
रक्षाबंधन का इतिहास: कहानी, पूजा विधि, मंत्र और बदलती परंपरा | Raksha Bandhan Festival Inormation Hindi
रक्षाबंधन: एक पवित्र धागे से बंधे प्रेम, सुरक्षा और एकता के अनमोल रिश्ते की गाथा
रक्षाबंधन, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा अनुपम पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र और अटूट रिश्ते को समर्पित है। यह केवल एक धागे का बंधन नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास, सुरक्षा और शुभकामनाओं का प्रतीक है । श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह त्योहार, पूरे भारत में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र (राखी) बांधकर उनके दीर्घायु, सुखमय और सफल जीवन की कामना करती हैं, जबकि भाई अपनी बहनों की हर परिस्थिति में रक्षा करने का संकल्प लेते हैं और उन्हें स्नेहपूर्वक उपहार देते हैं ।
पौराणिक जड़ें: कथाओं में छिपा रक्षाबंधन का इतिहास
रक्षाबंधन का इतिहास केवल कुछ सदियों पुराना नहीं, बल्कि इसकी जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं और प्राचीन ग्रंथों में गहरी जमी हुई हैं। विभिन्न कथाएं इस पर्व के विविध आयामों और इसके पीछे की भावनाओं को उजागर करती हैं।
कृष्ण और द्रौपदी: एक वचन की अमर कहानी
महाभारत काल की यह कथा सबसे लोकप्रिय मानी जाती है। एक बार भगवान कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई थी और उससे रक्त बहने लगा था। यह देखकर द्रौपदी ने बिना किसी संकोच के अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया । द्रौपदी के इस निस्वार्थ प्रेम और भाव से अभिभूत होकर कृष्ण ने उन्हें हर हाल में रक्षा का वचन दिया । कृष्ण ने यह वचन तब निभाया जब हस्तिनापुर के शाही दरबार में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था। भगवान कृष्ण ने अपनी माया से उनकी साड़ी को अनंत कर दिया और उनकी लाज बचाई ।
राजा बलि और देवी लक्ष्मी: मुक्ति का रक्षासूत्र
एक अन्य महत्वपूर्ण कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा था। बलि ने वचन दिया, और वामन भगवान ने अपने दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए कोई स्थान न होने पर बलि ने अपना सिर आगे कर दिया, जिससे भगवान विष्णु उनके दान से प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया। भगवान विष्णु ने बलि को वचन दिया कि वे हमेशा उनके साथ पाताल में रहेंगे ।
देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु के वैकुंठ लोक लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं। उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बनाया और बदले में भगवान विष्णु को वैकुंठ लौटने की अनुमति मांगी । यह दिन श्रावण पूर्णिमा का ही था । यह कथा दर्शाती है कि राखी का धागा केवल सुरक्षा का ही नहीं, बल्कि मुक्ति और संबंधों के माध्यम से इच्छापूर्ति का भी माध्यम बन सकता है। यह कथा राखी के माध्यम से बंधे रिश्ते की शक्ति को दर्शाती है, जो देवताओं को भी अपने वचन से मुक्त कर सकती है।
इंद्र और इंद्राणी: देवताओं की विजय का प्रतीक
भविष्य पुराण में वर्णित एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब देवताओं और दानवों के बीच 12 वर्षों तक युद्ध चला और इंद्र कमजोर पड़ने लगे थे। इंद्र अपनी जान बचाने के लिए युद्ध से भागने की तैयारी में थे । यह देखकर इंद्र की पत्नी इंद्राणी गुरु बृहस्पति के पास गईं। गुरु ने इंद्राणी को अपने पतिव्रत धर्म के बल पर संकल्प लेने और इंद्र के दाहिने हाथ में एक रक्षासूत्र बांधने का निर्देश दिया । इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन विशेष मंत्रों के साथ यह रक्षासूत्र बांधा, जिसके प्रभाव से इंद्र विजयी हुए । यह रक्षाबंधन का सबसे प्राचीन उल्लेख माना जाता है । यह कथा दर्शाती है कि रक्षासूत्र केवल भाई-बहन के लिए ही नहीं, बल्कि किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा और विजय के लिए बांधा जा सकता है, विशेषकर संकट के समय।
