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Chhath Puja Complete History in Hindi: Chhath Vrat Vidhi, A complete guide to rituals, stories, songs and significance

छठ महापर्व: सूर्य, शुद्धि और सांस्कृतिक विरासत का आदिम उत्सव—वेदों से वैश्विक मंच तक

आप अगर पूर्वांचल या मिथिला क्षेत्र से बाहर के हैं और इस महापर्व के बारे में उत्सुक हैं, तो आप सही जगह पर आए हैं। छठ पूजा! यह सिर्फ एक त्योहार नहीं है; यह एक जीवन दर्शन है, तपस्या का एक महाकाव्य है, और प्रकृति की पूजा का शायद दुनिया में सबसे शुद्ध और प्राचीन तरीका है। क्या आप जानते हैं कि यह इकलौता ऐसा हिंदू पर्व है जहाँ किसी देवी या देवता की मूर्ति पूजा नहीं होती? हाँ, सचमुच! यह पर्व सीधे हमें जीवन देने वाले सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया से जोड़ता है। आज हम इस चार दिवसीय अनुष्ठान की हर बारीकी को समझेंगे

छठ: प्रकृति और सूर्य की आदिम उपासना

छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी, डाला छठ, या छठ पर्व भी कहते हैं , मुख्य रूप से पूर्वी भारत (बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश) और दक्षिणी नेपाल का एक प्राचीन इंडो-नेपाली हिंदू त्योहार है । हालांकि, प्रवासियों के कारण अब इसका विस्तार दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे भारतीय महानगरों और यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूएई, कनाडा, मॉरीशस, जापान और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में भी हो चुका है ।   

इस पर्व की सबसे खास और विलक्षण बात यह है कि यह लगभग एकमात्र हिंदू त्योहार है जहाँ मूर्ति पूजा (Idol Worship) का कोई स्थान नहीं है । यह सीधे-सीधे प्रकृति के सबसे दृश्यमान और शक्तिशाली स्रोत—सूर्य देव—को समर्पित है । इस पर्व के माध्यम से व्रती सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, क्योंकि सूर्य पृथ्वी पर जीवन के आशीर्वाद और ऊर्जा का आधार हैं ।   

यह त्योहार अपने आदिम स्वरूप के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। मूर्ति पूजा का न होना यह स्पष्ट करता है कि छठ पूजा की जड़ें वैदिक काल या उससे भी पहले की आदिम प्रकृति पूजा परंपरा में गहरी हैं। उस समय देवताओं को अमूर्त ऊर्जा या प्राकृतिक शक्तियों के रूप में पूजा जाता था। छठ आज भी उस प्राचीन उपासना पद्धति को संरक्षित किए हुए एक 'सांस्कृतिक जीवाश्म' (Cultural Fossil) के रूप में कार्य करता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पर्व जाति, पंथ, लिंग, और सामाजिक भेदभाव से परे है, जो इसे सच्चे अर्थों में लोक आस्था का महापर्व बनाता है ।

नाम की उत्पत्ति और उपासना का आधार

यह अक्सर पूछा जाता है कि इस त्योहार का नाम 'छठ' क्यों है? इसका नामकरण हिंदी कैलेंडर के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से लिया गया है। 'छठ' (Chhath) शब्द संस्कृत के 'षष्ठ' (Shashtha) का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है 'छठा' ।   

चूंकि इस पर्व का मुख्य अनुष्ठान और पहला अर्घ्य (जिसे संध्या अर्घ्य कहते हैं) कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही दिया जाता है , इसलिए इसे सूर्य षष्ठी या छठ पर्व कहा जाने लगा। छठ पर्व के दौरान भक्त केवल उगते हुए सूर्य की नहीं, बल्कि डूबते हुए सूर्य (अस्ताचलगामी) की भी पूजा करते हैं । यह जीवन के परिवर्तन और चक्र के प्रति सम्मान का प्रतीक है; यह दर्शाता है कि हमें केवल आशा के समय (उगता सूरज) ही नहीं, बल्कि हर परिस्थिति (अस्त होता सूरज) में भी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।

छठी मैया: सूर्य की बहन और बाल-रक्षक

सूर्य देव के साथ, इस महापर्व में उनकी बहन छठी मैया (या छठी माता) की भी पूजा की जाती है । छठी मैया को प्रकृति की छठी शक्ति (षष्ठी देवी) माना जाता है । पौराणिक कथाओं और वैदिक ज्योतिष के अनुसार, छठी मैया बच्चों को बीमारियों और खतरों से बचाकर उन्हें लंबी आयु, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती हैं ।   

