
Sohar Songs History: Sohar Geet, Origins, Religious Significance & Famous Singers
सोहर: जन्म के उल्लास से आधुनिक धुन तक - एक मधुर यात्रा
भारतीय संस्कृति में हर महत्वपूर्ण पड़ाव को संगीत और उत्सव के रंगों से सजाया जाता है। इन्हीं में से एक है 'सोहर गीत', जो घर में नन्हे मेहमान के आगमन पर गाया जाने वाला एक मंगलमय लोकगीत है। यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि खुशियों, परंपराओं और भावनाओं का एक बहुरंगी ताना-बाना है, जो पीढ़ियों से भारतीय घरों के आँगन में गूँजता आ रहा है।
सोहर गीत क्या है? एक मंगलमय परिचय
सोहर गीत भारतीय लोक संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे विशेष रूप से संतान के जन्म पर, खासकर पुत्र के जन्म पर, गाया जाता है । ये गीत खुशी और उल्लास से भरे होते हैं, जो परिवार में नए सदस्य के आगमन का जश्न मनाते हैं। यह केवल बच्चे के जन्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सतमासा (गर्भावस्था के सातवें महीने की रस्म), छठी (जन्म के छठे दिन), बरही (बारहवें दिन), और यहाँ तक कि रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी जैसे धार्मिक त्योहारों पर भी भजन के रूप में गाए जाते हैं ।
सोहर गीत पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, जहाँ ये मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं और अपनी कर्णप्रियता के लिए जाने जाते हैं । इन गीतों में बच्चे के जन्म से जुड़ी कहानियाँ, परिवार के सदस्यों से संबंधित बातें, पकवानों और त्योहारों का सुंदर वर्णन मिलता है । सोहर एक ऐसा गीत है जो नए जीवन के स्वागत में पूरे घर को आनंद और उत्सव से भर देता है।
सोहर का अर्थ और सांस्कृतिक महत्व
'सोहर' शब्द का शाब्दिक अर्थ 'सुंदर' या 'शुभ' होता है, और इसे 'मंगल गीत' के रूप में जाना जाता है । यह मनुष्य के जीवन के प्रथम संस्कार (पुत्र जन्म) से जुड़ा गीत है , जो घर में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। सोहर गीत गाने से बच्चे की कोमलता को दर्शाया जाता है, और यह स्त्री के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव, यानी मातृत्व को भी दर्शाता है । यह गीत परिवार में एक नए सदस्य के आगमन पर होने वाले आनंद और उत्साह को व्यक्त करने का एक पारंपरिक माध्यम है।
वेदों और शास्त्रों में सोहर का उल्लेख
भारत में लोकगीतों का प्रारंभ सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से माना जाता है । सोहर भी इसी प्राचीन परंपरा का हिस्सा है। तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस में सोहर का स्पष्ट उल्लेख किया है, जहाँ श्री रामचंद्र के जन्म पर अयोध्या में मंगल गीत गाए जाने का सुंदर वर्णन मिलता है । इसी प्रकार, वाल्मीकि रामायण के बालकांड में भी श्री राम के जन्म के अवसर पर गंधर्वों और अप्सराओं द्वारा नाच-गाकर उत्सव मनाने और मंगल गीत गाने का उल्लेख मिलता है, जिसे सोहर का ही एक प्राचीन रूप माना जाता है । कुछ सोहर गीत महाकाव्य महाभारत से भी संबंधित पाए जाते हैं, जो पांडवों के पुनर्जन्म के रूप में देखे जाने वाले लोक नायकों जैसे आल्हा और उदल का महिमामंडन करते हैं । यह दर्शाता है कि सोहर की परंपरा केवल मौखिक नहीं, बल्कि शास्त्रीय और धार्मिक साहित्य में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है।
राम और कृष्ण जन्म प्रसंग में सोहर की परंपरा