यम और यमुना: अमरता का वरदान
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, मृत्यु के देवता यम की बहन यमुना ने उनकी कलाई पर राखी बांधी थी । यमुना के इस स्नेह से अभिभूत होकर यम ने घोषणा की कि जो भी भाई अपनी बहन से राखी बंधवाएगा और उसे सुरक्षा प्रदान करेगा, उसे भी अमरता प्राप्त होगी । यह कथा भाई-बहन के बीच के प्रेम की गहराई और उसके आध्यात्मिक प्रतिफल को दर्शाती है।
देवी पार्वती और श्री हरि: भाई-बहन के रिश्ते की दिव्य शुरुआत
एक अन्य कथा के अनुसार, आदि शक्ति का अवतार देवी पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं। तपस्या के बाद, वे भगवान शिव के साथ श्री हरि (भगवान विष्णु) के वैकुंठ लोक पहुंचीं, जहाँ देवी लक्ष्मी और श्री हरि ने उनका खूब आदर-सत्कार किया । इसी अवसर पर मां पार्वती ने अपने भाई श्री हरि के हाथों पर राखी बांधी और उन्हें मिठाई खिलाई। उस दिन दोनों ने खुशी-खुशी रक्षाबंधन मनाया । यह कथा देवताओं के बीच भी भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता और उसके उत्सव को दर्शाती है।
राखी के धागे का विकास: मौली से डिजाइनर और इको-फ्रेंडली राखियों तक
पहले राखी के लिए मुख्य रूप से मौली (कच्चा सूत) या साधारण कॉटन धागे का उपयोग होता था, जिसे शुद्धता और शक्ति का प्रतीक माना जाता था । यह धार्मिक दृष्टि से सबसे शुभ मानी जाती है और त्रिदेव व त्रिदेवी की कृपा प्राप्त होती है । समय के साथ राखी का स्वरूप भी बदलता गया है। अब बाजारों में रंग-बिरंगी डिजाइनर राखियां, डिजिटल राखियां, इको-फ्रेंडली राखियां, कार्टून कैरेक्टर और सुपरहीरो थीम पर आधारित राखियां भी उपलब्ध हैं ।
राखी के भौतिक स्वरूप में बदलाव आया है, जो बदलते फैशन और उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों को दर्शाता है। राखी के बदलते स्वरूप (डिजाइनर, डिजिटल, इको-फ्रेंडली) यह दर्शाता है कि त्योहार अपनी मूल भावना को बनाए रखते हुए भी आधुनिकता और समकालीन सामाजिक सरोकारों (जैसे पर्यावरण चेतना) के साथ कैसे अनुकूलन करता है। यह परंपरा और नवाचार के बीच के संतुलन को दर्शाता है। मौली से डिजाइनर राखियों तक का सफर यह दिखाता है कि कैसे एक धार्मिक प्रतीक समय के साथ एक फैशन स्टेटमेंट और व्यावसायिक उत्पाद में बदल गया है। इको-फ्रेंडली राखियों का उदय यह भी दर्शाता है कि कैसे त्योहार पर्यावरण जागरूकता जैसे नए सामाजिक मूल्यों को आत्मसात कर रहा है।
सामाजिक और राजनीतिक आयाम: जब राखी बनी एकता का सूत्र
रक्षाबंधन केवल व्यक्तिगत संबंधों का त्योहार नहीं रहा, बल्कि इसने कई ऐतिहासिक मौकों पर सामाजिक और राजनीतिक एकता का प्रतीक भी निभाया है।
रानी कर्णावती और हुमायूं: एक ऐतिहासिक प्रसंग
यह एक बहुत ही मशहूर लोककथा है। कहा जाता है कि 16वीं सदी में, जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर हमला किया (1535 ई.), तब मेवाड़ की रानी कर्णावती ने अपनी और राज्य की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी थी । लोककथा के अनुसार, हुमायूं ने इसे सम्मान के रूप में स्वीकार किया और मेवाड़ की रक्षा के लिए अपनी सेना लेकर निकल पड़े ।
रवींद्रनाथ टैगोर और बंगाल विभाजन: भाईचारे और राष्ट्रीय एकता का आह्वान
