
Complete information of Hindu calendar along with weather, agriculture, health and food
हिंदू पंचांग: समय का एक अद्भुत और रंगीन सफर
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे त्योहार हर साल अंग्रेजी कैलेंडर में अलग-अलग तारीखों पर क्यों आते हैं? या क्यों दिवाली कभी अक्टूबर में तो कभी नवंबर में पड़ती है? इसका रहस्य छिपा है हमारे सदियों पुराने, लेकिन वैज्ञानिक हिंदू पंचांग में। यह सिर्फ तिथियों का संग्रह नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवनशैली का अभिन्न अंग है, जो हमारे त्योहारों, रीति-रिवाजों और कृषि चक्र को दिशा देता है।
हम आमतौर पर जिस ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग करते हैं, वह मुख्य रूप से सूर्य की गति पर आधारित होता है। लेकिन हमारा हिंदू पंचांग थोड़ा खास है – यह चंद्रमा और सूर्य दोनों की गति पर आधारित है, जिसे 'चान्द्रसौर पद्धति' कहते हैं । इसी कारण इसे अधिक वैज्ञानिक माना जाता है। यह केवल समय मापने का एक उपकरण नहीं है; बल्कि यह मानव जीवन के हर पहलू को प्राकृतिक ब्रह्मांडीय लय के साथ जोड़ता है। यह एक 'जीवित' कैलेंडर है, जो हमारे दैनिक जीवन के ताने-बाने में गहराई से बुना हुआ है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि हमारे धार्मिक अनुष्ठान और कृषि गतिविधियां प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलें। यह प्रणाली प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की गहरी समझ को दर्शाती है, जहाँ विज्ञान, आध्यात्मिकता और दैनिक जीवन आपस में जुड़े हुए हैं।
चंद्र-सूर्य का अद्भुत तालमेल: क्यों बदलती हैं हिंदी महीनों की तारीखें?
हिंदू पंचांग के अनुसार, हमारा नव वर्ष चैत्र माह से शुरू होता है और फाल्गुन माह के साथ समाप्त होता है । ये 12 महीने सिर्फ नाम नहीं, बल्कि प्रकृति के बदलते रंगों और जीवन के उत्सवों का प्रतीक हैं।
12 हिंदू महीनों के नाम और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना
हिंदू पंचांग के महीने अंग्रेजी कैलेंडर के महीनों के साथ एक अनुमानित संरेखण साझा करते हैं, जैसा कि नीचे दी गई तालिका में दर्शाया गया है
क्रम संख्या हिंदू महीना अनुमानित अंग्रेजी महीना
1 चैत्र मार्च मध्य - अप्रैल मध्य
2 वैशाख अप्रैल मध्य - मई मध्य
3 ज्येष्ठ मई मध्य - जून मध्य
4 आषाढ़ जून मध्य - जुलाई मध्य
5 श्रावण जुलाई मध्य - अगस्त मध्य
6 भाद्रपद अगस्त मध्य - सितंबर मध्य
7 आश्विन सितंबर मध्य - अक्टूबर मध्य
8 कार्तिक अक्टूबर मध्य - नवंबर मध्य
9 मार्गशीर्ष नवंबर मध्य - दिसंबर मध्य
10 पौष दिसंबर मध्य - जनवरी मध्य
11 माघ जनवरी मध्य - फरवरी मध्य
12 फाल्गुन फरवरी मध्य - मार्च मध्य
अधिकमास (मलमास) का रहस्य: चंद्र और सौर गणना का संतुलन
आपने अक्सर देखा होगा कि हिंदू त्योहारों की तारीखें हर साल अंग्रेजी कैलेंडर में बदल जाती हैं। इसका कारण बड़ा दिलचस्प है! ग्रेगोरियन कैलेंडर मुख्यतः सूर्य की गति पर आधारित होता है, जिसमें एक साल में 365.25 दिन होते हैं और हर चार साल में एक लीप ईयर आता है । वहीं, हिंदू पंचांग के महीने चंद्रमा की गति पर निर्भर करते हैं। चंद्रमा को पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करने में लगभग 27.32 दिन लगते हैं। आमतौर पर, एक चंद्र-माह में 28 दिन होते हैं, और 12 चंद्र-माह में कुल 355 दिन होते हैं ।
अब आप सोचिए, चंद्र वर्ष (355 दिन) और सौर वर्ष (365 दिन) के बीच लगभग 10-11 दिनों का अंतर आ जाता है । अगर यह अंतर ऐसे ही चलता रहे, तो हमारे त्योहार हर साल अलग-अलग मौसम में आने लगेंगे! उदाहरण के लिए, अगर दिवाली हमेशा चंद्र कैलेंडर के अनुसार चलती, तो वह कभी गर्मियों में तो कभी सर्दियों में आती, जिससे उसकी मौसमी और कृषि प्रासंगिकता समाप्त हो जाती।
इस 'समय के गैप' को भरने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे त्योहार सही मौसम में पड़ें (जैसे दिवाली सर्दियों में ही आए), हिंदू पंचांग में एक कमाल का समाधान है: 'अधिकमास' या 'मलमास'। यह एक अतिरिक्त महीना होता है, जिसे लगभग हर 36वें महीने (यानी लगभग ढाई साल में एक बार) जोड़ दिया जाता है । यह बदलाव कोई कमी नहीं, बल्कि एक परिष्कृत डिज़ाइन विकल्प है। यह चान्द्रसौर प्रणाली सुनिश्चित करती है कि कैलेंडर चंद्र चक्रों के साथ-साथ सौर वर्ष के साथ भी संरेखित रहे, जिससे यह कृषि और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अधिक सटीक हो जाता है । यही अधिकमास है जिसके कारण हिंदी महीनों की अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना हर साल थोड़ी आगे-पीछे होती रहती है। यह हमारे पंचांग की वैज्ञानिकता और सटीकता का अद्भुत उदाहरण है!
अधिक मास का नाम
अधिक मास हिंदू पंचांग में हर 2.5 से 3 साल (लगभग 32 महीने, 16 दिन में एक बार) जोड़ने वाला एक विशेष महीना है। इसे मलमास, पुरुषोत्तम मास, मल मास, लोंड मास आदि नामों से भी जाना जाता है।
जिस सामान्य हिंदी महीने के साथ यह पड़ता है, उसी का नाम इसके आगे "अधिक" जोड़कर रख दिया जाता है। जैसे—अधिक श्रावण या अधिक ज्येष्ठ आदि।
अधिक मास कितने दिनों का होता है?
