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Bhang Ka Rahasya: Traditional Recipe & Plant Secrets – The नशा या आत्मज्ञान का द्वार of Cannabis & Ganja

भांग: नशा या आत्मज्ञान का द्वार?

क्या आपने कभी सोचा है कि एक साधारण सा पौधा, जिसे लोग नशे की चीज मानते हैं, वह आपको ब्रह्मांड की सीमाओं से परे ले जा सकता है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं भांग की - एक ऐसी वनस्पति जो सदियों से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का हिस्सा रही है। आज के समाज में भांग को अक्सर एक नशीले पदार्थ के रूप में देखा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे कभी देवताओं का अमृत कहा जाता था? हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे न केवल औषधि बल्कि साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना था।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भांग का उल्लेख हमारे सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथों में मिलता है। अथर्ववेद, जो चिकित्सा, तंत्र और रहस्यमय शक्तियों का भंडार है, में भांग को एक पवित्र पौधा बताया गया है जो भय, चिंता और रोगों को दूर करता है। इसे केवल एक औषधि नहीं, बल्कि दैवीय आशीर्वाद के रूप में देखा जाता था। ऋग्वेद में जिस 'सोम रस' का बार-बार उल्लेख है, उसे कई विद्वान कैनबिस या उससे संबंधित किसी औषधीय संयोजन से जोड़ते हैं। सोम को अमृत कहा गया था, जिसे देवता स्वयं पीते थे और जिससे अलौकिक शक्तियाँ जागृत होती थीं।

तंत्र ग्रंथों में भी भांग का विशेष महत्व है। कई तांत्रिक अनुष्ठानों में भांग को प्रसाद के रूप में प्रयोग किया जाता था ताकि साधक स्वयं को भौतिक जगत से मुक्त कर चेतना को ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं से जोड़ सकें। स्पष्ट है कि भांग केवल एक वनस्पति नहीं थी, बल्कि एक प्राचीन गूढ़ और आध्यात्मिक उपकरण थी, जिसे समझने के लिए ज्ञान और अनुशासन की आवश्यकता थी।

सांस्कृतिक महत्व

भारतीय संस्कृति में भांग का गहरा संबंध भगवान शिव से है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें से हलाहल विष निकला। उस विष को पीने के बाद शिव की तपस्या की अग्नि को शांत करने के लिए भांग को उनके लिए अर्पित किया गया। कहते हैं कि जब शिव ध्यान में लीन होते हैं, तो भांग के माध्यम से उनकी चेतना और भी गहरी हो जाती है। इसीलिए, आज भी महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर शिव के भक्त भांग को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं - न कि आनंद के लिए, बल्कि आत्मा से जुड़ने के लिए।

आध्यात्मिक साधना में भांग

प्राचीन भारत में साधु और तांत्रिक भांग को ध्यान और साधना के लिए एक महत्वपूर्ण साधन मानते थे। उनके लिए भांग केवल एक पौधा नहीं, बल्कि चेतना के द्वार खोलने वाली एक कुंजी थी। तांत्रिक परंपराओं में भांग को 'काया से माया हटाने का पात्र' कहा गया है। साधक विशेष अवसरों पर, जब ग्रह, तारे और आत्मा सभी एक सीध में आ जाएँ, तब ही भांग का सेवन करते थे। यह कोई रोजमर्रा की आदत नहीं थी; यह चेतना का अभिषेक था।

तंत्र, योग और भक्ति - ये तीनों ही साधना के प्रमुख मार्ग हैं, और इनमें से प्रत्येक में भांग का अपना स्थान रहा है। तंत्र साधना में भांग का उपयोग चेतना की एक नई अवस्था में प्रवेश करने के लिए किया जाता था, जबकि योग में इसे मनोद्वार खोलने के उपकरण के रूप में देखा गया। भक्ति मार्ग में, शिव को भांग अर्पित करने का अर्थ था अपने अहंकार को समर्पित करना।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक विज्ञान भी भांग के प्रभावों को समझने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भांग में मौजूद तत्व, जैसे THC और CBD, हमारे मस्तिष्क के एंडोकैनाबिनोइड सिस्टम पर असर डालते हैं। यह सिस्टम सुख, ध्यान, नींद और अनुभूति को नियंत्रित करता है। कुछ न्यूरोसाइंटिस्ट मानते हैं कि भांग का सूक्ष्म उपयोग पीनियल ग्लैंड (जिसे 'तीसरी आंख' कहा जाता है) को सक्रिय कर सकता है, जो ध्यान और अंतर्ज्ञान का द्वार है।

