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Bhojpuri Nirgun: इतिहास, महत्व और आध्यात्मिकता की पूरी जानकारी

भोजपुरी निर्गुण गायन परंपरा: आदि से आज तक

भोजपुरी निर्गुण गायन भारतीय आध्यात्मिक और सांगीतिक परंपरा का एक अमूल्य हिस्सा है जो सदियों से लोगों के दिलों में गहरी जगह बनाए हुए है। यह गायन शैली ना सिर्फ संगीत का एक रूप है बल्कि यह आध्यात्मिक ज्ञान, दर्शन और जीवन मूल्यों का भी वाहक है। निर्गुण गायन परंपरा में निराकार ब्रह्म की अराधना की जाती है और इसमें जीवात्मा-परमात्मा के संबंध को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है। इस लेख में हम भोजपुरी निर्गुण गायन की उत्पत्ति, विकास, प्रमुख गायकों, इसके सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व और वर्तमान स्थिति का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

निर्गुण की अवधारणा और दार्शनिक पृष्ठभूमि

निर्गुण शब्द का अर्थ है 'गुणों से रहित' या 'गुणों से परे'। यह उस परम तत्व, परमात्मा या ब्रह्म का बोधक है जिसे किसी आकार, रूप या विशेषताओं में बांधा नहीं जा सकता। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक 'कबीर' में निर्गुण की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि निर्गुण शब्द अपने पारिभाषिक रूप में सत्व आदि गुणों से रहित या उनसे परे समझी जाने वाली किसी ऐसी अनिर्वचनीय सत्ता का बोधक है, जिसे बहुधा परमतत्व, परमात्मा अथवा ब्रह्म जैसी संज्ञाओं से सम्बोधित किया जाता है।
निर्गुण की अवधारणा का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों में भी मिलता है। 'श्वेताश्वर उपनिषद्' में उस अद्वितीय 'देव' (परमात्मा) का एक विशेषण के रूप में निर्गुण शब्द का प्रयोग किया गया है। भगवद्गीता में भी श्री कृष्ण ने कहा है कि परमात्मा में सब इंद्रियों के गुणों का आभास है, पर उसके पास कोई इंद्रिय नहीं है। वह सबसे असक्त रहकर, अर्थात अलग होकर भी सबका पालन करता है और निर्गुण होने पर भी गुणों का उपभोग किया करता है।

भारतीय दर्शन में निर्गुण का स्थान

भारतीय दर्शन में निर्गुण की अवधारणा अद्वैतवाद से गहरे जुड़ी हुई है। अद्वैत दर्शन के अनुसार, परम सत्य एक है और वही ब्रह्म है जो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी है। हिंदू दर्शन के अलावा, सूफी मत में भी निराकार परमात्मा की अवधारणा मिलती है। इन दोनों परंपराओं के समन्वय से भारत में निर्गुण भक्ति आंदोलन का उदय हुआ, जिसमें कबीर, रैदास, दादू जैसे संतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भोजपुरी निर्गुण गायन का इतिहास और उत्पत्ति

15वीं सदी में कबीर ने निर्गुण भजनों के माध्यम से सामाजिक शुद्धि तथा दार्शनिक संदेशों का प्रचार किया, जहाँ भगवान के निराकार स्वरूप की उपासना की गई 
कबीर के अनेक भजन सीधे भोजपुरी में रचे गए, जैसे “मोही हिरा हराइल बा कीचड़ में,” जो शुद्ध भोजपुरी का उत्कृष्ट उदाहरण है 
धर्मदास, दरिया साहेब और लछिमी साखी जैसे संतों ने भी निरगुण शैली में स्थानीय समाज और अलौकिक तत्वों का समन्वय करते हुए रचनाएँ कीं 

औपनिवेशिक काल में भोजपुरी निर्गुण का विस्तार
जब ब्रिटिश उपनिवेशों में भोजपुरी भाषी लोगों को बागान मजदूरों के रूप में ले जाया गया, तब भोजपुरी संगीत का वैश्वीकरण हुआ और यह मॉरीशस, नीदरलैंड्स और कैरिबियन द्वीपों जैसे देशों में फैल गया। वहां यह स्थानीय लोक या आधुनिक संगीत रूपों के साथ मिश्रित हो गया, जिससे भोजपुरी संगीत के विभिन्न रूपों का जन्म हुआ, जैसे सूरीनाम में बैठक गाना, त्रिनिदाद और टोबैगो में चटनी संगीत और मॉरीशस में गीत गवई।

भोजपुरी निर्गुण के मुख्य तत्व और विशेषताएं
निर्गुण गीत मूलतः वे गीत हैं जिनमें जीवात्मा-परमात्मा सम्बन्धी बातें प्रतीकात्मक रूप से कही गई हैं। ये गीत 'निर्गुन' नाम से आम जनमानस में आज भी प्रसिद्ध हैं। ये निर्गुण गीत निर्गुण संत सम्प्रदाय की भावना पर ही आधारित हैं।

संगीतात्मक पहलू
भोजपुरी निर्गुण गायन की अपनी विशिष्ट संगीतात्मक शैली है। इसमें सरल वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जैसे खंजरी, ढोलक और हारमोनियम। गायन शैली गहन और भावपूर्ण होती है, जिसमें स्वरों का उतार-चढ़ाव आध्यात्मिक रस को और बढ़ा देता है।