यह सामान्य हिंदी महीने की ही तरह होता है, यानि लगभग 29.5 दिन (एक चंद्र मास की अवधि के बराबर)।
कभी-कभी दिन 29 या 30 हो सकते हैं, यह चंद्र मास पर निर्भर करता है।
अधिक मास कब और किस महीने के बाद आता है?
*अधिक मास का कोई फिक्स्ड स्थान या निश्चित महीना नहीं होता।
*यह हमेशा उस महीने के बाद आता है, जिसके दौरान सूर्य की कोई संक्रांति (सूर्य का राशि परिवर्तन) नहीं होती।
*उदाहरण: यदि श्रावण मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती, तो उसी के बाद अधिक श्रावण जुड़ जाएगा, फिर नॉर्मल श्रावण माह आएगा। जैसे—2023 में अधिक श्रावण जुलाई-अगस्त में था, 2026 में अधिक ज्येष्ठ मई-जून में पड़ेगा।
*इस तरह यह कभी चैत्र, कभी वैशाख, कभी आषाढ़ आदि महीनों के बाद भी आ सकता है, यह खगोलीय स्थिति पर निर्भर करता है।
सारांश तालिका
जानकारी विवरण
नाम अधिक मास (मलमास/पुरुषोत्तम मास/Adhik Maas)
प्रति कितने साल लगभग हर 2.5-3 साल (32 महीने, 16 दिन बाद)
कितने दिन का लगभग 29.5 दिन (चंद्र मास के बराबर)
किस महीने के बाद वह मास जहाँ सूर्य संक्रांति नहीं होती, वही “अधिक” मास कहलाता है
महीनों के नामकरण का आधार: नक्षत्रों से गहरा संबंध
क्या आप जानते हैं कि हमारे हिंदी महीनों के नाम कैसे रखे गए हैं? यह भी एक खगोलीय रहस्य है! हिंदू महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है, उसके आधार पर रखे गए हैं । यह नामकरण परंपरा प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान और उनकी कैलेंडर प्रणाली के बीच एक गहरा संबंध दर्शाती है। ये केवल मनमाने नाम नहीं हैं; वे प्रत्यक्ष खगोलीय मार्कर हैं।
उदाहरण के लिए:
चैत्र मास का नाम चित्रा और स्वाति नक्षत्रों पर आधारित है ।
वैशाख का विशाखा और अनुराधा पर ।
ज्येष्ठ का ज्येष्ठा और मूल पर ।
श्रावण का श्रवण और धनिष्ठा पर ।
भाद्रपद का पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद पर ।
आश्विन का अश्विनी और भरणी पर ।
कार्तिक का कृतिका और रोहिणी पर ।
मार्गशीर्ष का मृगशिरा और आर्द्रा पर ।
पौष का पुनर्वसु और पुष्य पर ।
माघ का मघा और अश्लेषा पर ।
फाल्गुन का पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी और हस्त पर ।
यह नामकरण प्रत्येक महीने में सटीकता और ब्रह्मांडीय महत्व की एक परत जोड़ता है, जो सांसारिक समय-निर्धारण को सीधे आकाश की गतिविधियों से जोड़ता है। यह प्रणाली बताती है कि कैलेंडर ज्योतिषीय भविष्यवाणियों और मानव जीवन पर ब्रह्मांडीय प्रभावों को समझने का एक उपकरण भी था, न कि केवल दिनों को ट्रैक करने का।
चैत्र मास: नव वर्ष का उत्साह और प्रकृति का श्रृंगार
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: चैत्र मास का नाम चित्रा और स्वाति नक्षत्रों पर रखा गया है, क्योंकि इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों में रहता है । यह महीना आमतौर पर मार्च के मध्य में शुरू होकर अप्रैल के मध्य में समाप्त होता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: यह सिर्फ एक महीना नहीं, बल्कि हिंदू नव वर्ष (नव संवत्सर) का उत्सव है, जो होली के बाद शुरू होता है! इसी महीने से नए संकल्प और नई शुरुआत होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माजी ने चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी । भगवान विष्णु ने प्रलयकाल में मनु की नौका को सुरक्षित पहुंचाने के लिए अपना पहला मत्स्य अवतार भी इसी दिन लिया था । यह भक्ति और संयम का महीना माना जाता है। इस दौरान सूर्योदय से पहले उठकर ठंडे पानी से स्नान करना और उगते सूर्य को अर्घ्य देना बेहद शुभ माना जाता है। सूर्य इस माह में अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश करता है, जिससे पद-प्रतिष्ठा, शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है । यह महीना एक समग्र रीसेट है, जो मन, शरीर और कृषि चक्रों को प्राकृतिक दुनिया के साथ संरेखित करता है।
प्रमुख त्योहार: रंग पंचमी (चैत्र कृष्ण पंचमी) और पापमोचनी एकादशी जैसे व्रत इस महीने आते हैं । नव वर्ष की शुरुआत गुड़ी पड़वा और चैत्र नवरात्रि (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से) के साथ होती है। गणगौर का त्योहार भी इसी दौरान मनाया जाता है । भगवान राम का जन्मोत्सव, राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी), और हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) भी इसी महीने की रौनक बढ़ाते हैं ।
कृषि महत्व: किसानों के लिए यह महीना खरीफ की फसलों की बुवाई का सबसे अच्छा समय होता है। मूंग, उड़द, भिंडी, लौकी, तोरई, गिल्की, टमाटर, मिर्च, बैंगन, धनिया, खीरा, ककड़ी, करेला, टिंडा जैसी सब्जियां बोई जाती हैं । धान, मक्का, कपास, सोयाबीन, गन्ना जैसी फसलें भी इसी समय बोई जाती हैं या इनकी देखरेख की जाती है ।
सामाजिक महत्व: नव वर्ष की शुरुआत के साथ ही नए बहीखाते का नवीनीकरण और सभी मंगल कार्यों की शुरुआत होती है। ज्योतिष विद्या में भी ग्रह, ऋतु, मास, तिथि आदि की गणना चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है । चैत्र नवरात्रि आत्मिक उन्नति, शुद्धता और शक्ति का प्रतीक है, जहाँ लोग अपने जीवन को नई दिशा देने के लिए देवी माँ से आशीर्वाद लेते हैं । गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया जैसे पारंपरिक नृत्य देवी पूजा के रूप में आयोजित होते हैं। रामायण, महाभारत, देवी भागवत जैसी धार्मिक कथाएं सुनाई जाती हैं और कन्या पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है ।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: दही और मिसरी का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है । उगते सूर्य को अर्घ्य दें, पेड़-पौधों में पानी डालें और जरूरतमंदों को लाल फल का दान करें ।
क्या न करें: दूध का सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है । कम से कम 15 दिन नमक का सेवन न करें, खासकर हाई बीपी वाले । तली-भुनी चीजों का अत्यधिक सेवन भी पेट संबंधी परेशानी दे सकता है ।
