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भांग: एक प्राचीन पौधे की आधुनिक कहानी
भांग, जिसे कैनाबिस के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा पौधा है जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है और यह दुनिया भर में पाया जाता है। यह पौधा अपने बहुमुखी उपयोगों के लिए जाना जाता है, जिसमें औषधीय, औद्योगिक और मनोरंजक उपयोग शामिल हैं। हाल के वर्षों में, भांग को लेकर कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है, जिससे इस प्राचीन पौधे के बारे में जानना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। चिकित्सा में इसके संभावित लाभों से लेकर विभिन्न संस्कृतियों में इसके ऐतिहासिक महत्व तक, भांग ने हमेशा मानव समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भांग का उद्गम और प्रारंभिक इतिहास: यह पौधा कहाँ से आया और कब से इसका उपयोग हो रहा है?
शोध के अनुसार, भांग का उद्गम मध्य एशिया या पश्चिमी चीन में माना जाता है, जहाँ लगभग 12,000 साल पहले अल्ताई पर्वत के पास पालतूकरण के प्रमाण मिले। इसका विकास एकल स्थान तक सीमित नहीं रहा बल्कि मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में हुआ, जिससे प्राचीन समाजों में इसकी महत्ता स्पष्ट होती है। खानाबदोश यात्राओं और व्यापार के माध्यम से इसके बीज यूरेशिया में भी फैल गए।
हजारों वर्षों से भांग का उपयोग औषधीय, आध्यात्मिक, फाइबर और भोजन के स्रोत के रूप में किया जा रहा है। पहला लिखित रिकॉर्ड 2800 ईसा पूर्व का है, जब इसे चीनी सम्राट शेन नुंग की फार्माकोपिया में दर्ज किया गया था। पुरातात्विक प्रमाण, जैसे 750 ईसा पूर्व के एक शमन की कब्र से मिले उच्च THC वाले नमूने और ताइवान एवं नवपाषाण युग के चिह्न, इसके बहुआयामी उपयोग की पुष्टि करते हैं।
प्राचीन हिंदू, असीरियन, यूनानी और रोमन ग्रंथों में भांग के चिकित्सीय उपयोग का उल्लेख मिलता है, जिसमें गठिया, सूजन, दर्द, अवसाद, भूख न लगना तथा अस्थमा जैसी बीमारियों के इलाज का वर्णन है। यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस ने मध्य यूरेशियाई सिथियन के भाप स्नान का जिक्र किया, जबकि वाइकिंग जहाजों में मिले भांग के बीज यूरोप और मध्य पूर्व में इसकी व्यापक उपस्थिति को दर्शाते हैं।
भारतीय ग्रंथों और धर्म में भांग: हमारी प्राचीन पुस्तकों में इसका उल्लेख कैसे मिलता है?
भारतीय ग्रंथों में भांग का उल्लेख इसके प्राचीन और महत्वपूर्ण स्थान को दर्शाता है। सबसे पहले ज्ञात उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है, जो लगभग 2000-1400 ईसा पूर्व लिखा गया था । इसमें भांग को "पांच पवित्र पौधों" में से एक के रूप में बताया गया है जो चिंता से मुक्ति दिलाते हैं। वेदों में इसे "खुशी का स्रोत", "आनंद-दाता" और "मुक्तिदाता" भी कहा गया है । कुछ विद्वानों का मानना है कि वेदों में उल्लिखित प्राचीन औषधि 'सोम' भांग थी, हालांकि यह सिद्धांत विवादित है । वेदों में भांग का उल्लेख इसकी प्राचीन भारतीय संस्कृति में गहरी जड़ें दिखाता है और इसे आध्यात्मिक और औषधीय दोनों तरह से महत्वपूर्ण माना जाता था। "पांच पवित्र पौधों" में से एक के रूप में भांग की स्थिति धार्मिक अनुष्ठानों और प्रथाओं में इसके उपयोग को इंगित करती है।
हिंदू किंवदंती के अनुसार, शिव, कई संप्रदायों के सर्वोच्च देवता, को 'भांग का भगवान' की उपाधि दी गई थी क्योंकि भांग का पौधा उनका पसंदीदा भोजन था । शिव पुराण में गर्मियों के महीनों के दौरान शिव को भांग चढ़ाने का सुझाव दिया गया है । भगवान शिव के साथ भांग का जुड़ाव हिंदू धर्म में इसके महत्व को और बढ़ाता है और धार्मिक प्रथाओं में इसके उपयोग को न्यायोचित ठहराता है। मध्ययुगीन भारत में, सैनिक अक्सर युद्ध में जाने से पहले भांग पीते थे । यह इंगित करता है कि भांग का उपयोग न केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए था, बल्कि साहस और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए भी किया जाता था।
भांग के फायदे: इस पौधे के क्या-क्या लाभ हैं?