1905 में, ब्रिटिश सरकार ने 'फूट डालो और राज करो' की नीति के तहत बंगाल का विभाजन कर दिया था । इसका उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों को धार्मिक आधार पर बांटना और बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन को कमजोर करना था । रवींद्रनाथ टैगोर ने इस विभाजन के खिलाफ एक रचनात्मक और प्रतीकात्मक विरोध का रास्ता चुना । उन्होंने 16 अक्टूबर 1905 को, जो बंगाल विभाजन के लागू होने का दिन था, लोगों से राखी महोत्सव मनाने का आह्वान किया । उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों से एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधने का आग्रह किया, ताकि यह भाईचारे, एकता और आपसी सुरक्षा का प्रतीक बन सके ।
टैगोर ने स्वयं जुलूस का नेतृत्व किया, जिसमें लोग एक-दूसरे को राखी बांधते हुए सड़कों पर निकले । यह आंदोलन अहिंसक था और इसने लोगों को धार्मिक और क्षेत्रीय मतभेदों से ऊपर उठकर एक साथ आने के लिए प्रेरित किया । राखी का धागा अब केवल पारिवारिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और प्रतिरोध का प्रतीक बन गया । टैगोर ने राखी को एक सामाजिक-राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया, जो इसकी सांस्कृतिक लचीलेपन को दर्शाता है। टैगोर द्वारा राखी का उपयोग बंगाल विभाजन के खिलाफ एक सांस्कृतिक हथियार के रूप में करना यह दर्शाता है कि कैसे एक पारंपरिक त्योहार को सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए पुनः परिभाषित किया जा सकता है। यह राखी के 'रक्षा' के मूल भाव को व्यक्तिगत से राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता तक विस्तारित करता है, जो त्योहार की अद्भुत अनुकूलन क्षमता और प्रासंगिकता को दर्शाता है। ब्रिटिश नीति का उद्देश्य 'फूट डालो' था । टैगोर ने इसका मुकाबला करने के लिए 'एकता' के प्रतीक के रूप में राखी को चुना । यह दिखाता है कि सांस्कृतिक प्रतीक कैसे सामाजिक आंदोलनों में शक्तिशाली उपकरण बन सकते हैं, लोगों को भावनात्मक स्तर पर जोड़कर एक साझा उद्देश्य के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
आधुनिक युग में राखी: वर्चुअल उत्सव, सामाजिक संदेश और पर्यावरण संरक्षण
आज, राखी सिर्फ़ जैविक भाई-बहनों तक ही सीमित नहीं है। दूर रहने वाले दोस्त, रिश्तेदार, या मार्गदर्शक भी राखी बांधते हैं, जिससे रक्षकों का दायरा बढ़ता है और त्योहार का अर्थ व्यापक होता है । वर्तमान में परिवारों के भौगोलिक फैलाव के कारण वर्चुअल सेलिब्रेशन भी प्रचलित हैं। ऑनलाइन राखी शॉपिंग और डिजिटल ग्रीटिंग्स के ज़रिए भी रक्षाबंधन का सार जीवंत रहता है, जिससे भौगोलिक बाधाओं के बावजूद त्योहार खास बन जाता है ।
राखी को समाज में बदलाव लाने के लिए एक सांस्कृतिक उपकरण के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया है। भारत के कई क्षेत्रों में महिलाएं सैनिकों, पुलिस और ऐसे सभी व्यक्तियों को राखी बांधती हैं, जो समाज की रक्षा के लिए लड़ते हैं । यह उनके प्रति आभार व्यक्त करने और उनके बलिदान को सम्मान देने का एक तरीका है। पर्यावरण कार्यकर्ता पेड़ों को राखी बांधकर पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेते हैं । कुछ जगहों पर नदियों को भी राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का प्रण लिया जाता है ।
रक्षाबंधन का विस्तृत उत्सव: विधि-विधान और शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन का पर्व विधि-विधान से मनाया जाता है, जिसमें शुभ मुहूर्त, थाली की तैयारी और राखी बांधने की विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
पर्व की तिथि और शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । इस दिन को श्रावणी पूर्णिमा भी कहा जाता है ।