छठी मैया की शक्ति सूर्य देव की शक्ति का पूरक है। जहाँ सूर्य जीवनदाता हैं, वहीं छठी मैया उस जीवन की रक्षा और पोषण करती हैं। संतान सुख और स्वास्थ्य की कामना करने वाली महिलाओं के बीच छठी मैया की उपासना अत्यंत लोकप्रिय है ।

छठ पूजा का इतिहास—वेदों से महाकाव्यों तक

छठ पूजा का इतिहास इतना पुराना है कि इसकी जड़ें हमें आधुनिक सभ्यता से हजारों साल पहले खींच ले जाती हैं।

वैदिक और पौराणिक संदर्भ

इस पर्व की उत्पत्ति का पता प्रारंभिक वैदिक काल से लगाया जा सकता है । हमारे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से सूर्य उपासना का उल्लेख है। सूर्य सूक्तों (Surya Suktas) में सूर्य की स्तुति की गई है, जो उन्हें जीवन और ऊर्जा का शाश्वत स्रोत मानते हैं । यह वैदिक परंपरा ही बाद में छठ पूजा के रूप में विकसित हुई।   

इसके अलावा, छठ पर्व का वर्णन हिंदू धर्म के कई प्रमुख पुराणों में भी मिलता है, जिनमें भविष्य पुराण और विष्णु पुराण प्रमुख हैं । इन ग्रंथों में सूर्य की महिमा और षष्ठी देवी की उपासना का महत्व विस्तार से बताया गया है। 

छठी मैया (षष्ठी देवी) का प्राकट्य: राजा प्रियवंद की कथा

छठी मैया की उत्पत्ति से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा सतयुग के राजा प्रियवंद और रानी मालिनी की है । संतान न होने पर राजा ने महर्षि कश्यप के निर्देश पर एक यज्ञ करवाया, लेकिन जब उन्हें मृत पुत्र प्राप्त हुआ, तो राजा गहरे वियोग में प्राण त्यागने को तैयार हो गए ।   

तभी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा को बताया कि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए उनका नाम षष्ठी देवी है । उन्होंने राजा को उनकी उपासना करने का आदेश दिया। देवी षष्ठी की कृपा से राजा का मृत पुत्र तुरंत जीवित हो गया। इस चमत्कार के बाद से ही, सूर्य और षष्ठी देवी की उपासना का यह महापर्व लोक-प्रचलित हो गया ।

रामायण काल से संबंध: माता सीता का अनुष्ठान

पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा का संबंध रामायण काल से भी है । 14 वर्ष के वनवास और रावण वध के बाद जब प्रभु श्री राम अयोध्या लौटे, तो ऋषि-मुनियों ने उन्हें रावण वध के पाप से प्रायश्चित्त करने के लिए राजसूय यज्ञ करने की सलाह दी ।   

इस अनुष्ठान के दौरान, ऋषि मुद्गल के मार्गदर्शन पर, माता सीता ने अपनी शुद्धि के लिए पहले गंगाजल से स्नान किया और फिर कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की उपासना करते हुए कठोर छठ व्रत का पालन किया । यह कथा छठ पर्व को केवल एक क्षेत्रीय त्योहार नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के मुख्य आख्यानों द्वारा मान्यता प्राप्त प्राचीन अनुष्ठान के रूप में स्थापित करती है।

महाभारत काल से संबंध: द्रौपदी और कर्ण का योगदान

छठ से जुड़ी एक और शक्तिशाली कथा महाभारत काल की है । जब पांडव जुए में अपना सब कुछ हार चुके थे और वनवास में थे, तब द्रौपदी ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा, शक्ति और राजपाट वापस पाने के लिए सूर्य देव और छठी मैया का कठोर व्रत किया था। उनकी तपस्या के फलस्वरूप पांडवों को बाद में अपना राज्य और सम्मान वापस मिला ।   

इसके अलावा, लोक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण नियमित रूप से कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे, जिससे उन्हें अद्वितीय शक्तियाँ प्राप्त हुईं। यह भी छठ पूजा में जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा की प्राचीनता को बल देता है।