प्राचीन काल से भांग का उपयोग दर्द, सूजन, और पाचन समस्याओं सहित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता रहा है । आधुनिक शोध से पता चलता है कि भांग में THC और CBD जैसे Cannabinoids होते हैं, जिनमें संभावित चिकित्सीय लाभ होते हैं । चिकित्सीय उपयोगों में क्रोनिक दर्द से राहत , मतली और उल्टी कम करना (विशेषकर कीमोथेरेपी के दौरान) , भूख में सुधार (विशेषकर HIV/AIDS रोगियों में) , मल्टीपल स्केलेरोसिस से जुड़े मांसपेशियों के ऐंठन को कम करना , कुछ प्रकार के दौरे को नियंत्रित करना (जैसे कि एपिलेप्सी में) , चिंता और अवसाद के लक्षणों को कम करना , नींद में सुधार , ग्लूकोमा में आंखों का दबाव कम करना , और कुछ अध्ययनों में कैंसर कोशिकाओं के विकास को धीमा करने की क्षमता भी शामिल है । भांग में विभिन्न प्रकार की बीमारियों और लक्षणों के इलाज के लिए महत्वपूर्ण चिकित्सीय क्षमता है, जो प्राचीन उपयोग और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान दोनों द्वारा समर्थित है। कैनाबिनोइड्स शरीर के एंडोकैनाबिनोइड सिस्टम के साथ इंटरैक्ट करते हैं, जिससे विभिन्न चिकित्सीय प्रभाव पड़ते हैं ।
भांग के रेशों का उपयोग सदियों से रस्सी, कपड़े, कागज और अन्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता रहा है । भांग के बीज भोजन और तेल का स्रोत हैं । भांग न केवल औषधीय रूप से मूल्यवान है, बल्कि यह एक टिकाऊ और बहुमुखी औद्योगिक फसल भी है।
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि CBD रक्तचाप को कम करने, सूजन को कम करने और नशीली दवाओं और शराब की लत में relapses को रोकने में मदद कर सकता है । यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों के इलाज में भी मदद कर सकता है । CBD, भांग का एक गैर-मनो-सक्रिय घटक, विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए आशाजनक परिणाम दिखाता है।
भांग के नुकसान: इसके उपयोग से क्या समस्याएं हो सकती हैं?
भांग के अल्पकालिक प्रभावों में बिगड़ा हुआ सोच, स्मृति और समन्वय, चिंता, भय, अविश्वास, घबराहट, मतिभ्रम, हृदय गति में वृद्धि, भूख में वृद्धि और शुष्क मुंह शामिल हो सकते हैं । उच्च खुराक में, यह मतिभ्रम, भ्रम और मनोविकृति का कारण बन सकता है । दीर्घकालिक उपयोग से फेफड़ों को नुकसान, श्वसन समस्याएं, स्मृति और सीखने की समस्याएं, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं (जैसे अवसाद, चिंता और मनोविकृति का खतरा बढ़ना), हृदय संबंधी समस्याएं और व्यसन हो सकता है । भांग के उपयोग से जुड़े महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम हैं, खासकर किशोरों, गर्भवती महिलाओं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के इतिहास वाले लोगों के लिए। भांग की शक्ति में वृद्धि (उच्च THC सामग्री) संभावित रूप से नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों के बढ़ते जोखिम में योगदान कर सकती है । गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान भांग का उपयोग बच्चे के विकास के लिए हानिकारक हो सकता है । भांग के उपयोग के बारे में सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा महत्वपूर्ण है, खासकर कमजोर आबादी के लिए।
गाड़ी चलाते समय या मशीनरी चलाते समय भांग का उपयोग दुर्घटनाओं के खतरे को बढ़ा सकता है । भांग का अवैध व्यापार और खेती अपराध से जुड़े हुए हैं । भांग के कानूनी और सामाजिक प्रभाव जटिल हैं और विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं, जिसमें उपयोग की आवृत्ति और मात्रा शामिल है।
भारतीय ऋषि-मुनियों और प्राचीन चिकित्सकों के विचार: हमारे संत और वैद्य भांग के बारे में क्या सोचते थे?