उपलब्ध फल/सब्जियां: इस महीने में तरबूज, मीठे अंगूर, सीताफल, आलू, भिंडी, बैंगन और हरा धनिया खूब मिलते हैं। चना भी खाया जा सकता है । आहार संबंधी सलाह बदलते मौसम (गर्मियों की शुरुआत) के साथ संरेखित होती है, जो मौसमी स्वास्थ्य की प्राचीन समझ का सुझाव देती है। भारी भोजन और दूध से परहेज, जबकि ठंडी चीजों का सेवन, बढ़ते तापमान के अनुकूल होने के लिए एक व्यावहारिक स्वास्थ्य रणनीति
वैशाख मास: दान-पुण्य और अक्षय फल की प्राप्ति
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: वैशाख मास का नाम विशाखा और अनुराधा नक्षत्रों पर रखा गया है, जब इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों में रहता है । यह महीना अप्रैल के मध्य से मई के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: हिंदुओं के लिए यह नववर्ष की शुरुआत का त्योहार भी है, जिसे पंजाब में 'बैसाखी' के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है । यह महीना भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं, इस माह में किया गया दान-पुण्य 'अक्षय फल' देता है, जो जन्म-जन्मांतर तक आपके साथ रहता है । मान्यता है कि त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी महीने में हुई थी । गंगा नदी में स्नान का बहुत महत्व है, क्योंकि माना जाता है कि देवी गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थीं । सूर्य इस माह में मेष राशि में संक्रमण करता है, इसलिए इसे 'मेष संक्रांति' भी कहते हैं ।
प्रमुख त्योहार: बैसाखी , वरुथिनी एकादशी, परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया, मोहिनी एकादशी, बुद्ध पूर्णिमा, वैशाख पूर्णिमा जैसे कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार इस महीने में आते हैं ।
कृषि महत्व: यह महीना खरीफ की फसलों की बुवाई का अच्छा समय होता है, जिसमें मक्का, ज्वार, लोबिया आदि शामिल हैं । गन्ने की फसल में सिंचाई की जाती है। केला और पपीता जैसे फलों को तेज धूप से बचाया जाता है, और कद्दू जैसी फसलों में निदाई, गुड़ाई और सिंचाई का कार्य किया जाता है। अरबी, अदरक, हल्दी की बिजाई भी इसी माह में होती है । यह महीना दान, कृषि और सामाजिक समरसता का संगम है, जो जीवन में संतुलन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता सिखाता है।
सामाजिक महत्व: वैशाख मास में विवाह, मुंडन, जनेऊ जैसे शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है । इस महीने में सुबह जल्दी उठना और जल्दी सोना चाहिए, तथा भूमि पर सोने का प्रयास करना चाहिए। पवित्र नदियों या सरोवर में स्नान करना शुभ माना जाता है, और यदि संभव न हो तो घर में ही नहाने के पानी में काला तिल और गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं । जल को बर्बाद नहीं करना चाहिए। जरूरतमंदों को जल, घड़े, सत्तू, शरबत, खीरा, खरबूज, तरबूज, छाता, जूते, चप्पल का दान करना अच्छा माना जाता है । मां लक्ष्मी की पूजा और विष्णु सहस्त्रनाम व विष्णु चालीसा का पाठ करना चाहिए, साथ ही तुलसी में जल अर्पित करना चाहिए । बैसाखी के अवसर पर पंजाब में फसल कटाई का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें 'आवत पौनी' जैसी सामुदायिक कटाई की परंपराएं हैं, जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देती हैं । नगर कीर्तन और गुरु के लंगर का आयोजन भी होता है, और केरल में 'विशु', असम में 'बोहाग बिहू' जैसे क्षेत्रीय नव वर्ष त्योहार मनाए जाते हैं ।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: जल-युक्त फलों का सेवन बढ़ाना चाहिए, जैसे खीरा, खरबूज, तरबूज ।
क्या न करें: तेल और तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए । बेल का सेवन नहीं करना चाहिए । लहसुन, प्याज, आलू, अदरक, मूली जैसी जमीन में गड़ी हुई सब्जियों का सेवन पूरे महीने नहीं करना चाहिए ।
यह महीना दान, कृषि और सामाजिक समरसता का संगम है, जो जीवन में संतुलन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता सिखाता है।
ज्येष्ठ मास: ग्रीष्म का ताप और जल संरक्षण का संदेश
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: ज्येष्ठ मास का नाम ज्येष्ठा और मूल नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना मई के मध्य से जून के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: यह हिंदू कैलेंडर का तीसरा महीना है, जिसमें सूर्य अत्यंत ताकतवर हो जाता है और भयंकर गर्मी पड़ती है। सूर्य की ज्येष्ठता के कारण ही इस महीने को ज्येष्ठ का माह कहते हैं । इस मास में भगवान सूर्य और वरुण देव की उपासना विशेष फलदायी होती है । मान्यता है कि इसी महीने में गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था । भगवान राम अपने परम भक्त हनुमानजी से इसी महीने में मिले थे, और भगवान शनिदेव का जन्म भी इसी महीने में हुआ था ।
प्रमुख त्योहार: ज्येष्ठ महीने में गंगा दशहरा (गंगा नदी की पूजा) और निर्जला एकादशी (बिना जल का व्रत) जैसे व्रत रखे जाते हैं, जो प्रकृति में जल को बचाने का संदेश देते हैं । बड़े मंगलवार का पर्व भी इसी महीने में हनुमानजी की खास पूजा के साथ मनाया जाता है । वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, पूर्णिमा और संत कबीर जयंती भी इस महीने में आती हैं ।
कृषि महत्व: मान्यता के अनुसार, जितना अधिक ज्येष्ठ मास सूर्य के तप से तपेगा, उतना ही यह विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे आम, लीची, जामुन और कटहल जैसे फलों और सब्जियों के लिए अत्यधिक लाभकारी होगा । इस महीने में जितनी अधिक गर्मी पड़ेगी, उतनी ही वह मानसून के लिए लाभकारी होगी और मानसून का चक्र नियमित होगा । इस महीने में धान का रोपा लगाया जाता है, और हरे चारे (ज्वार, मक्का, ग्वार, लोबिया) की बुवाई की जाती है। मार्च-अप्रैल में बोई गई फसलों की कटाई भी इसी महीने में होती है । यह महीना प्रकृति के साथ सामंजस्य और जल के महत्व को दर्शाता है, जहाँ अत्यधिक गर्मी भी आने वाले मानसून के लिए शुभ संकेत देती है।
