान शामिल हैं । पुष्पक विमान को विश्व का पहला विमान माना जाता है, जो उनकी अद्वितीय इंजीनियरिंग क्षमता का प्रतीक है ।
वास्तु शास्त्र का ज्ञान: यह माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ही वास्तु शास्त्र के जनक हैं । उन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण के लिए जिन नियमों का पालन किया, वे ही आज के वास्तु शास्त्र के आधार बने ।
अद्वितीय कथाएँ
सूर्यदेव का तेज छाँटना: जब भगवान सूर्यदेव का तेज इतना तीव्र था कि उनकी पत्नी उसे सहन नहीं कर पा रही थीं, तब विश्वकर्मा जी ने सूर्यदेव के तेज को तराशकर उसे सहनशील बनाया ।
महर्षि दधीचि की अस्थियों से वज्र का निर्माण: जब वृत्रासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर दिया, तब विश्वकर्मा जी ने महर्षि दधीचि की अस्थियों से इंद्र का वज्र और अन्य अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया, जिससे देवताओं ने वृत्रासुर का वध कर स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्राप्त किया ।
तिथि का निर्धारण: सौर पंचांग का महत्व
विश्वकर्मा पूजा की तिथि एक विशेष सौर घटना पर आधारित होती है, जो इसे अन्य चंद्र-आधारित हिंदू पर्वों से अलग करती है । विस्वकर्मा पूजा हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार भाद्र मास के अंतिम दिन मनाई जाती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सितंबर माह के 16 से 18 तारीख के बीच आती है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इसे कन्या संक्रांति भी कहते हैं ।
कुछ regions में विस्वकर्मा पूजा दीपावली के अगले दिन भी मनाई जाती है, जो चंद्र कैलेंडर पर आधारित है ।
पूजा की विधि (चरण-दर-चरण)
विश्वकर्मा पूजा अत्यंत विधि-विधान के साथ की जाती है। यहाँ पूजा की एक सरल विधि दी गई है:
सफाई और तैयारी: पूजा शुरू करने से पहले, पूजा स्थल और अपने सभी औजारों, मशीनों और उपकरणों की अच्छी तरह से सफाई करें ।
स्थापना: एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान विश्वकर्मा और भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें । मूर्ति के पास एक जल से भरा कलश रखें और उस पर रोली व अक्षत लगाएं ।
पूजा: कलश और भगवान की प्रतिमा पर कुमकुम, अक्षत, फूल और गुलाल चढ़ाएं। धूप और दीपक जलाकर उन्हें पंचमेवा, मिठाई और फल जैसे प्रसाद अर्पित करें ।
औजारों की पूजा: अपने सभी औजारों और मशीनों पर तिलक (रोली और अक्षत) लगाएं और उन पर फूल चढ़ाएं ।
मंत्र जाप और आरती: पूजा के दौरान 'ॐ श्री सृष्टनाय सर्वसिद्धाय विश्वकर्माय नमो नमः' या 'ॐ विश्वकर्मणे नमः' मंत्र का जाप करें । अंत में, भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और सभी में प्रसाद वितरित करें ।
विश्वकर्मा पूजा की आवश्यक सामग्री
पूजा को विधि-पूर्वक संपन्न करने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
प्रतिमा/तस्वीर :- भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति
औजार :- सभी औजार, मशीनें, और उपकरण
आसन :- लकड़ी की चौकी, लाल या पीला वस्त्र
पूजा सामग्री :- अक्षत, कुमकुम, गुलाल, सुपारी, फूल, रक्षासूत्र
भोग सामग्री :- फल, मिठाई, पंचमेवा, दही, इलायची
जल :- जल से भरा कलश, गंगाजल
अन्य :- धूप, दीपक, आरती के लिए कपूर
विशेष सामग्री :- खीरा (विशेष रूप से महत्वपूर्ण)
विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी कुछ अनूठी परंपराएं भी हैं, जो इसे और भी विशेष बनाती हैं। पूजा में खीरा चढ़ाने का विशेष महत्व है, क्योंकि माना जाता है कि इससे भगवान विश्वकर्मा अत्यंत प्रसन्न होते हैं । कुछ क्षेत्रों में, इस दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है । पूजा के बाद, भक्त रात में जागरण करते हैं और अगले दिन हवन आदि करके प्रतिमा का विसर्जन कर सकते हैं ।
समय के साथ विस्वकर्मा पूजा के स्वरूप में परिवर्तन
पारंपरिक रूप से विस्वकर्मा पूजा कुम्हार, लोहार, बढ़ई जैसे पारंपरिक शिल्पी समुदायों द्वारा मनाई जाती थी। लेकिन औद्योगिक क्रांति के बाद इसने एक नया स्वरूप ले लिया और कारखानों, उद्योगों और इंजीनियरिंग से जुड़े लोगों का प्रमुख पर्व बन गया ।
आधुनिक समय में यह पर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर, आर्किटेक्ट और तकनीकी पेशेवरों द्वारा भी मनाया जाने लगा है। अब कंप्यूटर, लैपटॉप और आधुनिक मशीनों की भी पूजा की जाती है, जो इस पर्व के समय के साथ बदलने का प्रमाण है ।
तालिका: विस्वकर्मा पूजा में पारंपरिक और आधुनिक तत्व
पारंपरिक तत्व आधुनिक तत्व परिवर्तन का कारण
हथौड़ा, छेनी कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर डिजिटल तकनीक का विकास
कारीगर समुदाय इंजीनियर, टेक्नीशियन व्यवसायिक बदलाव
स्थानीय कार्यशालाएँ बड़े कारखाने और उद्योग औद्योगीकरण
पारंपरिक गीत और नृत्य सांस्कृतिक कार्यक्रम शहरीकरण
विस्वकर्मा पूजा के रोचक तथ्य
पंचमुखी स्वरूप: कुछ क्षेत्रों में विस्वकर्मा जी के पाँच मुख वाले स्वरूप की पूजा की जाती है जो पाँच प्रकार की सृष्टियों के प्रतीक हैं - सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान ।
दो तिथियाँ: विस्वकर्मा पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है - कन्या संक्रांति (सितंबर) और दीपावली के अगले दिन (अक्टूबर-नवंबर) ।
राष्ट्रीय अवकाश: विस्वकर्मा पूजा नेपाल में राष्ट्रीय अवकाश होता है, जबकि भारत में यह कुछ राज्यों में सीमित अवकाश के रूप में मनाया जाता है ।
विमान निर्माण: विस्वकर्मा जी को विमान निर्माण का जनक भी माना जाता है क्योंकि उन्होंने कुबेर के लिए पुष्पक विमान बनाया था ।
वस्तु शास्त्र: विस्वकर्मा जी को वस्तु शास्त्र और यांत्रिकी विज्ञान का आदि प्रवर्तक माना जाता है ।
"जब भी कोई शिल्प बनता है, कोई यंत्र चलता है, कोई निर्माण होता है - उसके पीछे विस्वकर्मा की ही कला काम कर रही होती है।"
विस्वकर्मा पूजा न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि मानव की सृजनात्मकता और कौशल का उत्सव भी है। यह पर्व हमें श्रम के महत्व और कर्म की गरिमा का सबक सिखाता है। आधुनिक समय में जहाँ मशीनीकरण बढ़ रहा है, वहीं विस्वकर्मा पूजा मनुष्य और मशीन के बीच के सामंजस्य को दर्शाती है।
भगवान विस्वकर्मा का सन्देश स्पष्ट है - "निर्माण करो, सृजन करो, but always with devotion and dedication"। यही कारण है कि आज भी कारखानों से लेकर आईटी फर्म्स तक में यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
विस्वकर्मा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं! May the divine architect bless you with creativity, success and prosperity in all your endeavors!
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