सोहर गीतों में राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी शामिल होती हैं। रामनवमी और कृष्णाष्टमी के अवसर पर भजन के साथ सोहर गाने की एक पुरानी और पवित्र परंपरा है । उदाहरण के लिए, सोहर में कौसल्या द्वारा राम को और देवकी द्वारा कृष्ण को जन्म देने का प्रसंग गाया जाता है। हनुमान के जन्म का उल्लेख भी कई सोहरों में मिलता है, जहाँ उनके जन्म पर महल में सोहर उठने की बात कही गई है । ये गीत भगवानों, देवियों, गुरुओं और पारंपरिक संस्कृति के महत्व की प्रशंसा करते हैं, और लोगों को संस्कारों तथा धार्मिक मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करने में सहायक होते हैं ।
समय के साथ बदलता सोहर का स्वरूप
सोहर गीत समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें इसकी प्रस्तुति, विषय-वस्तु और वाद्य यंत्रों के उपयोग में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं।
परंपरागत सोहर: गर्भाधान से बरही तक की यात्रा
सोहर गाने की परंपरा गर्भाधान से शुरू होकर शिशु के जन्म, छठी (छठे दिन की रस्म) और बरही (बारहवें दिन की रस्म) तक चलती है, और बरही के दिन समाप्त होती है । पहले गर्भाधान के समय भी गीत गाए जाते थे, हालांकि अब यह परंपरा उतनी प्रचलित नहीं है । पारंपरिक सोहर में गर्भवती स्त्री की विशेष इच्छाओं, पीड़ाओं और उनके प्रियतम के साथ उनके संबंधों का भी मार्मिक वर्णन मिलता है ।
पुत्र जन्म के बाद घर में उत्साह का माहौल होता है। गाँव भर की स्त्रियाँ 'बलावा' (बुलावा) पाकर आती हैं और मिलकर सोहर गाती हैं। उन्हें उपहार भी दिए जाते हैं । छठी के दिन घी का दीपक जलाकर काजल बनाया जाता है, जिसे बच्चे की आँखों में लगाया जाता है। यह भी मान्यता है कि छठी के दिन ही ब्रह्मा आधी रात को बच्चे का भाग्य लिखते हैं ।
सोहर की परंपरा का गर्भाधान से बरही तक चलना केवल जन्म के उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्त्री के मातृत्व के पूरे अनुभव, उसकी शारीरिक और भावनात्मक यात्रा को दर्शाता है। यह लोकगीत के माध्यम से महिलाओं के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों और उनसे जुड़ी मान्यताओं को संरक्षित करने का एक अनूठा तरीका है। यह एक जैविक घटना को एक समृद्ध सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभव में बदल देता है, जो पारंपरिक सामाजिक ढांचे के भीतर स्त्रीत्व और प्रजनन क्षमता के अक्सर अनकहे पहलुओं को आवाज देता है।
आधुनिक सोहर: नए रंग, नई धुनें और बढ़ता प्रभाव
आजकल कई नए कलाकारों ने सोहर गीतों को नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है, जिससे इसकी लोकप्रियता कई पीढ़ियों तक बढ़ी है । यह अब किसी एक वर्ग विशेष तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लोगों द्वारा गाया जाता है । सोहर ने मुस्लिम संस्कृति को भी प्रभावित किया है, और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम परिवार भी सोहर गीत गाते हैं, यहाँ तक कि इससे पैसा भी कमाते हैं । यह दो संस्कृतियों के मिलन का एक स्पष्ट संकेत है।
वाद्य यंत्रों का साथ: तब और अब
परंपरागत रूप से, सोहर गीत मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा बिना किसी वाद्य यंत्र के गाए जाते थे । हालांकि, कुछ संदर्भों में ढोलक, डफ, खँजड़ी और शहनाई जैसे वाद्य यंत्रों का उल्लेख मंगल कार्य या लोकगीतों के साथ किया गया है। यह दर्शाता है कि कुछ सरल ताल वाद्यों का प्रयोग हो सकता था।