सामाजिक महत्व: हिंदू सभ्यता में इस महीने जल के संरक्षण पर विशेष जोर दिया जाता है, क्योंकि इस महीने में सबसे ज्यादा पानी की किल्लत रहती है और सूर्य के रौद्र रूप से धरती में मौजूद पानी का वाष्पीकरण सबसे तेज हो जाता है, जिसके कारण नदियां और तालाब सूख जाते हैं । प्यासे लोगों को पानी पिलाने और जल पिलाने की व्यवस्था करने का विशेष महत्व है । पशु, पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए पानी की व्यवस्था करना चाहिए । जरूरतमंद लोगों को छाते, अन्न, पेय वस्तुओं आदि का दान करना बेहद शुभ माना गया है ।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: हरी सब्जियां, सत्तू और जल वाले फलों का सेवन लाभदायक होता है । दोपहर का विश्राम करना भी लाभदायक है । ठंडे रसीले फलों जैसे खरबूज, तरबूज और आम का दान करना विशेष पुण्यकारी माना गया है ।
क्या न करें: मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए । लहसुन, राई और गर्म चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए । बैंगन का सेवन संतान के लिए शुभ नहीं माना जाता ।
यह महीना प्रकृति के साथ सामंजस्य और जल के महत्व को दर्शाता है, जहाँ अत्यधिक गर्मी भी आने वाले मानसून के लिए शुभ संकेत देती है।
आषाढ़ मास: मानसून का आगमन और देवों का शयन
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: आषाढ़ मास का नाम पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों पर रखा गया है, क्योंकि इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों में रहता है । यह महीना जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: यह हिंदू पंचांग का चौथा महीना है। इस महीने की सबसे महत्वपूर्ण घटना देवशयनी एकादशी है, जिसके बाद जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं । इसी कारण इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, और इस दौरान सभी मांगलिक कार्य (जैसे विवाह) बंद हो जाते हैं । इस महीने को कामना पूर्ति का महीना भी कहा गया है ।
प्रमुख त्योहार: देवशयनी एकादशी , आषाढ़ अमावस्या (स्नान, दान, पितृ कर्म के लिए पवित्र) , गुप्त नवरात्रि (शक्ति की आराधना) , भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा , और गुरु पूर्णिमा/व्यास पूर्णिमा इसी महीने में मनाए जाते हैं।
कृषि महत्व: आषाढ़ माह से ही वर्षा ऋतु की विधिवत शुरुआत मानी जाती है । यह महीना किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी महीने में धान, मड़ुआ, मकई, शामा, कौनी, अरहर, जनेरा, उड़द आदि खरीफ फसलों की बुवाई होती है । ज्येष्ठ महीने की तेज धूप खेतों के विषैले कीटाणुओं को मारने में मदद करती है, जिससे आषाढ़ की फसल के लिए जमीन तैयार होती है । यह महीना प्रकृति के पुनर्जन्म और कृषि चक्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है।
सामाजिक महत्व: चातुर्मास की शुरुआत के साथ संत समाज यात्राएं रोककर एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं । इस माह में जल में जंतुओं की उत्पत्ति बढ़ जाती है, अतः जल की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए । आषाढ़ मास के पहले दिन खड़ाऊं, छाता, नमक तथा आंवले का दान किसी ब्राह्मण को किया जाता है ।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: जलयुक्त फलों का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए, जैसे खीरा, नारियल, केला, तरबूज, खरबूज, कीवी, आड़ू और पपीता । हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन जैसे चावल, दाल, हरी सब्जी और मौसमी फल । सौंफ, हींग और नींबू का प्रयोग फायदेमंद है । उबला हुआ पानी पिएं ।
क्या न करें: बेल का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए । अत्यधिक तेल युक्त खाने और बासी भोजन से परहेज करें । रविवार को भोजन में नमक का प्रयोग न करें । हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें (संक्रमण के खतरे के कारण) । लहसुन, प्याज का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए । पेड़ काटने से बचें ।
यह महीना प्रकृति के पुनर्जन्म और आध्यात्मिक विराम का प्रतीक है, जहाँ प्रकृति अपने चरम पर होती है और मनुष्य आंतरिक शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करता है।
श्रावण मास: शिव भक्ति और प्रकृति का हरा-भरा रूप
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: श्रावण मास का नाम श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: यह महीना भगवान शिव का प्रिय महीना है । इस महीने में किए गए शुभ कर्मों का अत्यंत फल मिलता है । श्रावण अमावस्या आत्मनिरीक्षण, पितृ पूजा और आध्यात्मिक विकास का समय है । इस दिन भगवान विष्णु का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास, ध्यान और प्रार्थना की जाती है । यह पूर्वजों की स्मृति का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद लेने का भी समय है ।
प्रमुख त्योहार: श्रावण अमावस्या , नाग पंचमी और रक्षा बंधन इस महीने के प्रमुख त्योहार हैं। योगिनी एकादशी का व्रत करने से 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है ।
कृषि महत्व: सावन का महीना भारतीय किसानों के लिए एक वरदान है । इस महीने में किसान खरीफ फसलों (धान, मक्का, बाजरा, मूंग, उड़द, सोयाबीन, कपास) की बुवाई करते हैं । सावन से पहले खेत तैयार किए जाते हैं, और बारिश से तालाब, कुएं और नहरों में पानी जमा किया जाता है । हरा चारा भरपूर मिलता है, जिससे पशुओं का दूध बढ़ता है । हालांकि, अत्यधिक बारिश से बाढ़ और कीट-बीमारियों का खतरा भी रहता है । यह महीना आध्यात्मिक शुद्धता और कृषि समृद्धि का संतुलन है, जहाँ प्रकृति की कृपा से जीवन फलता-फूलता है।