जब कोई साधक ध्यान की गहराई में जाता है, तो मस्तिष्क की थीटा और डेल्टा तरंगें सक्रिय होती हैं। भांग कुछ हद तक इस अवस्था को सहज बना सकती है, जिससे ध्यान स्वाभाविक रूप से गहरा हो जाता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि हर कोई भांग के माध्यम से समाधि में जा सकता है। इसके लिए अनुशासन, संयम और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

संयमित उपयोग का महत्व

भांग एक शक्तिशाली औजार है, लेकिन इसका प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए। यह अग्नि की तरह है - सही उपयोग से यह तपाएगी, गलत उपयोग से भस्म कर देगी। सभी प्राचीन ग्रंथों में भांग के साथ साधना का उल्लेख विशेष परिस्थितियों, गुरु की देखरेख और संयम के साथ ही किया गया है। यह कोई दैनिक सेवन की वस्तु नहीं है; यह आध्यात्मिक यात्रा का साधन है, और केवल वही इस यात्रा पर जा सकता है जो भीतर उतरने की हिम्मत रखता हो।

भांग एक पारंपरिक भारतीय पेय है, जो भांग के पत्तों से बनाया जाता है और अक्सर होली जैसे त्योहारों पर पीया जाता है। इसे पीने योग्य बनाने के लिए नीचे दी गई सामग्री और विधि का पालन करें।

सामग्री
भांग के पत्ते (ताज़े या सूखे) - 10-15 ग्राम
दूध - 1 लीटर
चीनी - स्वादानुसार (2-3 बड़े चम्मच)
इलायची पाउडर - 1 छोटा चम्मच
सौंफ - 1 छोटा चम्मच
पानी - थोड़ा सा (पत्तों को पीसने के लिए)

विधि
पत्तों की सफाई: सबसे पहले भांग के पत्तों को अच्छी तरह से पानी से धो लें ताकि सारी गंदगी निकल जाए। फिर इन्हें सुखा लें।
पेस्ट बनाएं: भांग के पत्तों को मिक्सर या सिलबट्टे में थोड़े से पानी के साथ पीसकर बारीक पेस्ट बना लें।
दूध गरम करें: एक पैन में दूध को मध्यम आंच पर गरम करें।
मिश्रण तैयार करें: गरम दूध में भांग का पेस्ट डालें और अच्छी तरह से मिलाएं।
स्वाद बढ़ाएं: इसमें चीनी, इलायची पाउडर, और सौंफ डालें। इसे अच्छे से हिलाएं।
उबालें: मिश्रण को 5-10 मिनट तक उबलने दें ताकि सारे स्वाद आपस में मिल जाएं।
छानें: उबालने के बाद मिश्रण को एक महीन छलनी से छान लें ताकि कोई ठोस कण न रहे।
ठंडा करें और परोसें: भांग को ठंडा होने दें और फिर गिलास में डालकर परोसें।

सावधानियां
भांग एक मनोवैज्ञानिक पदार्थ है, इसलिए इसे सावधानी और जिम्मेदारी से पीएं।
पहली बार पीने वाले थोड़ी मात्रा से शुरू करें और इसके प्रभावों को समझें।
भांग का सेवन कई देशों और क्षेत्रों में अवैध है। अपने स्थानीय कानूनों की जांच करें।
स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से बचने के लिए डॉक्टर से सलाह लें।

भांग एक बहुआयामी वनस्पति है, जिसे सदियों से पूजा गया है, गलत समझा गया है, और अब इसे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोणों से पुनः जांचा जा रहा है। यह आत्मज्ञान की ओर ले जाने वाला एक द्वार हो सकता है, लेकिन यह मंजिल नहीं है। असली साधना तो तब शुरू होती है जब साधक इस साधन को पार कर जाता है और अपनी चेतना को स्वतः मुक्त कर लेता है। भांग तब केवल एक स्मृति रह जाती है - उस यात्रा की शुरुआत की, जिसने आत्मा को ब्रह्म से जोड़ दिया।

आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी। अपने विचार कमेंट में जरूर साझा करें और यदि यह आलेख आपको पसंद आया हो, तो इसे दूसरों के साथ भी साझा करें।

Written by - Sagar

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2025-05-11 12:13:41

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