यह देखने लायक है कि छठ पर्व से जुड़ी ये विभिन्न कथाएँ (संतान के लिए प्रियवंद, शुद्धि के लिए सीता, और समृद्धि के लिए द्रौपदी) इसे जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं—स्वास्थ्य, संतति, और ऐश्वर्य—से जोड़ती हैं, जिससे इसकी स्वीकार्यता और आध्यात्मिक गहराई बढ़ती जाती है।

छठ पूजा का विकास: प्राचीन काल से आधुनिक युग तक


प्राचीन और मध्यकाल (3000 ईसा पूर्व - 1500 ईस्वी)

प्रारंभ में छठ पूजा मुख्यतः नदी तट पर रहने वाले समुदायों में प्रचलित थी। वैदिक काल में यह केवल ऋषि-मुनियों और राजपरिवारों तक सीमित था।
मध्यकाल में यह पर्व धीरे-धीरे आम जनता में फैलने लगा। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह ग्रामीण परंपरा के रूप में मजबूत हुआ।

मुगल काल (1500-1800 ईस्वी)

मुगल शासन के दौरान भी छठ पूजा लोक आस्था के कारण जीवित रही। ग्रामीण इलाकों में यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही।

ब्रिटिश काल (1800-1947)

ब्रिटिश शासन में भी छठ पूजा का प्रचलन बना रहा। इस दौरान बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह पर्व और व्यापक हुआ। गंगा, गंडक, कोसी और सोन नदी के किनारे बसे गांवों में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा।

स्वतंत्रता के बाद (1947-1980)

स्वतंत्रता के बाद जब बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग रोजगार के लिए देश के अन्य हिस्सों में जाने लगे, तो वे अपने साथ छठ की परंपरा भी ले गए।

1960-70 के दशक में कोलकाता, मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में छठ पूजा शुरू हुई। प्रवासी बिहारियों ने शहरों में गंगा घाट या तालाबों के किनारे छठ मनाना शुरू किया।

1980-90: मीडिया का प्रभाव

1980 के दशक में दूरदर्शन ने छठ पूजा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करना शुरू किया। छठ गीतों की कैसेट्स बाजार में आईं। शारदा सिन्हा जैसी गायिकाओं ने छठ गीतों को लोकप्रिय बनाया।

1990-2000: राजनीतिक मान्यता

इस दशक में छठ पूजा को राजनीतिक मान्यता मिली। बिहार और झारखंड सरकारों ने छठ के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया। दिल्ली, मुंबई में नगर निगम ने छठ के लिए विशेष घाट बनाए।

2000-2010: व्यावसायीकरण

21वीं सदी में छठ पूजा का व्यावसायीकरण हुआ। बड़े-बड़े ब्रांड्स ने छठ पर विशेष उत्पाद लॉन्च किए। टीवी चैनलों ने छठ पर विशेष कार्यक्रम शुरू किए। पर्यटन विभाग ने इसे पर्यटन से जोड़ा।

2010-वर्तमान: सोशल मीडिया युग

सोशल मीडिया ने छठ पूजा को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर छठ की तस्वीरें और वीडियो वायरल होने लगे। विदेशों में बसे भारतीयों ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस आदि देशों में छठ मनाना शुरू किया।

छठ गीत: उत्पत्ति, विकास और प्रसिद्ध गायक

छठ गीतों की शुरुआत

छठ गीतों की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी छठ पूजा। प्रारंभ में यह गीत मौखिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते थे।
लोक परंपरा से जन्म
छठ गीत मूलतः भोजपुरी, मैथिली और मगही लोक संगीत से विकसित हुए। किसान और ग्रामीण महिलाएं खेतों में काम करते हुए, चक्की पीसते हुए ये गीत गाती थीं।

विषयवस्तु
छठ गीतों में मुख्यतः:
सूर्य देव की स्तुति
छठी मैया की महिमा
प्रकृति का वर्णन
पारिवारिक भावनाएं
व्रत की कठिनाई और महत्व

कैसेट युग (1980-1995)

1980 के दशक में छठ गीतों की पहली व्यावसायिक कैसेट्स आईं। इससे पहले ये गीत केवल घरों और गांवों में गाए जाते थे।

प्रमुख परिवर्तन:
स्टूडियो रिकॉर्डिंग शुरू हुई
संगीतकारों ने पारंपरिक धुनों में वाद्ययंत्र जोड़े
छठ गीत व्यावसायिक उत्पाद बन गए

