भोजपुरी फिल्म “कुश्ती” (KUSTI) रिव्यू – जब अखाड़े से उठी आत्मसम्मान की लड़ाई
भोजपुरी फिल्म “KUSTI (कुश्ती)” एक भावुक, दमदार और महिला‑केंद्रित स्पोर्ट्स ड्रामा है, जिसमें एक साधारण लड़की का अखाड़े तक का सफर, परिवार की जिम्मेदारियां और अपने सपनों के लिए की गई लड़ाई को बड़े ही इमोशनल अंदाज में दिखाया गया है। फुल मूवी देखने से पहले अगर आप पूरी कहानी, किरदार और हाईलाइट सीन समझना चाहते हैं, तो यह सही जगह पे आये है।
कहानी: बेटी के दांव‑पेंच और ज़िंदगी की कुश्ती
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक ऐसे पहलवान बाप से, जिसका सपना खुद अधूरा रह जाता है और वह ठान लेता है कि अब उसकी बेटी अखाड़े में नाम रोशन करेगी। बचपन से ही वह अपनी बेटी को सख्त ट्रेनिंग देता है मिट्टी की खुशबू, पसीने की बूंदें और दांव‑पेंच के बीच यह बच्ची धीरे‑धीरे “धाकड़ गर्ल” बनती जाती है।
बचपन में दिख रही यह बच्ची बड़ी होकर अंजना सिंह के रूप में स्क्रीन पर आती है, जो अब पूरा होशो हवास के साथ प्रोफेशनल अखाड़ों में कुश्ती लड़ती है और गांव समाज में अपने बाप की इज्जत वापस दिलाने को अपना मिशन बना चुकी है। लेकिन यहां से शुरू होती है असली कुश्ती
एक तरफ समाज की सोच: “लड़की पहलवान? घर‑गृहस्थी पहले, अखाड़ा बाद में!”
दूसरी तरफ रिश्तों का दबाव: शादी, ससुराल, जिम्मेदारियां और औरत से हमेशा “समझौते” की उम्मीद।
कहानी में बड़ा मोड़ तब आता है जब अंजना के किरदार की शादी हो जाती है और उसके सामने दो रास्ते होते हैं
1. सब छोड़कर “सीधी घरेलू बहू” बन जाना
2. या फिर ससुराल, समाज और अखाड़ा तीनों मोर्चे एक साथ संभालते हुए अपने सपने पर अडिग रहना
फिल्म इसी भावनात्मक खींचतान के बीच दिखाती है कि कैसे वह हर ताने, हर हार और हर चोट को मोटिवेशन बनाकर और मजबूत होती जाती है। क्लाइमैक्स में एक बड़ा मुकाबला होता है, जहां उसके बचपन के सपने, पिता की इज्जत, पति‑परिवार का भरोसा सब एक ही दांव पर लगे होते हैं और यहां उसके हर मूव के साथ दर्शक की धड़कन भी बढ़ती है।
मुख्य किरदार और परफॉर्मेंस
इस फिल्म में अंजना सिंह सिर्फ हीरोइन नहीं, पूरी कहानी की “रीढ़” हैं। बचपन से लेकर बड़े अखाड़े तक उनका सफर, पिता से इमोशनल बॉन्ड, हार‑जीत का दर्द और अंदर का आक्रोश सबकुछ उनके एक्सप्रेशन्स में साफ दिखता है। कई सीन में वो सचमुच रेसलर की तरह दांव‑पेंच लगाती नजर आती हैं, जिससे फाइट रियल लगती है, ओवर‑ड्रामैटिक नहीं।
जय यादव का किरदार कहानी में इमोशनल बैलेंस लाता है। वे सिर्फ रोमांटिक पार्टनर नहीं, बल्कि कई जगहों पर मोटिवेटर और कभी‑कभी रुकावट भी बनते हैं, जिससे रिश्ता काफी रियल और रिलेटेबल लगता है।
ये चारों मिलकर फिल्म में विलेन टच, कॉमिक रिलीफ और सोशल एंगल तीनों ले आते हैं।
कहीं समाज के ताने हैं
कहीं अखाड़े की राजनीति
तो कहीं हल्का‑फुल्का ह्यूमर जो भारी माहौल को हल्का कर देता है।
अदिति सिंह और आर्यन बाबू (चाइल्ड आर्टिस्ट)
बचपन वाले हिस्सों में अदिति सिंह (जो रियल लाइफ में भी अंजना की बेटी हैं) का काम काबिल‑ए‑तारीफ है; उनके सीन कहानी की नींव मजबूत बनाते हैं और दर्शक को तुरंत जोड़ लेते हैं।
कुश्ती के दांव, इमोशन का पावर
फिल्म का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है इसके कुश्ती वाले सीन और उनसे जुड़ा इमोशन।