सामाजिक महत्व: सावन मास में मौनव्रत रखने का बड़ा महत्व है, खासकर भोजन के समय । रुद्राभिषेक और होम (हवन) कराने का भी महत्व बताया गया है, साथ ही ब्राह्मणों को भोज कराना चाहिए । नागों का पूजन करना चाहिए और उनके नाम से दूध आदि का दान करना चाहिए । तिल के लड्डू भगवान को अर्पित करने के बाद दान करना चाहिए ।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: नींबू पानी, स्मूदी और नारियल पानी पीना चाहिए । ड्राई फ्रूट्स का सेवन करना चाहिए । लौकी, अरबी, कद्दू जैसी सब्जियां और कई तरह के ताजे फल खाने चाहिए । साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का सेवन करना चाहिए । हल्का और सुपाच्य भोजन, फलों का सेवन बढ़ाना (केला, सेब, अनार, पपीता, लीची), तुलसी, अदरक और हल्दी का सेवन, उबला हुआ पानी, सात्विक भोजन (साबूदाना, आलू, फलाहारी डिशेज़) । दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर, छाछ) ।
क्या न करें: तामसिक भोजन (मांस, मछली, अंडे), लहसुन, प्याज (गर्म तासीर के कारण) । हरी पत्तेदार सब्जियां और साग (संक्रमण का खतरा) । बैंगन (कीड़े लगने का डर) । साधारण नमक, हल्दी और मसाले । शराब, तंबाकू, सिगरेट । भारी और मसालेदार भोजन । दही और दही से बनी चीजें । कुछ दालें जैसे मसूर, अरहर, उड़द, चना । बासी भोजन । फास्ट फूड और स्ट्रीट फूड । ठंडी चीजें (आइसक्रीम) ।
यह महीना आध्यात्मिक शुद्धता और कृषि समृद्धि का संतुलन है, जहाँ प्रकृति की कृपा से जीवन फलता-फूलता है।
भाद्रपद मास: गणेश उत्सव और पितृ-तर्पण का समय
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: भाद्रपद मास का नाम पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना अगस्त के मध्य से सितंबर के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: सावन की फुहार के बाद, यह चातुर्मास का दूसरा महीना है । जिस प्रकार सावन भगवान भोलेनाथ को समर्पित है, उसी प्रकार भाद्रपद का महीना जगत के पालनकर्ता श्री हरि भगवान विष्णु को समर्पित है । भाद्रपद का अर्थ है 'अच्छा परिणाम देने वाले त्योहारों का महीना' । इस महीने में ही ऋतु परिवर्तन होता है, यानी वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन भी इसी महीने में होता है ।
प्रमुख त्योहार: इस माह में प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है, जिसे हम गणेश चतुर्थी के नाम से जानते हैं । भाद्रपद मास में ही महालक्ष्मी ने किशोरी श्री राधा रानी के रूप में अवतार लिया है, जिसे राधा अष्टमी के नाम से मनाते हैं । हमारे पूर्वजों की श्राद्ध कर्म तिथियां भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होती हैं ।
कृषि महत्व: इस महीने में चारे की फसलों (ज्वार, बाजरा, नेपियर, बरबटी) की कटाई की जाती है। सूरजमुखी और रामतिल की फसलें लगाई जाती हैं। गन्ने और मूंगफली की निदाई-गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ाई जाती है। धान की फसल में उर्वरक दिए जाते हैं। धान, ज्वार, अरहर, मूंग, उड़द, मक्का, सोयाबीन आदि फसलों से खरपतवार निकाले जाते हैं। मक्के की फसल तैयार होने पर भुट्टे तोड़े जाते हैं, और खेत को रबी की फसल के लिए तैयार किया जाता है। आम और अमरूद के नए बगीचे लगाए जाते हैं, और पपीता में खाद दी जाती है। भिंडी और बरबटी की तुड़ाई होती है ।
सामाजिक महत्व: भाद्रपद मास में हरि नाम कीर्तन, भागवत कथा और पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है । इस माह में भगवान विष्णु सहित माता लक्ष्मी, भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए । अपनी यथाशक्ति के अनुसार दान करना चाहिए, भगवान श्री कृष्ण को तुलसी दल अर्पित करना चाहिए, और गौ माता की सेवा करनी चाहिए । यह महीना भक्ति, शुद्धि और पितरों के सम्मान का प्रतीक है, जहाँ आध्यात्मिक और पारिवारिक कर्तव्य एक साथ निभाए जाते हैं।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: गवार की फली, करेला, परमल, कुंदरू, कटहल, चने जैसी सब्जियां खा सकते हैं । दही की जगह छाछ का सेवन करें । आलू बुखारा, लुकाट, आम, नाशपाती, आड़ू जैसे फलों का सेवन करें । गेहूं, जौ, चने के आटे की रोटी और सरसों का तेल सर्वोत्तम है । तिल का सेवन करें, तिल से बनी मिठाई खाएं ।
क्या न करें: लहसुन, प्याज, शहद, गुड़, दही, बैंगन और तामसिक भोजन का परहेज करना चाहिए । असत्य वचन और कड़वे वचन नहीं बोलने चाहिए । किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए । नारियल के तेल का इस्तेमाल खाने में नहीं करना चाहिए । बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए (रविवार, सोमवार, गुरुवार को विशेष रूप से) । दूसरे व्यक्ति का दिया हुआ भात या चावल नहीं खाना चाहिए । तिल का तेल नहीं खाना चाहिए । हरी सब्जियां और प्रोटीन उत्पाद (दालें) नहीं खानी चाहिए । बासी भोजन नहीं करना चाहिए ।
यह महीना भक्ति, शुद्धि और पितरों के सम्मान का प्रतीक है, जहाँ आध्यात्मिक और पारिवारिक कर्तव्य एक साथ निभाए जाते हैं।
आश्विन मास: पितृ-देवों का मिलन और शक्ति उपासना
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: आश्विन मास का नाम अश्विनी और भरणी नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना सितंबर के मध्य से अक्टूबर के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: यह वर्ष का सातवां महीना है, जिसे देवी-देवताओं और पितरों दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है । इस महीने से सूर्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं, और वातावरण में शनि तथा तमस का प्रभाव बढ़ने लगता है । यह चातुर्मास का तीसरा महीना है, इसलिए इस महीने में भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है ।
