
Why is Buddha Purnima celebrated all over world ? Know the complete story of Budh Purnima in Hindi
बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima)
बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वेसाक या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि), और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) की स्मृति में मनाया जाता है. यह पर्व बैसाख माह की पूर्णिमा को पड़ता है. इस त्यौहार को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे वेसाक , बुद्ध जयंती , बुद्ध पौर्णिमा , विशाखा , हनमतसूरी , फैट डैन , सागा दावा , वेसाक बोचे , विसाखा पूजा , चोपा-इल , फो डैन , बुद्ध म्वेने , बुद्ध पूर्णिमा , बुद्ध पौर्णिमा , और बाधा पूर्णमा.
बुद्ध पूर्णिमा एक ऐसा त्यौहार है जो न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है, खासकर हिंदुओं के लिए, जो भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार मानते हैं. यह त्यौहार विभिन्न एशियाई देशों और दुनिया के अन्य हिस्सों में अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जो बौद्ध धर्म की वैश्विक उपस्थिति और महत्व को दर्शाता है.
बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य वंश के राजा थे, और उनकी माता का नाम मायादेवी था। जन्म के समय उनका नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया। सिद्धार्थ का बचपन राजसी वैभव में बीता, लेकिन 29 वर्ष की आयु में उन्होंने संसार के दुखों को देखकर संन्यास ले लिया। छह वर्षों की कठिन तपस्या के बाद, 35 वर्ष की आयु में, वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया (बिहार, भारत) में एक पीपल के पेड़ (जो बाद में बोधि वृक्ष कहलाया) के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस घटना को "बुद्धत्व" की प्राप्ति कहा जाता है। इसके बाद, उन्होंने अपने जीवन के शेष वर्ष लोगों को चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा देते हुए बिताए। 80 वर्ष की आयु में, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश, भारत) में वैशाख पूर्णिमा के ही दिन उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। यह एक अनोखा संयोग है कि बुद्ध के जीवन की तीन प्रमुख घटनाएं - जन्म, ज्ञान प्राप्ति, और महापरिनिर्वाण - एक ही दिन घटित हुईं। यही कारण है कि यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व बौद्ध धर्म में बहुत गहरा है। यह दिन बुद्ध के जीवन की तीन मुख्य घटनाओं को एक साथ याद करने का अवसर प्रदान करता है। बुद्ध की शिक्षाएं - अहिंसा, करुणा, और शांति - इस दिन विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती हैं। यह त्योहार लोगों को बुद्ध के मार्ग पर चलने और उनके उपदेशों को जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करता है। चार आर्य सत्य (दुख, दुख का कारण, दुख का निवारण, और निवारण का मार्ग) और अष्टांगिक मार्ग (सही दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति, और समाधि) बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत हैं, जिन्हें इस दिन विशेष रूप से स्मरण किया जाता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र ने भी वेसाक को एक अंतरराष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता दी है, जो इसकी वैश्विक महत्ता को दर्शाता है।
बुद्ध पूर्णिमा की तिथि
बुद्ध पूर्णिमा की तिथि हर साल चंद्र कैलेंडर के आधार पर बदलती है। यह वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अप्रैल या मई में आता है। कुछ देशों में, यदि पूर्णिमा दो दिनों तक रहती है, तो उत्सव को दो दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 4-5 मई को मनाई गई थी।
विश्व भर में उत्सव
बुद्ध पूर्णिमा को दुनिया भर में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यहाँ कुछ प्रमुख देशों में इसके उत्सव का विवरण दिया गया है:
भारत: भारत में बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, और लुंबिनी जैसे स्थानों पर विशेष आयोजन होते हैं। लोग मंदिरों में प्रार्थना करते हैं, दीप जलाते हैं, और बुद्ध की मूर्तियों को दूध और सुगंधित जल से स्नान कराते हैं।
श्रीलंका: यहाँ इसे "वेसाक" कहा जाता है और यह एक राष्ट्रीय अवकाश है। घरों और सड़कों को रंग-बिरंगे लालटेन (वेसाक कुडु) से सजाया जाता है। लोग सफेद वस्त्र पहनते हैं और मंदिरों में दान देते हैं।
थाईलैंड: थाईलैंड में इसे "विसाखा बुचा" कहा जाता है। लोग सुबह मंदिरों में प्रार्थना करते हैं और रात में मोमबत्तियों के साथ मंदिरों की परिक्रमा करते हैं।
जापान: जापान में बुद्ध का जन्मदिन 8 अप्रैल को "हाना मात्सुरी" (फूल उत्सव) के रूप में मनाया जाता है। बुद्ध की छोटी मूर्तियों पर मीठी चाय चढ़ाई जाती है।
म्यांमार: यहाँ इसे "कासोन पूर्णिमा" कहा जाता है। लोग बोधि वृक्ष पर पानी डालते हैं और मंदिरों में दीपदान करते हैं।
तिब्बत: तिब्बत में इसे "सागा दावा" कहा जाता है। यह पूरे महीने तक चलने वाला उत्सव है, जिसमें लोग दान-पुण्य करते हैं और मांसाहार से परहेज करते हैं।
परंपराएं और रीति-रिवाज
बुद्ध पूर्णिमा के दिन कई परंपराएं और रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जो बुद्ध की शिक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हैं:
ध्यान और प्रार्थना: लोग मंदिरों में या घर पर ध्यान करते हैं और बुद्ध के उपदेशों का पाठ करते हैं।
दान: गरीबों को भोजन, कपड़े, और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान की जाती हैं।
पशु मुक्ति: पिंजरों में बंद पक्षियों और जानवरों को आजाद करना इस दिन की एक विशेष परंपरा है, जो करुणा का प्रतीक है।
बोधि वृक्ष पूजा: बोधि वृक्ष के नीचे दीप जलाए जाते हैं और उसकी पूजा की जाती है।
उपवास: कई लोग इस दिन मांस, शराब, और अन्य नशीले पदार्थों से परहेज करते हैं।
दीप प्रज्वलन: रात में दीपक जलाकर शांति और प्रकाश का संदेश फैलाया जाता है।
रोचक तथ्य
1. संयुक्त राष्ट्र ने 1999 में वेसाक को अंतरराष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता दी।
2. बुद्ध पूर्णिमा को कई देशों में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है, जैसे भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, और मलेशिया।
3. बोधगया का महाबोधि मंदिर, जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
4. बुद्ध की पहली शिक्षा सारनाथ में "धर्मचक्र प्रवर्तन" के रूप में जानी जाती है।
नैतिक शिक्षाएँ और प्रासंगिकता
"अप्प दीपो भव" (अपना दीपक स्वयं बनो) का संदेश आज के युग में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा देता है।
"सब्बे सत्ता सुखी होन्तु" (सभी प्राणी सुखी हों) का मंत्र वैश्विक भाईचारे की भावना को दर्शाता है।
अंत में
बुद्ध पूर्णिमा एक ऐसा पावन अवसर है जो हमें गौतम बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेने का मौका देता है। यह त्योहार हमें शांति, करुणा, और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है। चाहे आप बौद्ध हों या नहीं, इस दिन का संदेश सार्वभौमिक है - एक बेहतर इंसान बनें और दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाएं। बुद्ध पूर्णिमा का यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख भीतर से आता है, और इसे प्राप्त करने का मार्ग है आत्म-जागरूकता और दूसरों के प्रति प्रेम।
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