जब अंजना मिट्टी में गिरती है और फिर उठकर और जोर से लड़ती है, वहां सिर्फ स्पोर्ट नहीं, अंदर की पूरी जिंदगी की लड़ाई दिखती है।
कुछ मुकाबलों में पब्लिक का रिएक्शन, तालियां, हूटिंग और बैकग्राउन्ड म्यूज़िक मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं कि आप खुद को स्टेडियम में बैठा हुआ महसूस करेंगे।
कई जगह फिल्म का ट्रीटमेंट आपको आमिर खान की “दंगल” की याद दिलाता है बेटी का सपना, बाप का अधूरा सपना, गांव‑समाज की सोच और अखाड़े की धूल में लिखी गई नई कहानी। फर्क बस इतना है कि यहां भाषा भोजपुरी है, दर्द और जज्बात मिट्टी से और गहरे जुड़े हुए हैं।
म्यूज़िक, गाने और बैकग्राउन्ड स्कोर
फिल्म का म्यूज़िक साजन मिश्रा ने दिया है और गाने किशन चंद्रवंशी, सुगम सिंह, काजल राज, साजन मिश्रा जैसे सिंगर्स ने गाए हैं।
* मोटिवेशनल ट्रैक मैच वाले सीन धडकने बढ़ा देता है।
* इमोशनल गानों में बेटी‑बाप का दर्द, त्याग और टूटता‑बनता मन बहुत अच्छे से उभर कर आता है।
* कुछ रोमांटिक ट्रैक कहानी को हल्का बनाते हैं ताकि फिल्म सिर्फ सीरियस स्पोर्ट्स ड्रामा बनकर न रह जाए।
* बैकग्राउंड म्यूज़िक (BGM) खास तौर पर उन सीन्स में कमाल करता है जहां अंजना का किरदार खुद से लड़ रही होती है जीत हार से ज्यादा, अपने डर और झिझक से।
टेक्निकल साइड: डायरेक्शन, सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग
डायरेक्शन (देव पांडे)
देव पांडे ने कहानी को सीधा, इमोशनल और ग्राउंडेड रखा है।
गांव की गलियां हों, अखाड़ा हो या घर के अंदर के झगड़े सबकुछ काफी नैचुरल लगता है।
वो हर बार यह याद दिलाते हैं कि असली “कुश्ती” सिर्फ रिंग में नहीं, समाज और परिवार की सोच से भी है।
डीओपी मनोज सिंह
कुश्ती के एंगल, स्लो‑मोशन शॉट्स, क्लोज‑अप फेस एक्सप्रेशन कैमरा वर्क कहानी की ताकत को कई गुना बढ़ा देता है, खासकर फाइनल मैच और ट्रेनिंग मोंटाज में।
एडिटिंग और डाय कलर
एडिटर धरम सोनी और डीआई/कलरिस्ट के काम से फिल्म को साफ, सिनेमैटिक लुक मिला है; ना जरूरत से ज्यादा कट्स, ना ही बेवजह खिंचाव। रेसलिंग सीन्स में कटिंग क्रिस्प है, जिससे एनर्जी बनी रहती है और क्लाइमैक्स तक ग्रिप ढीली नहीं पड़ती।
हाइलाइट्स
* “ये सिर्फ कुश्ती नहीं, बेटी के सपने और बाप की इज्जत की आखिरी बाज़ी है।”
* “जब औरत अखाड़े में उतरती है, तो समाज सिर्फ उसके दांव नहीं, उसके इरादों पर भी शक करता है फिल्म इस सोच को सीधा चैलेंज करती है।”
* “अंजना सिंह इस फिल्म में ‘हीरो’ से कम नहीं लगतीं – कई सीन में वो पूरी फिल्म पर अकेले भारी पड़ती नजर आती हैं।”
* “कुश्ती की हर चोट, स्क्रीन से निकलकर दर्शक के सीने पर लगती है – और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी जीत है।”
ज़रूर देखे
जिन्हें स्पोर्ट्स ड्रामा, महिला‑केंद्रित कहानियां और इमोशनल फैमिली फिल्में पसंद हैं।
जो “दंगल” जैसी फील भोजपुरी फ्लेवर के साथ देखना चाहते हैं।
अंजना सिंह, जय यादव और भोजपुरी रियलिस्टिक सिनेमा के फैंस के लिए यह फिल्म फुल “पैसा वसूल” है।
यूट्यूब पर Worldwide Records Bhojpuri के ऑफिशियल चैनल पर यह उपलब्ध है, तो अगर आप पूरा इमोशन, अखाड़ा और धाकड़ एक्टिंग देखना चाहते हैं, तो फुल मूवी ज़रूर देखें।
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