प्रमुख त्योहार: आश्विन कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष कहा जाता है, जहाँ पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज जैसे उपाय किए जाते हैं । आश्विन शुक्ल पक्ष को देव पक्ष कहा जाता है, जिसमें शारदीय नवरात्रि मनाई जाती है। यह नवरात्रि शक्ति प्राप्त करने की पूजा मानी जाती है ।
कृषि महत्व: इस महीने में पौधों को लगाना शुभ होता है, जैसे तुलसी, पीपल, बरगद आदि के पौधे ।
सामाजिक महत्व: सनातन परंपरा में आश्विन मास का अत्यंत महत्व है क्योंकि इस पावन मास में पितरों और देवी-देवताओं दोनों की विशेष रूप से पूजा की जाती है । पितृपक्ष के दौरान माता-पिता या पूर्वजों की पुण्य तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए । शारदीय नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को धन, वस्त्र, भोजन, फल, मिष्ठान आदि का दान देने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । दान करते समय अभिमान नहीं करना चाहिए । यह महीना संतुलन और दोहरी उपासना का पर्व है, जहाँ पूर्वजों को सम्मान दिया जाता है और देवी शक्ति की आराधना की जाती है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: गुड़ का सेवन करें (गीला गुड़ और भी अच्छा) । बादाम, काजू, अखरोट जैसे मेवों का सेवन सेहत के लिए ठीक रहता है । आहार हल्का और सुपाच्य ही लें । तुरई, पालक, कद्दू और बैंगन पकाकर खाएं । तिल, अदरक, धनिया, पुदीना, गाजर, मटर आदि का सेवन करें । तिल के तेल की मालिश अच्छी होती है । हरी सब्जियां खूब खाएं ।
क्या न करें: दूध और दूध से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए । करेला का सेवन नहीं करना चाहिए । मांस-मदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए । लहसुन, प्याज, तामसिक भोजन और सफेद तिल का सेवन नहीं करना चाहिए । बासी आहार से बचना चाहिए । बैंगन, मूली, मसूर की दाल, चना आदि का सेवन सही नहीं माना गया है । तले-भुने खाने से बचें । शरीर को ढककर रखें और धूप में घूमने से बचें ।
यह महीना संतुलन और दोहरी उपासना का पर्व है, जहाँ पूर्वजों को सम्मान दिया जाता है और देवी शक्ति की आराधना की जाती है, साथ ही बदलते मौसम के अनुसार आहार में बदलाव का सुझाव भी दिया जाता है।
कार्तिक मास: दीपदान और तुलसी विवाह का पुण्य
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: कार्तिक मास का नाम कृतिका और रोहिणी नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: कार्तिक मास चातुर्मास का अंतिम मास है । इस महीने से शुभता आनी शुरू हो जाती है और देव तत्व मजबूत होता है । यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित है, और इस दौरान उनकी पूजा-अर्चना करने से जीवन में खुशियों का वास होता है और अक्षय फलों की प्राप्ति होती है । मान्यता है कि इसी माह में भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे और मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है ।
प्रमुख त्योहार: कार्तिक अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है । गोवर्धन पूजा, यम द्वितीया, भाई दूज, छठ पूजा, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, प्रबोधिनी अथवा देवोत्थानी एकादशी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा और गुरुनानक जयंती जैसे कई महत्वपूर्ण पर्व इसी महीने में आते हैं ।
कृषि महत्व: इस महीने में तुलसी, आंवला और केले के पौधे लगाना शुभ माना जाता है ।
सामाजिक महत्व: कार्तिक मास में दीपदान करने का विशेष महत्व है । गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । माता तुलसी का पूजन और तुलसी विवाह करवाना सर्वोत्तम होता है, जिससे अविवाहित बालिकाओं का शीघ्र विवाह होता है और दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है । यह महीना देव जागरण और जीवन में शुभता का संचार करता है, जहाँ धार्मिक अनुष्ठानों और दान-पुण्य से जीवन में सकारात्मकता आती है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: स्निग्ध चीजें और मेवे खाने की सलाह दी जाती है । जिन चीजों का स्वभाव गर्म हो और लंबे समय तक ऊर्जा बनाए रखें, ऐसी चीजों को कार्तिक महीने में खाना चाहिए । गुड़ का सेवन रोजाना करना चाहिए, यह भोजन पचाने में मदद करता है, रक्तचाप नियंत्रित करता है और सर्दी-जुकाम-खांसी दूर करता है । तिल का सेवन कर सकते हैं । मूली, केला, सेब, अंगूर, नाशपाती का सेवन सेहत के लिए ठीक होता है ।
क्या न करें: किसी भी तरह की दाल खाने की मनाही की गई है । दोपहर के समय में सोना मना है । बैंगन और करेला नहीं खाना चाहिए । जिन फलों में बहुत सारे बीज हों, उनका त्याग करना चाहिए । मांस, मछली, मदिरा, प्याज, लहसुन, तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए । सरसों के तेल से बनी कोई भी सब्जी या पदार्थ नहीं खाना चाहिए । बासी अन्न नहीं खाना चाहिए । दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
यह महीना देव जागरण और जीवन में शुभता का संचार करता है, जहाँ धार्मिक अनुष्ठानों और दान-पुण्य से जीवन में सकारात्मकता आती है, साथ ही सर्दियों के आगमन के अनुसार आहार में परिवर्तन का सुझाव दिया जाता है।
मार्गशीर्ष मास: भगवान कृष्ण का प्रिय महीना
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: मार्गशीर्ष मास का नाम मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्रों पर रखा गया है । इसे अगहन या मंगसिर के नाम से भी जाना जाता है । यह महीना नवंबर के मध्य से दिसंबर के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष मास का महत्वपूर्ण स्थान है। यह महीना भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है । मान्यता है कि इस महीने के आरंभ से ही सतयुग का आरंभ हुआ था । कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री राम और भगवान शिव का विवाह भी इसी मास में संपन्न हुआ था । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि यह मास उनका ही स्वरूप है । इस मास को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना गया है ।