रक्षाबंधन की तिथि और मुहूर्त का निर्धारण हिंदू पंचांग के नियमों के अनुसार होता है, जिसमें उदया तिथि का विशेष महत्व है। शुभ मुहूर्त और भद्रा काल से बचने का महत्व यह दर्शाता है कि भारतीय ज्योतिष और धार्मिक अनुष्ठान समय की पवित्रता और नकारात्मक ऊर्जाओं से बचने पर कितना जोर देते हैं। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि शुभ परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए एक सावधानीपूर्वक गणना है। पूर्णिमा तिथि का आरंभ और समापन समय तथा उदया तिथि का सिद्धांत यह दर्शाता है कि धार्मिक तिथियों का निर्धारण कितना जटिल और सूक्ष्म होता है। भद्रा और राहुकाल से बचने की सलाह यह बताती है कि भारतीय ज्योतिष में समय के 'गुण' और 'दोष' का गहरा विश्लेषण किया जाता है, जो अनुष्ठानों की सफलता को प्रभावित कर सकता है।
राखी बांधने की थाली और सामग्री
राखी बांधने से पहले एक विशेष थाली तैयार की जाती है, जिसमें कुछ आवश्यक वस्तुएं रखी जाती हैं। इन वस्तुओं का अपना प्रतीकात्मक और धार्मिक महत्व होता है । आवश्यक सामग्रियों में राखी या रक्षासूत्र , अक्षत (चावल) जो अखंडता और समृद्धि का प्रतीक हैं , तिलक लगाने के लिए रोली या कुमकुम जो शुभता, सम्मान और ऊर्जा का प्रतीक है , आरती के लिए दीपक जो अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाने और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है , और रिश्ते में मिठास व खुशियों के लिए मिठाई शामिल हैं। शुद्धिकरण और शुभता के लिए जल भी रखा जाता है। आर्थिक समृद्धि और धन वृद्धि के लिए थाली में एक चांदी का सिक्का या एक रुपये का सिक्का भी रखा जा सकता है ।
राखी बांधने की संपूर्ण विधि
रक्षाबंधन के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करना चाहिए। इसके बाद, भगवान की विधि-पूर्वक पूजा करें और आरती की थाली में सभी राखियां रखें। साथ ही, उसमें एक चांदी का सिक्का या एक रुपये का सिक्का भी रख लें । सबसे पहले भगवान गणेश को राखी बांधना शुभ माना जाता है । यह किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में विघ्नहर्ता गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
भाई को राखी बंधवाने के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठाना शुभ होता है । राखी बांधने से पहले बहन भाई के माथे पर रोली/कुमकुम का तिलक लगाती है, फिर उस पर अक्षत लगाती है । इसके बाद बहन भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधती है । राखी बांधते समय विशेष मंत्र का जाप किया जाता है ।(ॐ येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल) राखी बांधने के बाद बहन भाई की आरती उतारती है और उसे मिठाई खिलाती है । बदले में भाई बहन को उपहार देता है और उसकी रक्षा का संकल्प लेता है ।
रक्षाबंधन मंत्र: सुरक्षा और शुभकामनाओं का उद्घोष
राखी बांधते समय एक विशेष वैदिक मंत्र का जाप किया जाता है, जो इस पर्व के आध्यात्मिक और सुरक्षात्मक महत्व को और गहरा करता है।
मुख्य मंत्र है: "ॐ येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥" । इस मंत्र का सामान्य अर्थ है: "जिस रक्षासूत्र से महाबली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे (रक्षासूत्र)! तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।" ।
शास्त्रीय व्याख्या के अनुसार, जब ब्राह्मण या पुरोहित यह मंत्र बोलकर रक्षासूत्र बांधते हैं, तो वे यजमान से कहते हैं कि जिस रक्षासूत्र से धर्मात्मा महाबली राजा बलि को बांधा गया था (अर्थात उन्हें धर्म के प्रति प्रतिबद्ध किया गया था), उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ (अर्थात तुम्हें धर्म के प्रति प्रतिबद्ध करता हूँ)। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहते हैं, "हे रक्षा, तुम स्थिर रहो, स्थिर रहो।" इस प्रकार, रक्षासूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के प्रति प्रेरित करना और उन्हें उसमें संलग्न करना है । यह मंत्र केवल शारीरिक सुरक्षा की कामना नहीं करता, बल्कि व्यक्ति को धर्म, कर्तव्य और नैतिक मूल्यों के प्रति भी प्रतिबद्ध करता है। यह राखी के बंधन को एक आध्यात्मिक और नैतिक दायित्व के रूप में स्थापित करता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में रक्षाबंधन: अनोखी परंपराएं और विविधता
