भोजपुरी फ़िल्म “उमा” रिव्यू – एक औरत की इज़्ज़त, समाज की सोच और न्याय की लड़ाई का सिनेमाई बयान
भोजपुरी सिनेमा ने हाल के वर्षों में समाजिक विषयों पर ज़बरदस्त वापसी की है, और Worldwide Records के बैनर तले बनी फ़िल्म “उमा” इसका ताज़ा उदाहरण है। रत्नाकर कुमार द्वारा निर्मित और अंजनय रघुराज निर्देशित यह फिल्म केवल एक औरत की कहानी नहीं बल्कि समाज की मानसिकता को आईना दिखाती है।
शुरुआत में ही झकझोर देता है ट्रेलर
ट्रेलर की शुरुआती झलक में एक सीधे-सादे गाँव का परिवेश दिखाया गया है, जहाँ रिश्ते, इज़्ज़त और समाज की बातों के बीच एक औरत की ज़िंदगी “उमा” बनकर सामने आती है। माही श्रीवास्तव के चेहरे पर मासूमियत और दर्द का मिला-जुला असर ट्रेलर के पहले ही फ्रेम से दर्शक को बाँध लेता है। ऋतेश उपाध्याय का किरदार कहानी में भावनात्मक टकराव लाता है जहाँ प्यार, प्रतिष्ठा और समाजिक दबाव एक साथ टकराते हैं।
कहानी की दिशा – नारी के आत्मसम्मान की लड़ाई
फ़िल्म की कहानी एक ऐसी औरत की है जो बचपन में हुई एक अनचाही शादी के चलते ज़िन्दगीभर सामाजिक ताने और अपमान सहती है। लेकिन जब हालात उसे झुकाने की कोशिश करते हैं, तब वह खामोश रहने के बजाय अपनी इज़्ज़त और हक़ की लड़ाई लड़ने का निर्णय लेती है।
ट्रेलर के संवाद – “मैं औरत हूँ, अबला नहीं... लड़ सकती हूँ, और लड़ रही हूँ।” – पूरी फ़िल्म के भाव को एक लाइन में समेट लेते हैं। यह संवाद दिल में सीधा उतरता है और ट्रेलर को ताकतवर बनाता है।
अभिनय – माही श्रीवास्तव की भावनात्मक धार
माही श्रीवास्तव ने 'उमा' के रूप में अपने अभिनय से दिल जीत लिया है। उनके चेहरे के भाव, आँसुओं की गहराई, और आत्मसम्मान की लड़ाई का जोश – सब कुछ बखूबी झलकता है।
ऋतेश उपाध्याय ने अपने किरदार को गंभीरता के साथ निभाया है और माही के साथ उनकी केमिस्ट्री वास्तविक लगती है। सहयोगी कलाकार जैसे अमरेन्द्र शर्मा, शंभू राणा, और पुष्पेंद्र राय कहानी को मज़बूती देते हैं।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष
निर्देशक अंजनय रघुराज ने विषय को बेहद शालीनता और गहराई से प्रस्तुत किया है।
के. वेंकट महेश की सिनेमाटोग्राफी गाँव की गलियों, अदालतों और भावनात्मक दृश्यों में शानदार विजुअल अपील देती है।
संगीतकार साजन मिश्रा के संगीत में भावनाओं का प्रवाह है। कल्पना पटवारी और प्रियंका सिंह जैसी जानी-मानी गायिकाओं की आवाज़ फ़िल्म की आत्मा को और निखारती है।
स्क्रिप्ट और डायलॉग – दमदार और अर्थपूर्ण
अरविंद तिवारी और राकेश त्रिपाठी के संवाद समाज पर चोट करते हैं। ट्रेलर में हर लाइन के पीछे एक सोच है – चाहे वह इज़्ज़त बचाने की बात हो या बेवजह के समाजिक नियमों का विरोध। यह स्क्रिप्ट दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
विशेष आकर्षण
* माही श्रीवास्तव का इमोशनल इम्पैक्ट और गीतों में उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस
* न्यायालय के दृश्य जिसमें समाज के नियमों और नारी की अस्मिता पर सवाल उठते हैं
* बैकग्राउंड स्कोर (आयान माकवाना) जो हर भावनात्मक सीन को गहराई देता है
समाज को झकझोर देने वाली कहानी
“उमा” सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि नारी की प्रतिष्ठा, स्वाभिमान और अस्तित्व की पुकार है। ट्रेलर के हर दृश्य में एक अदृश्य चुप्पी टूटती नज़र आती है। यह फ़िल्म दर्शकों को मनोरंजन के साथ साथ सोचने पर मजबूर करेगी।
यदि ट्रेलर इतना असरदार है, तो पूरी फ़िल्म देखने के बाद भावनाओं का सैलाब तय है।
रेटिंग (ट्रेलर के आधार पर): 4.5/5
“उमा” – समाज के सवालों के बीच एक औरत की आवाज़। अगर आपने अभी तक नहीं तो अभी देखे
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