
Purvi Geet: प्राचीन काल से आधुनिक समय तक की यात्रा | हिंदी में
पूर्वी गीतों का सफर: इतिहास, विकास और सांस्कृतिक महत्व
पूर्वी गीत, जिन्हें अक्सर भारतीय लोक संगीत के रूप में जाना जाता है, पूर्वी गीतों ने हमारी संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। ये गीत न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं।
पूर्वी गीतों का इतिहास और उद्गम
भारतीय लोक संगीत की जड़ें प्राचीन काल में हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि ये गीत वैदिक काल (लगभग 1500 ईसा पूर्व) से उत्पन्न हुए हैं। सामवेद में संगीत के प्रारंभिक रूपों का उल्लेख मिलता है, जहां मंत्रों को तीन से सात स्वरों में गाया जाता था। लोक संगीत, हालांकि, बिना किसी औपचारिक नियमावली के मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा। उदाहरण के लिए, पांडवानी, जो मध्य भारत में लोकप्रिय है, को महाभारत काल से जोड़ा जाता है और यह भीम की वीरता का वर्णन करता है। इस तरह, पूर्वी गीतों का इतिहास सहस्राब्दियों पुराना है।
अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्वी प्रांत में भी, महिलाएं अपने दुख और संघर्ष को व्यक्त करने के लिए विलाप-गीत गाती हैं। ये गीत मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि अपने दुख को व्यक्त करने, अपने खोए हुए प्रियजनों से संवाद करने और राजनीतिक घटनाओं की आलोचना करने का माध्यम बनते हैं। ये महिलाएं चार दशकों से अधिक समय से चली आ रही नागरिक अशांति के परिणामस्वरूप अपनी आंतरिक भावनाओं और पीड़ा से निपटने के लिए गायन का सहारा लेती हैं।
सांस्कृतिक विविधता: अरबी मकाम, भारतीय राग, और पर्शियन संगीत जैसी शैलियों ने पूर्वी गीतों को समृद्ध किया।
पूर्वी गीतों के प्रकार और विविधता
पूर्वी गीतों में विभिन्न प्रकार के गीत शामिल हैं, जिनमें पूरबी, चैती, काजरी, सोहर, विवाह गीत और अन्य लोक गीत शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक का अपना विशिष्ट संगीत, ताल और गायन शैली है।
पूर्वी गीतों के लिए किसी एक को नामित करना संभव नहीं है, क्योंकि ये गीत सामूहिक सांस्कृतिक प्रयासों का परिणाम हैं। हालांकि, भारतीय संगीत के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व उल्लेखनीय हैं। अमीर खुसरो (13वीं सदी) को हिंदुस्तानी संगीत का एक प्रमुख योगदानकर्ता माना जाता है, जिन्होंने कई रागों और संगीत शैलियों की नींव रखी, जो बाद में लोक संगीत को प्रभावित करती रहीं। आधुनिक समय में, रवींद्रनाथ टैगोर ने रवींद्र संगीत के माध्यम से बंगाली लोक संगीत को एक नई पहचान दी, जो पूर्वी गीतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भारतीय संगीत में योगदान: तानसेन (मुगल सम्राट अकबर के दरबारी संगीतज्ञ) को भारतीय शास्त्रीय संगीत का पितामह माना जाता है।
भोजपुरी पूर्वी गीत (पुरबी गीत) विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। ये गीत अत्यंत मधुर होते हैं और अक्सर प्रेम, विरह, प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। जैसा कि भोजपुरी पूर्वी गीत में देखा जा सकता है, "ये पूर्वी गीत आपके दिल में बस जायगा इतना मधुर है"- जिसमें प्रेम की भावना व्यक्त की गई है।
पूर्वी गीतों में धार्मिक संबंध
पूर्वी गीतों का धर्म से गहरा संबंध है। कई पूर्वी गीत धार्मिक त्योहारों, अनुष्ठानों और परंपराओं से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले गीत, होली और दीवाली के त्योहारों पर गाए जाने वाले गीत, और विवाह जैसे धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान गाए जाने वाले गीत पूर्वी संगीत परंपरा का हिस्सा हैं।
भजन, कीर्तन, और कव्वाली जैसे संगीत रूप भारतीय धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा हैं। ये गीत मंदिरों, मस्जिदों, और गुरुद्वारों में गाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, होली के दौरान राधा-कृष्ण की प्रेम कथाओं पर आधारित गीत गाए जाते हैं, जैसे "होरी खेले नंदलाल बिरज में"। सूफी कव्वालियां, जैसे कि "ख्वाजा मेरे ख्वाजा", भी पूर्वी संगीत का हिस्सा हैं और आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा देती हैं।