आधुनिक सोहर गीतों में संगीत और वाद्य यंत्रों का प्रयोग काफी बदल गया है। पुराने गानों में सुर, राग, लय और धुन की पवित्रता थी, जो सुनने में सुकून देती थी। वहीं, नए गानों में अक्सर ऊँचा म्यूजिक, ऑटोट्यून और कभी-कभी अश्लीलता भी देखने को मिलती है, जिससे सुनने वालों को सिरदर्द हो सकता है । आजकल इलेक्ट्रॉनिक संगीत उपकरण जैसे सिंथेसाइज़र, माइक्रोफोन और इलेक्ट्रॉनिक स्वर पेटी का उपयोग किया जाता है, जो ध्वनि की तीव्रता और विस्तार को बढ़ाते हैं ।
कुछ प्रसिद्ध सोहर और उनके बोल:
गायक: अलका याग्निक और उदित नारायण, गीतकार: समीर, "जुग जुग जियसु ललनवा": यह सबसे लोकप्रिय सोहर गीतों में से एक है, जिसे अक्सर नए मेहमान के आगमन पर गाया जाता है । इसके बोल हैं: "जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो। ललना लाल होइहे, कुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो।" यह गीत बच्चे के दीर्घायु और परिवार के लिए सौभाग्य लाने की कामना करता है, उसे कुल का दीपक मानता है।
मोना सिंह के सोहर: मोना सिंह ने कई कर्णप्रिय सोहर गाए हैं। उनका एक प्रसिद्ध गीत है: "कहवा से आवेला पियरिया पियरिया लागल झालरी जी, ललना कहावा से आवेला सन हो रावा सन हो रवा से नूरा जी।" यह गीत बच्चे के आगमन पर होने वाले श्रृंगार और उत्सव की तैयारियों का वर्णन करता है। उनका एक अन्य गीत "बबुआ हमार महाराज हुई है राजाधिराज हुई है" बच्चे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता है।
करिश्मा राठौर के सोहर: करिश्मा राठौर ने अपनी मधुर आवाज में "सोने के कटोरिया में दूध भात" जैसे सोहर गाए हैं, जो यशोदा द्वारा कान्हा को खिलाने का सुंदर वर्णन प्रस्तुत करते हैं। उनका एक और महत्वपूर्ण गीत है: "धन धन भाग आंगन बाजे बाज बजाना वानु हो ललना जब कुखी बेटी जना मालियो कुख होला पावन।" यह गीत बेटी के जन्म पर भी खुशी का इजहार करता है, जो पुत्र-प्रधान सोहर परंपरा में एक महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य बदलाव को दर्शाता है।
देवी चंद्रकला जी के सोहर: मानस विदुषी देवी चंद्रकला जी द्वारा गाया गया सोहर, विशेषकर राम जन्म के पावन अवसर पर, अत्यंत अद्भुत और भक्तिपूर्ण होता है। उनके गीत के बोल हैं: "चैत महीना बड़ा पावन अति मन भावन अति मन भवन हो, मई है राम जी के हां मैं राम जी के भाई ले जावा महल उठे सोहर महल उठे सोहर हो।" यह भक्ति और लोक परंपरा का एक सुंदर संगम प्रस्तुत करता है।
अनु दुबे के सोहर: अनु दुबे के सोहर आधुनिक श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध गीत हैं: "सर पे काले काले बाल होरिलवा के", "बबुआ हमार DM होइहे", और "राम जी के भइले जनमवा" । ये गीत बच्चे के रूप, उसके भविष्य की आकांक्षाओं और धार्मिक प्रसंगों को आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत करते हैं।
अंजू उपाध्याय अमृत के सोहर: अंजू उपाध्याय अमृत के सोहर में वैवाहिक जीवन और स्त्री की भावनाओं के विभिन्न पहलू देखने को मिलते हैं। उनके गीत के बोल हैं: "ऊंची ऊंची बखरी ससुर जी के तबो ना ब यार बहे तबो ना ब यार बहे हो राजा धीरे धीरे बेनिया डोलावा गरम मोरे ला गई गरम मोरे ला गई।"
क्षेत्रीय सोहर (अवधी, मैथिली) के उदाहरण:
अवधी सोहर: "मछिया ही भाई की है सांसों होत बहु हरिया राज करे बहु हरिया राज करे हो मोरी सासू निहुरी नेहोरी पैया लागे होत काऊ मोर आशीष हो।" यह गीत सास-बहू के संबंधों और परिवार के भीतर के रिश्तों को दर्शाता है।