आयुर्वेद में भांग ("विजया" या "सिद्धी" के रूप में जाना जाता है) का उपयोग हजारों वर्षों से औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है । इसका उपयोग दर्द, सूजन, पाचन समस्याओं, नींद संबंधी विकारों, चिंता और अन्य स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता था । चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भांग के औषधीय गुणों का उल्लेख मिलता है । आयुर्वेद भांग को एक मूल्यवान औषधीय जड़ी बूटी के रूप में मान्यता देता है, लेकिन इसके उपयोग को सावधानीपूर्वक और विशिष्ट उद्देश्यों के लिए निर्धारित करता है। आयुर्वेदिक सिद्धांत शरीर में दोषों के संतुलन पर जोर देते हैं, और भांग को विशिष्ट असंतुलन को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । आधुनिक आयुर्वेदिक चिकित्सक अभी भी भांग के चिकित्सीय उपयोगों का पता लगा रहे हैं, खासकर CBD के संदर्भ में ।
कुछ हिंदू संतों और साधुओं ने भांग को आध्यात्मिक अभ्यास के एक भाग के रूप में इस्तेमाल किया है, खासकर भगवान शिव की पूजा में । वे मानते हैं कि यह ध्यान और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाने में मदद करता है । हालांकि, सभी संत भांग के उपयोग का समर्थन नहीं करते हैं, और कुछ इसे आध्यात्मिक प्रगति के लिए हानिकारक मानते हैं । भारतीय संतों और साधुओं के बीच भांग के उपयोग पर अलग-अलग राय आध्यात्मिक अभ्यास और व्यक्तिगत मान्यताओं में विविधता को दर्शाती है।
गांजा
भांग और गांजा दोनों ही कैनाबिस (भांग) पौधे से प्राप्त होते हैं, लेकिन भांग पत्तियों और बीजों से तैयार की जाती है जबकि गांजा पौधे की फूलों या फलनशील शीर्षों से बनता है । भांग पारंपरिक रूप से खाद्य या पेय के रूप में सेवन की जाती है और इसमें THC की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है । गांजा अत्यधिक प्रभावी होता है, इसे मुख्यतः सुखाने के बाद धूम्रपान या वेपोराइज़ या चिलम में प्रयोग किया जाता है, और इसमें THC की मात्रा अधिक होती है । दोनों का उपयोग धार्मिक, सामाजिक और चिकित्सा दोनों ही उद्देश्यों के लिए होता है, लेकिन उनकी तैयारी, कानूनी स्थिति एवं प्रभावों में महत्वपूर्ण अंतर हैं
मुख्य अंतर (Key Differences)
पहलू | भांग (Bhang) | गांजा (Ganja) |
---|---|---|
स्रोत | पत्तियाँ और बीज | फूल/शीर्ष (टॉप्स) |
THC स्तर | कम से मध्यम | अधिक |
तैयारी | पीय पदार्थ/खाद्य (लस्सी, थंडाई, हलवा) | सुखाकर धूम्रपान/वेपोराइज़ेशन |
उपयोग | धार्मिक, सांस्कृतिक, चिकित्सीय | मनोरंजक, चिकित्सीय |
कानूनी स्थिति | कुछ राज्यों में विधिवत अनुमत | राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित |
कानूनी स्थिति (भारत)
NDPS अधिनियम, 1985: गंजा (पुष्प एवं फलनशील शीर्ष) का उत्पादन, बिक्री, खरीद एवं उपयोग यकायक प्रतिबंधित है, दंडनीय अपराध है ।
राज्य-स्तर के नियम: कुछ राज्यों ने भांग (पत्तियाँ एवं बीज) के उपयोग पर शिथिल नियम बनाए हैं, परंतु गंजा पूर्णतः अपराध के दायरे में आता है ।
भारत में केवल दो राज्य में भांग पूरी तरह से बन है
1. असम: Assam Ganja and Bhang Prohibition Act, 1958
2 . महाराष्ट्र: Bombay Prohibition Act, 1949 (Section 66(1)(b))
भारत के इन दो राज्यों के बाद सभी राज्य में कुछ सर्तो के साथ भांग का नियंत्रित रूप से उत्पादन व बिक्री संभव है
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