CD और VCD युग (1995-2010)

इस दौरान छठ गीतों के वीडियो बनने लगे। गंगा घाट, सूर्यास्त और सूर्योदय के दृश्यों के साथ गीत रिकॉर्ड किए गए।

डिजिटल युग (2010-वर्तमान)

YouTube, Gaana, Spotify जैसे प्लेटफॉर्म्स पर छठ गीत उपलब्ध हुए। अब लाखों-करोड़ों व्यूज मिलते हैं।

बिहार कोकिला शारदा सिन्हा का युग

छठ गीतों को लोकप्रिय बनाने का सबसे बड़ा श्रेय शारदा सिन्हा को जाता है, जिन्हें 'बिहार कोकिला' के नाम से जाना जाता है । उन्होंने अपनी सुरीली आवाज में मैथिली और भोजपुरी संगीत को राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान दी।   

शारदा सिन्हा ने अपने पूरे करियर में 60 से अधिक छठ गीत गाए हैं । आज भी, छठ का पर्व उनके गीतों के बिना अधूरा माना जाता है। उन्होंने संगीत में पीएचडी की थी और कॉलेज में प्रोफेसर भी थीं, लेकिन उन्होंने संगीत को ही अपना जीवन धर्म बना लिया। उनकी आवाज अमर है, और यह संयोग ही था कि 5 नवंबर 2024 को उनका निधन भी छठ पर्व के दिन हुआ ।   

शारदा सिन्हा जैसे कलाकारों ने छठ गीतों को लोकप्रिय बनाकर इस पर्व को पूर्वांचल की सांस्कृतिक पहचान का एक मजबूत स्तंभ बना दिया। विशेष रूप से प्रवासी (Diaspora) समुदायों के लिए, ये गीत उनकी जड़ों से जुड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम बन गए, जिससे प्रवास के दौरान भी सांस्कृतिक विरासत जीवित रही।

अनुराधा पौडवाल: प्रसिद्ध छठ गीत "मार बोर सुगवा धनुष से" जैसे गीत उनकी विरासत में गिने जाते हैं।

पवन सिंह, खेसारी लाल यादव, काल्पना, अन्नू दुबे आदि भी छठ गीतों में अपने संगीत का जादू बिखेरते हैं।

चार दिवसीय महापर्व का सूक्ष्म विधान और अनुष्ठान

छठ पूजा एक अत्यंत कठोर, शुद्धता और अनुशासन पर आधारित चार दिवसीय पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक चलता है । इन चार दिनों में, व्रती (व्रत रखने वाली महिलाएँ या पुरुष) लगभग 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। 

दिन (तिथि)नाममहत्वप्रमुख क्रियाएँ और प्रसाद
पहला दिन (चतुर्थी)नहाय-खायतन और मन की शुद्धि; व्रत का संकल्प लेना।
स्वच्छ जल से स्नान; गंगाजल का उपयोग कर सात्विक भोजन (कद्दू-भात, मूंग-चना दाल)। भोजन केवल एक बार। 
दूसरा दिन (पंचमी)खरना (लोहंडा)36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की शुरुआत।
दिन भर निर्जला उपवास। शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर (रसियाव) और घी लगी रोटी बनाना। प्रसाद एकांत में ग्रहण करना। 
तीसरा दिन (षष्ठी)संध्या अर्घ्यडूबते सूर्य (प्रत्यूषा) को अर्घ्य; जीवन चक्र के प्रति आभार व्यक्त करना।
बांस की टोकरी (दउरा) में प्रसाद (ठेकुआ, फल) भरकर घाट पर ले जाना। नदी/तालाब में खड़े होकर डूबते सूर्य को दूध और जल अर्पित करना। 
चौथा दिन (सप्तमी)उषा अर्घ्य और पारणउगते सूर्य (ऊषा) को अर्घ्य; नई शुरुआत और नवीनीकरण का प्रतीक।
सूर्योदय से पहले अंतिम अर्घ्य देना। प्रसाद वितरण के बाद, व्रती जल ग्रहण कर 36 घंटे का व्रत तोड़ते हैं। 

पहला दिन: नहाय-खाय (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी)

