Haathi Mere Saathi (2025) Bhojpuri Movie Review – Yash Kumar's emotional and powerful story, between the forest and humans
हाथी मेरे साथी: भोजपुरी सिनेमा की एक भावुक यात्रा, जहाँ दोस्ती की डोर इंसान और जानवर को बाँधती है
हाथी मेरे साथी (2025) भोजपुरी फ़िल्म रिव्यू — इंसान और जानवर के रिश्ते की दिल छू लेने वाली दास्तान 🐘💔
भोजपुरी सिनेमा ने हमेशा समाज और मानवीय भावनाओं से जुड़ी कहानियाँ पेश की हैं। Yash Kumar की नई फ़िल्म “हाथी मेरे साथी (Hathi Mere Saathi)” उसी परंपरा को और गहराई देती है। यह फ़िल्म सिर्फ़ एक मनोरंजन नहीं बल्कि एक संवेदनशील सफर है जो इंसान और हाथी जैसे बेजुबान जीव के रिश्ते का ऐसा रूप दिखाती है कि आँखें नम हो जाएं। हाला की हाथी मेरा साथी मूवी का टाइटल नया नहीं है बॉलिवुड में 1 जनवरी 1971 को एक मूवी रिलीज़ हुई थी जिसमे राजेश खन्ना (Raju) और तनुजा (Tanu) ने अभिनय किया था यह फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी, और इसने इंसानों तथा हाथियों के बीच के प्रेम को दिखाया था। इस फिल्म की कहानी का आधार भी एक इंसान और उसके हाथी 'रामू' के भावनात्मक रिश्ते पर केंद्रित था।
फ़िल्म अभी (24.10.2025) Yash Kumar Entertainment के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर रिलीज़ हुई है — लिंक: https://youtu.be/P3uEk7fUzkw?si=ghdgYXtqC1QqdFcH
कहानी का सार: जंगल से इंसानियत तक 🌿
कहानी शुरू होती है भोला (Yash Kumar) की माँ और गाँव के जीवन से, जहाँ गरीबी, ठेकेदारों का शोषण और जंगल के बीच संघर्ष ही ज़िंदगी का दूसरा नाम है। एक दिन जब शिकारी मासूम जानवरों को मारते हैं, भोला अपनी माँ के साथ जंगल में एक घायल हाथी को बचा लेता है। यही हाथी बाद में गंगा कहलाता है — भोला का साथी, भाई और परिवार का हिस्सा।
जंगल और इंसान के बीच की सीमा मिट जाती है। भोला गंगा की देखभाल ऐसे करता है जैसे अपने खून के रिश्ते निभा रहा हो। फ़िल्म में उस पल की भावनाएँ जब भोला अपनी माँ को खो देता है और गंगा उसकी माँ की जगह उसका संबल बन जाती है – दर्शकों को झकझोर देती हैं। गंगा अब भोला के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
संघर्ष और संवेदना की टकराहट 💥
फ़िल्म का मध्य भाग भावनात्मक और रोमांचक दोनों है। शिकारी, ठेकेदार और लालच से भरे अधिकारी जब हाथी को खरीदने या छीनने की कोशिश करते हैं, तब भोला के दिल से निकली एक पंक्ति फिल्म का मर्म कह देती है —
“गंगा हमार भाई हौ, बिके वाला जानवर ना।”
रेंजर, तस्कर “नागा” और विदेशी सौदागर “चिंगचोंग” के प्रवेश के साथ कहानी एक तेज़ मोड़ लेती है। असली जंग अब पैसे और पैशन के बीच की बन जाती है। गंगा के सुनहरे दांतों (Golden Tusks) की वजह से अंतरराष्ट्रीय तस्करी का खेल शुरू होता है।
लेकिन भोला का जवाब इंसानियत का सबसे बड़ा उदाहरण है – वह गंगा को बेचने से इनकार कर देता है, भले ही सामने एक करोड़ का ऑफर क्यों ना हो।
भावनाओं का सागर और रिश्ते की पवित्रता
फ़िल्म का क्लाइमेक्स अत्यधिक भावुक है। भोला और गंगा के बीच अटूट बंधन, इंसान की नैतिकता और प्रकृति के प्रति प्रेम का ऐसा संगम दिखता है जो भोजपुरी सिनेमा में बहुत कम देखने को मिलता है।
गीत “केतना प्यार हमसे करी जतावत रह…” दृश्य के साथ दिल को गहराई तक छू जाता है। यह गीत सिर्फ़ भाई–बहन या दोस्ती नहीं, बल्कि आत्मिक जुड़ाव की भावना बयान करता है।
अंत में, जब भोला जंगल और जानवरों की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा देता है, तो दर्शकों का दिल गर्व और दर्द दोनों से भर जाता है।
अभिनय और निर्देशन 🎬
Raksha Gupta ने भोला की साथी गौरी के रूप में अपने अभिनय से कहानी में जीवंतता भर दी है।
Baleshwar Singh, Surya Dwivedi, Amit Shukla और Heera Yadav का काम सशक्त है, जबकि चिंगचोंग और नागा के रूप में खलनायकों का अभिनय फ़िल्म की कहानी को धार देता है।
निर्देशक Sanjay Srivastav ने गाँव, जंगल और भावनाओं के संघर्ष को बड़े परदे पर बेहद खूबसूरती से उकेरा है।
सिनेमैटोग्राफी (Jahangir Sayyed) और संगीत (Munna Dubey) फिल्म को भावनात्मक ऊँचाई देते हैं।
संगीत और संवाद 🎵
गीतों में राजेश मिश्रा और शेखर मधुर का लिखा हुआ हर शब्द दिल से उतरता है। आवाज़ें Alok Kumar और Priyanka Singh ने इस फ़िल्म को एहसास से भर दिया है।
फ़िल्म के संवाद आसानी से याद रह जाते हैं, खासतौर पर –
“हम गरीब जरूर बानी, लेकिन जंगल के जानवर हमर परिवार बाड़न।”
“हाथी मेरे साथी” सिर्फ़ देखने लायक नहीं, महसूस करने लायक फ़िल्म है।
यह फ़िल्म बताती है कि संवेदना, करुणा और इंसानियत अब भी ज़िंदा है, बस जरूरत है उन्हें पहचानने और अपनाने की।
जो दर्शक भावनाओं में डूबी कहानियाँ पसंद करते हैं, उनके लिए यह फ़िल्म एक अनमोल अनुभव है।
भोजपुरी सिनेमा को एक और भावनात्मक रत्न मिला है —
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
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