पूर्वी गीतों का विकास और परिवर्तन
पूर्वी गीतों का स्वरूप समय के साथ बदला है। प्राचीन काल में ये गीत मुख्यतः मौखिक परंपरा के माध्यम से गाए जाते थे, जिनमें ढोलक, हारमोनियम जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता था। आधुनिक युग में तकनीकी विकास के कारण पूर्वी गीतों की रिकॉर्डिंग, संगीत संयोजन और प्रस्तुति में बदलाव आया है, लेकिन इन गीतों की मूल भावना और सांस्कृतिक जड़ें बनी हुई हैं
पारंपरिक से आधुनिक तक:
मध्यकाल: सूफी संगीत और भक्ति गीतों ने प्रेम और आध्यात्मिकता को केंद्र बनाया।
20वीं सदी: फ़िल्मी संगीत (जैसे लता मंगेशकर और नौशाद के गीत) ने पूर्वी गीतों को नया आयाम दिया।
21वीं सदी: फ्यूजन संगीत (जैसे ए.आर. रहमान के प्रयोग) ने पूर्वी स्वरों को ग्लोबल बनाया।
पूर्वी गीतों में संगीत की विशेषताएं
सरल और भावपूर्ण स्वरूप: पूर्वी गीतों का संगीत सरल, सहज और भावपूर्ण होता है, जिससे आम लोग भी उसे आसानी से समझ और गा सकें। ये गीत सीमित स्वरों के भीतर रहते हैं और लय प्रधान होते हैं, जिससे सुनने वाले सहज ही ताल पर ताली बजाने लगते हैं।
स्वर और लय का संयोजन: पूर्वी गीतों में स्वर (मधुरता) और लय (ताल) का समन्वय होता है, जो गीत को जीवंत और आकर्षक बनाता है। गीतों में शब्दों का संगीत के साथ मेल भावनाओं को गहराई से व्यक्त करता है।
पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग: पूर्वी गीतों में ढोलक, हारमोनियम, सारंगी, बांसुरी जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है, जो गीतों की लोकधुन को बनाए रखते हैं। इन वाद्यों के साथ गीतों में ताल और लय की मजबूती आती है।
भावनात्मक अभिव्यक्ति: पूर्वी गीतों में प्रेम, विरह, सामाजिक और धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रमुख होती है। गीतों के बोल जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे प्रेम, दुख, त्योहार, और सामाजिक परिस्थितियों को दर्शाते हैं।
मौखिक परंपरा और लोक संस्कृति से जुड़ाव: पूर्वी गीत मुख्यतः मौखिक परंपरा के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी संचारित होते आए हैं, जो उनकी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत बनाता है। ये गीत सामाजिक और धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा होते हैं।
राग और ताल का प्रभाव: पूर्वी गीतों में भारतीय शास्त्रीय संगीत के राग और तालों का प्रभाव भी देखा जाता है, जिससे गीतों में एक आध्यात्मिक और सांगीतिक गहराई आती है।
लय और गति में विविधता: पूर्वी गीतों में लय और गति की विविधता होती है, जो गीत के मूड और भाव के अनुसार बदलती रहती है। कुछ गीत धीमे और मार्मिक होते हैं, जबकि कुछ उत्साहपूर्ण और नृत्यप्रधान होते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य और रोचक जानकारियां
पूर्वी गीत अक्सर विलाप के रूप में गाए जाते हैं, जिसमें गायक अपने दुख और पीड़ा को व्यक्त करता है।
1. पूर्वी गीतों में प्रयुक्त वाद्य यंत्रों में ढोलक, हारमोनियम, और बांसुरी शामिल हैं।
2. भोजपुरी पूर्वी गीत अक्सर प्रेम, विरह, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं।
3. मध्य पूर्वी संगीत में अनेक प्रकार के संगीत शामिल हैं, जैसे हाउस टेक्नो, धार्मिक संगीत, शास्त्रीय संगीत, नृत्य संगीत, और लोक संगीत।
4. पीटर गेब्रियल जैसे पश्चिमी कलाकारों ने भी पूर्वी संगीत से प्रेरणा ली है।
पूर्वी गीतों के कुछ प्रमुख गायक
शारदा सिन्हा— बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका, जो छठ पूजा और भोजपुरी गीतों के लिए जानी जाती हैं।
महेंद्र मिश्र — बिहार के लोक संगीत के एक महत्वपूर्ण गायक।
विंध्यवासिनी देवी — पारंपरिक लोक गीतों की प्रसिद्ध गायिका।
रामचतुर मल्लिक — बिहार के लोक संगीत के क्षेत्र में प्रसिद्ध।
पवन सिंह— भोजपुरी संगीत के सुपरहिट गायक।खेसारी लाल यादव— भोजपुरी गीतों के लोकप्रिय गायक।
रितेश पांडेऔर शिल्पी राज — वर्तमान समय के लोकप्रिय भोजपुरी गायक और गायिकाएं।
गुंजन सिंह — भोजपुरी संगीत के प्रसिद्ध गायक।
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Written by - Sagar
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