पर्व की शुरुआत घर की गहन साफ-सफाई और पवित्रता के साथ होती है । नहाय-खाय का अर्थ है 'स्नान करना और भोजन करना'। व्रती नदी या तालाब में स्नान करते हैं, अपने बाल धोते हैं, और नाखून आदि काटकर शारीरिक शुद्धि करते हैं ।   

घर लौटते समय वे गंगाजल लाते हैं, जिसका उपयोग खाना पकाने में होता है। इस दिन व्रती केवल एक बार भोजन करते हैं। भोजन पूरी तरह से सात्विक होता है, जिसमें मुख्य रूप से कद्दू (लौकी) की सब्जी, मूंग-चना दाल और चावल शामिल होता है। इस भोजन को कांसे या मिट्टी के बर्तनों में, आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है । यह कठोर नियम त्योहार की पारिस्थितिक-मित्रता (Eco-friendliness) को दर्शाता है, जहाँ प्राकृतिक तत्वों के उपयोग पर जोर दिया जाता है।

दूसरा दिन: खरना या लोहंडा (कार्तिक शुक्ल पंचमी)

इस दिन को खरना या लोहंडा कहते हैं। व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं, जल की एक बूँद भी ग्रहण नहीं करते, और यह 36 घंटे के कठोर व्रत की शुरुआत होती है ।   

शाम को, विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है: गुड़ और चावल से बनी खीर (जिसे रसियाव या रसिया) और घी लगी रोटी। इस प्रसाद में नमक और चीनी का प्रयोग पूरी तरह वर्जित होता है। प्रसाद पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। इसके बाद, व्रती घर में एक शांत, एकांत स्थान पर यह प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के दौरान 'एकांत' का नियम व्यक्तिगत तपस्या और आत्म-नियंत्रण के महत्व को दर्शाता है, जिससे व्रती अपनी एकाग्रता को बनाए रख सकें । व्रती के भोजन करने के बाद, यह खीर और रोटी परिवार के अन्य सदस्यों और रिश्तेदारों को प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।   

मध्य रात्रि में, छठ पूजा का मुख्य प्रसाद, ठेकुआ (गेहूं के आटे और गुड़ से बना मीठा पकवान), तैयार किया जाता है ।  

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (कार्तिक शुक्ल षष्ठी)

यह छठ महापर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है । इस दिन विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ और चावल के लड्डू (कचवनिया) तैयार होते हैं ।   

दउरा की यात्रा: पूजा की सभी सामग्री—ठेकुआ, नारियल, पांच प्रकार के फल, गन्ना, और पूजा का सामान—एक बांस की टोकरी (दउरा या बहंगी) में सजाकर रखी जाती है। घर का पुरुष सदस्य इस पवित्र टोकरी को अपवित्र होने से बचाने के लिए सिर पर उठाकर छठ घाट तक ले जाता है । यह अनुष्ठान परिवार के भीतर श्रम और पवित्र कर्तव्य के पारंपरिक विभाजन को दर्शाता है। घाट की ओर जाते समय महिलाएँ उत्साह और भक्ति से भरे पारंपरिक छठ गीत गाती हैं ।   

संध्या अर्घ्य: घाट पर पहुँचकर व्रती कमर तक पानी में खड़ी होती हैं और डूबते हुए सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य या प्रत्यूषा) को दूध और जल का अर्घ्य देती हैं । इस क्षण, व्रती जीवन भर मिले आशीर्वादों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करती हैं।   

चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (कार्तिक शुक्ल सप्तमी)

पर्व के अंतिम दिन, व्रती सूर्योदय से बहुत पहले ही घाट पर पहुँच जाते हैं ।   

उगते सूर्य को वंदन: व्रती पुन: जल में खड़े होकर, उगते हुए सूर्य (ऊषा) को अंतिम अर्घ्य देती हैं। उगते सूर्य की उपासना नई शुरुआत, आशा, और जीवन के नवीकरण (renewal) का प्रतीक है ।   

पारण: अंतिम अर्घ्य देने और छठी मैया की पूजा करने के बाद, व्रती घाट पर ही प्रसाद ग्रहण करके और जल पीकर अपना 36 घंटे का कठोर निर्जला व्रत तोड़ते हैं । यह प्रक्रिया अत्यंत शांति और कृतज्ञता के साथ पूरी होती है। इसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है, जिसे 'पारण' कहा जाता है।



 


 

Written by - Sagar

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2025-10-23 16:50:12

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