प्रमुख त्योहार: गीता जयंती इसी माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था । इस माह की पूर्णिमा तिथि भी बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है ।
कृषि महत्व: इस महीने में किसान ग्वार, लोबिया, खीरा, करेला, तुरई, पालक, भिंडी, अरबी और तरबूज जैसी फसलों की बुवाई कर सकते हैं ।
सामाजिक महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था, "जो मनुष्य सुबह जल्दी उठकर मार्गशीर्ष मास में स्नान ध्यान करेगा, उससे मैं प्रसन्न रहूँगा" । इसलिए इस मास में श्री कृष्ण की पूजा-आराधना और ध्यान करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूरे होते हैं । इस महीने में दान करना अच्छा माना गया है। चूंकि सर्दी का मौसम आरंभ हो जाता है, इसलिए ऊनी कपड़े, कंबल, आसन आदि दान करना अच्छा होता है । अन्नदान का सर्वाधिक महत्व है, जिससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । यह महीना भक्ति और ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करता है, जहाँ आध्यात्मिक साधना और दान-पुण्य को विशेष महत्व दिया जाता है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: नए चावल, चिउड़ा, खजूर, बाजरे की रोटी, नारियल और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए । भगवान श्रीकृष्ण को माखन मिश्री, फल और पंचामृत का भोग लगाया जाता है । मखाना, गाय का दही, बताशा, गाय के दूध की चावल या मखाने की खीर और पान भी भोग में शामिल होते हैं ।
क्या न करें: ठंडे पेय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए ।
यह महीना भक्ति और ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करता है, जहाँ आध्यात्मिक साधना और दान-पुण्य को विशेष महत्व दिया जाता है, साथ ही सर्दियों के लिए उपयुक्त आहार का सुझाव भी मिलता है।
पौष मास: सूर्य उपासना और शीत ऋतु का प्रभाव
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: पौष मास का नाम पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्रों पर रखा गया है । इसे आम बोलचाल में पूस का महीना भी कहा जाता है । यह महीना दिसंबर के मध्य से जनवरी के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: हिंदू पंचांग के अनुसार यह वर्ष का दसवां महीना है, जिसमें शीत यानी ठंड का प्रभाव काफी अधिक रहता है । इस माह को भगवान सूर्य और नारायण की पूजा के लिए समर्पित माना जाता है । पौष मास में सूर्यदेव की उपासना 'भग' नाम से करनी चाहिए, जिसे ईश्वर का स्वरूप माना गया है । शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह में जिन पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है, वे तुरंत बैकुंठ लोक को प्राप्त करते हैं । पौष मास को 'खर मास' या 'मलमास' भी कहा जाता है, और इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं ।
प्रमुख त्योहार: पौष मास की अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त पिंडदान और तर्पण करने से पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है । धनु संक्रांति के साथ मलमास प्रारंभ होता है और मकर संक्रांति के साथ समाप्त हो जाता है । इसी मास में देवी शाकंभरी का प्राकट्य हुआ था ।
कृषि महत्व: पौष मास में उड़द की दाल के पकोड़े बनाकर चिड़ियों, कबूतरों और कौवों को खिलाने का विधान है ।
सामाजिक महत्व: पौष मास में सूर्य की उपासना करने का फल अति शीघ्र मिलता है। सुबह जल्दी उठकर उगते सूर्य के दर्शन करने और उन्हें जल अर्पित करने मात्र से ही मनुष्य निरोगी और स्वस्थ हो जाता है, और सभी मनोरथ पूरे होते हैं । लाल रंग के सूर्य नारायण भगवान को लाल मिठाई और लाल कपड़ा अर्पित करना शीघ्र फलदायी होता है । तांबे के लोटे में जल भरकर 'ॐ घृणि सूर्याय नमः' का जाप करके सूर्य को अर्घ्य देने से सुख, समृद्धि, वैभव और सौभाग्य का वरदान मिलता है । तांबे की वस्तु का दान और इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए । यह महीना सूर्य की ऊर्जा और पितरों के आशीर्वाद को समर्पित है, जहाँ ठंड के बावजूद आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: मेवे (ड्राई फ्रूट्स) और स्निग्ध चीजें (तिल, मूंगफली) का सेवन करना चाहिए । चीनी की बजाय गुड़ का सेवन बहुत बढ़िया रहता है । अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन पौष मास में अच्छा होता है । हरी सब्जियां खूब खानी चाहिए । तिल, अदरक, धनिया, पुदीना, गाजर, मटर आदि का सेवन करना चाहिए । तिल के तेल की मालिश अच्छी होती है ।
क्या न करें: ठंडे पानी का प्रयोग स्नान में नहीं करना चाहिए । अत्यधिक भोजन और बहुत ज्यादा तेल-घी का प्रयोग स्वास्थ्य को खराब कर सकता है । मांस-मदिरा, मूली, बैंगन, उड़द-दाल, मसूर, फूल-गोभी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए । तला हुआ भोजन और सूखे मावे को नहीं खाना चाहिए । बुरे वचनों, क्रोध और लोभ-लालच से दूर रहना चाहिए ।
यह महीना सूर्य की ऊर्जा और पितरों के आशीर्वाद को समर्पित है, जहाँ ठंड के बावजूद आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है, और शरीर को गर्म रखने वाले आहार का महत्व बढ़ जाता है।
माघ मास: पवित्रता और कल्पवास का पर्व
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: माघ मास का नाम मघा और अश्लेषा नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना जनवरी के मध्य से फरवरी के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: इस महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और इसमें ढेर सारे धार्मिक पर्व आते हैं । प्रकृति भी इस महीने में अनुकूल होने लगती है । इस महीने में संगम पर, खास तौर से प्रयागराज में, एक महीने का कल्पवास भी किया जाता है, जहाँ कठोर साधना और तपस्या से व्यक्ति शरीर, मन और आत्मा से नवीन हो जाता है । माघ स्नान माता पार्वती ने किया था, जिसके परिणाम में उन्हें भगवान महादेव पति स्वरूप प्राप्त हुए। माता जानकी ने भी माघ स्नान किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें प्रभु श्री राम जी सुंदर वर के रूप में मिले ।