भारत एक विविधताओं का देश है, और रक्षाबंधन का त्योहार भी विभिन्न राज्यों में अपनी अनूठी परंपराओं और नामों के साथ मनाया जाता है, जो इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है।
उत्तराखंड में श्रावणी पर्व और जनेऊ बदलने की परंपरा
उत्तराखंड में रक्षाबंधन को 'श्रावणी' पर्व के रूप में भी जाना जाता है । इस दिन यजुर्वेदी ब्राह्मणों का उपकर्म होता है, जिसमें वे उत्सर्जन, स्नान-विधि, ऋषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करते हैं । यहां पंडित रक्षाबंधन पर सावन महीने में संस्कार करते हैं, जिसमें यजमान को रक्षा सूत्र बांधते हैं और उन्हें सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं । यह पर्व धार्मिकता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है ।
महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा: समुद्र देवता की पूजा और मछुआरे समुदाय का महत्व
महाराष्ट्र में यह त्योहार 'नारियल पूर्णिमा' या 'कोली रक्षाबंधन' के नाम से विख्यात है । इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं । समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है । मछुआरे समुदाय के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वे अपनी आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर होते हैं। वे समुद्र देवता से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं और अपनी नावों की पूजा भी करते हैं ।
राजस्थान में पेड़ों को राखी और राजतिलक की परंपरा
राजस्थान में पेड़ों को राखी बांधने और राजतिलक करने की एक अनोखी परंपरा है । यहां की बहनें अपने भाइयों के अलावा पेड़ों को भी राखी बांधती हैं और पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लेती हैं । कुछ जगहों पर भाइयों को 'राजा' मानकर उनका राजतिलक भी किया जाता है ।
झारखंड और छत्तीसगढ़ में सामुदायिक सुरक्षा का प्रतीक
आदिवासी संस्कृति में रक्षाबंधन भाई-बहन का एक अनूठा त्योहार है। आदिवासी समाज में राखी का अपना एक विशेष महत्व है, जहाँ वे राखी को केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं रखते, बल्कि इसे पूरे समाज और समुदाय की सुरक्षा की भावना से जोड़ते हैं ।
उत्तर प्रदेश में सैनिकों और पुलिसकर्मियों को राखी
उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बहनें भाइयों के साथ-साथ सैनिकों और पुलिसकर्मियों को भी राखी बांधती हैं । यहां की महिलाएं और लड़कियां देश के रक्षकों को राखी बांधकर उनका आभार व्यक्त करती हैं ।
उत्तर प्रदेश की यह परंपरा रक्षाबंधन के 'रक्षा' के भाव को राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक आभार तक विस्तारित करती है। सैनिकों और पुलिसकर्मियों को राखी बांधना उनके बलिदान और देश के प्रति सेवा को सम्मान देने का एक तरीका है। यह दर्शाता है कि त्योहार कैसे नागरिक चेतना और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा दे सकता है, जहाँ देश के रक्षकों को भी परिवार के सदस्य के रूप में देखा जाता है।
इस रक्षाबंधन पर, चलिए हम सब अपने रिश्तों को नए उत्साह के साथ मनाएं और एक दूसरे की सुरक्षा का संकल्प लें।
Written by - Sagar
Please login to add a comment.
No comments yet.