मैथिली सोहर: संगीता झा का "जनमल श्रीरघुनंदन सुनि नभ क्रंदन रे" और रागिनी मिश्रा का "नाचु ने हमरो अंगनमा यौ मोहन" जैसे गीत भगवान राम और कृष्ण के जन्म पर आधारित हैं। एक अन्य मैथिली सोहर परिवार के सदस्यों के बीच के रिश्ते और बच्चे के जन्म पर होने वाले खर्च का वर्णन करता है: "हम कह लियो दीदी के नैला दीदी मुंह फुले रे... सब ब िया मौसी के मौसी गीत गाइस रे बाप तो हर अलबेला रे बहुआ सब धन देतो लुटाई रे।"
इन गायकों और उनके गीतों ने सोहर की परंपरा को जीवंत बनाए रखा है और इसे नई पीढ़ियों तक पहुँचाया है, जिससे यह लोकगीत आज भी भारतीय घरों में खुशियों का संचार करता है।
सामाजिक और भावनात्मक पहलू: खुशी और वेदना का संगम
सोहर केवल खुशी का गीत नहीं है; यह स्त्री के मन का सच, उसकी वेदना और सामाजिक सच्चाइयों को भी व्यक्त करता है । इसमें बाँझ स्त्री की हीन दशा और पुत्रवती होने पर उसके सम्मान की वापसी की मार्मिक प्रस्तुति होती है। भारतीय समाज में बाँझ स्त्री को अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता था, लेकिन पुत्र जन्म के साथ ही उसका सम्मान लौट आता था। सोहर में इस सामाजिक सत्य और उससे जुड़ी वेदना को आवाज़ दी जाती है ।
इसके अलावा, सास-ननद के संबंधों की कटुता और प्रसन्नता, पति का प्यार और रूठना जैसे विषय भी सोहर में शामिल होते हैं । यह गीत सामाजिक विषमताओं और पुरुष-स्त्री के बीच के भेदभाव पर भी टिप्पणी करता है, अक्सर सीता की कथा के माध्यम से नारी की मूल्यहीनता को दर्शाया जाता है, जहाँ परम खुशी में भी परम दुःख का चित्रण एक विचित्र घटना के रूप में सामने आता है ।
सोहर की लोकप्रियता और भविष्य
सोहर गीत अपने प्रियजनों और बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करने का एक संगीतमय माध्यम है, जिसके द्वारा परिजन अपने मन की खुशी और उल्लास को प्रकट करते हैं । इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कई फिल्मों में भी सोहर गीत गाए गए हैं, जिससे इसकी पहुंच और भी व्यापक हुई है ।
हालांकि, पारंपरिक और आधुनिक सोहर के बीच गुणवत्ता का अंतर एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है। पुराने सोहर गीत अपनी मधुरता, अर्थपूर्ण बोल और पवित्रता के कारण दशकों बाद भी लोकप्रिय हैं, जबकि नए गाने अक्सर जल्द ही भुला दिए जाते हैं । यह गुणवत्ता और मौलिकता के महत्व को दर्शाता है।
Conclusion: सोहर: एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर
सोहर गीत भारतीय संस्कृति की एक जीवंत और मधुर धरोहर है, जो केवल एक लोकगीत नहीं, बल्कि जीवन के उत्सवों, सामाजिक सच्चाइयों और मानवीय भावनाओं का एक सुंदर संगम है। इसकी प्राचीन जड़ें, धार्मिक ग्रंथों में उपस्थिति, समय के साथ बदलते स्वरूप और विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने की क्षमता इसे अद्वितीय बनाती है।
यह गीत न केवल नए जीवन के आगमन का जश्न मनाता है, बल्कि महिलाओं की आवाज़ को भी बुलंद करता है, उनकी खुशियों और संघर्षों को व्यक्त करता है। सोहर की यात्रा, उसकी उत्पत्ति के सिद्धांतों से लेकर आधुनिक प्रस्तुतियों तक, भारतीय समाज के विकास और लोक कलाओं की अनुकूलन क्षमता का एक प्रमाण है। यह दर्शाता है कि कैसे परंपराएं समय के साथ बदलती हैं, लेकिन अपनी मूल भावना और महत्व को बनाए रखती हैं।
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