प्रमुख त्योहार: माघ के महीने में संकष्टी चतुर्थी (संतान प्राप्ति), तिला एकादशी (तिल के प्रयोग से स्वास्थ्य और समृद्धि), मौनी अमावस्या (मौन रहकर पाप नाश और आत्मा की शुद्धि), वसंत पंचमी (ज्ञान और विद्या बुद्धि के लिए मां सरस्वती की उपासना), जया एकादशी (ऋणों और कुंडली के दोषों से मुक्ति) और माघी पूर्णिमा (भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की संयुक्त कृपा) जैसे कई महत्वपूर्ण पर्व आते हैं ।
कृषि महत्व: इस महीने में किसान मक्का, मूंग, सूरजमुखी, ज्वार जैसी फसलें बो सकते हैं, और लौकी, करेला, भिंडी जैसी सब्जियां भी बोई जाती हैं ।
सामाजिक महत्व: इस महीने में गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी क्षमतानुसार अन्न-धन का दान करना चाहिए । पवित्र नदियों में स्नान करना पुण्यफलदायी माना गया है, जिससे साधक के सभी पाप-कष्ट दूर होते हैं । माघ में नियमित तुलसी के पौधे पर जल अर्पित करना चाहिए और माता तुलसी की पूजा करनी चाहिए । इस दौरान भोजन, वस्त्र और तिल का दान करना शुभ माना गया है । यह महीना आत्मशुद्धि और ज्ञान का महीना है, जहाँ आध्यात्मिक विकास और दान-पुण्य पर विशेष जोर दिया जाता है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: तिल और गुड़ का सेवन उत्तम माना गया है । घी-खिचड़ी खाना चाहिए । मौसमी सब्जियों और फल के अलावा बादाम, अखरोट जैसे मेवे भी खा सकते हैं । देसी घी का सेवन सही रहता है ।
क्या न करें: मूली और धनिया खाना मना है । मिश्री नहीं खाना चाहिए । मांस-मदिरा समेत तामसिक भोजन का सेवन करने से परहेज करना चाहिए । क्रोध से बचने और अपशब्दों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाती है । घर के बड़े-बुजुर्गों का अपमान नहीं करना चाहिए । लहसुन, प्याज, शहद, बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए । पलंग पर सोने की मनाही होती है (जमीन पर ऊनी कंबल बिछाकर सोएं) । पत्नी का संग न करें और झूठ न बोलें । हेयर कट नहीं कराया जाता ।
यह महीना आत्मशुद्धि और ज्ञान का महीना है, जहाँ आध्यात्मिक विकास और दान-पुण्य पर विशेष जोर दिया जाता है, और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विशिष्ट आहार और जीवनशैली नियमों का पालन किया जाता है।
फाल्गुन मास: रंगों का उत्सव और वर्ष का समापन
नामकरण और अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना: फाल्गुन मास का नाम पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी और हस्त नक्षत्रों पर रखा गया है । यह महीना फरवरी के मध्य से मार्च के मध्य तक रहता है ।
विशेषता और धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में फाल्गुन मास को अत्यधिक पवित्र और शुभ माना जाता है । यह हिंदू वर्ष का आखिरी माह है । यह मास न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है । फाल्गुन मास के आगमन के साथ गर्मी की शुरुआत होती है और सर्दी कम होने लगती है । बसंत का प्रभाव होने के चलते, इस महीने में रिश्तों में मधुरता आती है और पूरा वातावरण मनमोहक रहता है । यह महीना भगवान कृष्ण की उपासना को समर्पित है ।
प्रमुख त्योहार: फाल्गुन मास के दौरान महाशिवरात्रि और होली (होलिका दहन, धुलंडी) जैसे बड़े पर्व आते हैं, जो इस मास की महिमा को और बढ़ाते हैं। विजया एकादशी भी इसी महीने में आती है ।
कृषि महत्व: आयुर्वेद के अनुसार इस महीने में भोजन में अनाज का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए और फलों का सेवन ज्यादा करना चाहिए ।
सामाजिक महत्व: फाल्गुन माह में विशेष प्रकार से अनेक कार्यों के मुहूर्त कहे गए हैं, जैसे विवाह और गृह प्रवेश । इस माह में भगवान शिव शंकर जी महाराज का पूजन करना चाहिए और उन्हें जल अर्पित करना चाहिए । सूर्य नारायण को अर्घ्य देना और दान-पुण्य का विशेष महत्व कहा जाता है । महिलाएं सौभाग्य की वस्तुएं आदि एक दूसरे को समर्पित करती हैं । फाग के मंगल गीत गाए जाते हैं और उल्लास मनाया जाता है । संतान प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की उपासना करें । प्रेम और आनंद की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के युवा स्वरूप और ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु कृष्ण की उपासना करें । अपने बड़ों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलना चाहिए । यह महीना उत्सव, समापन और नई शुरुआत की तैयारी का प्रतीक है, जहाँ वर्ष का अंत रंगों और खुशियों के साथ होता है, और नए वर्ष के लिए ऊर्जा का संचार होता है।
स्वास्थ्य और खान-पान:
क्या करें: शीतल या सामान्य जल से स्नान करें । अपनी क्षमता के अनुसार शुद्ध घी, सरसों का तेल, मौसमी फल, अनाज और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए । स्नान के जल में सुगंधित केवड़ा मिलाकर नहाएं और चंदन की सुगंध का प्रयोग करें, इससे मानसिक तनाव दूर होता है । घी, खिचड़ी का सेवन कर सकते हैं । मौसमी साग-सब्जियां, गाजर, कच्चा चना (भूनकर), गुड़ का सेवन करना चाहिए । व्यायाम और सुबह की सैर महत्वपूर्ण है.
क्या न करें: सोते समय ज्यादा गर्म कंबल नहीं ओढ़ने चाहिए । रात्रि के समय भोजन में अनाज का प्रयोग कम से कम करें । नशीली चीजों और मांसाहार का सेवन बिल्कुल न करें । तामसिक भोजन नहीं खाना चाहिए । चने का सेवन (कच्चा) मना है, क्योंकि इससे व्यक्ति बीमार पड़ सकता है । ज्यादा मीठा और तली-भुनी चीजें नहीं खानी चाहिए ।
यह महीना उत्सव, समापन और नई शुरुआत की तैयारी का प्रतीक है, जहाँ वर्ष का अंत रंगों और खुशियों के साथ होता है, और नए वर्ष के लिए ऊर्जा का संचार होता है, साथ ही बदलते मौसम के अनुसार आहार और जीवनशैली में बदलाव का सुझाव दिया जाता है।
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