साहित्यिक विशेषताएं
भोजपुरी निर्गुण गीतों की भाषा सरल और सीधी होती है, जिसे आम जनता आसानी से समझ सके। इन गीतों में अक्सर प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें जीवन, मृत्यु, आत्मा, परमात्मा, माया और मोक्ष जैसे गहन दार्शनिक विषयों को रूपकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

जाति आधारित
भोजपुरी क्षेत्र में विभिन्न जातियों के अपने-अपने लोक गीत हैं। बिरहा अहीर या यादव जाति से संबंधित है, कुछ गीत दुसाध जाति से और कहरवा कहारों से संबंधित हैं।

मौसम आधारित
कई गीत किसी विशेष मौसम या महीने में गाए जाते हैं, जैसे सावन में कजरी, फागुन में फगुआ आदि।

प्रमुख कवि एवं कलाकार

कबीर के अतिरिक्त आधुनिक लोकगायक सरवनंद ठाकुर एवं पंकज पुरी ने पारंपरिक निरगुण भजनों को ऑडियो एवं मंच प्रस्तुतियों में लोकप्रिय बनाया 
मदन राय और भरत शर्मा व्यास ने भी पुराने भजनों की रिकॉर्डिंग और यूट्यूब के माध्यम से निरगुण परंपरा को जन-जन तक पहुँचाया है 

निर्गुण गीतों के उदाहरण और अर्थ

यहां कुछ मशहूर भोजपुरी निर्गुण गीतों के अंश और उनके अर्थ दिए गए हैं:

"कौन ठगवा नगरिया लूटल हो"
रचनाकार: कबीर
अर्थ: इस गीत में कबीर जीवन की क्षणभंगुरता और माया के भ्रम को दर्शाते हैं। वे पूछते हैं कि इस संसार को किसने लूटा, जो सब कुछ छोड़कर जाना पड़ता है।

"जा के मन में राम बसें"
अर्थ: यह गीत भगवान राम की भक्ति और उनके प्रति पूरे समर्पण की बात करता है। यह कहता है कि जिसके मन में राम बसते हैं, उसे कोई डर नहीं होता।

आधुनिक काल में भोजपुरी निर्गुण
भोजपुरी संगीत का आधुनिक रूप 1950 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों से विकसित हुआ। बाद में पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ाइबो' की रिलीज के बाद भोजपुरी लोक गीतों का आधुनिकीकरण हुआ और आधुनिक भोजपुरी संगीत की एक नई पीढ़ी का जन्म हुआ।

वैश्विक प्रभाव और स्वरूप
आज भोजपुरी निर्गुण गायन भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों के अलावा नेपाल, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, जमैका, नीदरलैंड्स, मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में भी लोकप्रिय है।

निर्गुण गायन का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व
लोक संस्कृति किसी भी देश, समाज या व्यक्ति की आत्मा होती है। भारतीय समाज की बात करें तो यहाँ का लोकजीवन मौखिक एवं आडंबररहित साहित्यों की विरासत वाला है। लोक दरअसल अंतरात्मा की आवाज़ है जो जनता के लिए होती है, और जनता की भाषा में होती है। यह किसी भी प्रकार के व्याकरण, अलंकरण से मुक्त होती है। इसी वजह से जब-जब जनता मुश्किल में होती है, जब सारे हथियार बेकार पड़ जाते हैं तब समाज के बीच लोकसंस्कृति का ही रूप क्रांति में ढलता है और सभी की नसों में दौड़ने लगता है।

जनचेतना और सामाजिक परिवर्तन
निर्गुण गायन ने समाज में जागरूकता फैलाने और सामाजिक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके माध्यम से संत कवियों ने धार्मिक पाखंड, जातिगत भेदभाव और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। भोजपुरी क्षेत्र के लोग भोजपुरी मुहावरों का प्रयोग करते हैं, जैसे "मुअले प बैद अइलें, मुँह लेके घरे गइलैं" (मरीज के जीते जी वैद्य आये तो कुछ कर सकता है, मरने के बाद वह आकर क्या करेगा)। ऐसे मुहावरे लोगों को समय पर कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

निर्गुण गायन का वर्तमान स्वरूप और चुनौतियां
आज के डिजिटल युग में भोजपुरी निर्गुण गायन नए रूपों में सामने आ रहा है। आधुनिक संगीत निर्देशक परंपरागत निर्गुण गीतों को नए अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं। हालांकि, इसके साथ ही कई चुनौतियां भी हैं:

डिजिटल पहुंच और प्रसार
इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से भोजपुरी निर्गुण गायन को अब वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया जा सकता है। Youtube, Bhojpury.in  जैसे प्लेटफॉर्म इसके प्रसार में मदद कर रहे हैं।

परंपरा का संरक्षण
आधुनिकता के इस दौर में परंपरागत निर्गुण गायन शैली के संरक्षण की चुनौती है। नई पीढ़ी के कलाकारों और श्रोताओं में इस विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष
भोजपुरी निर्गुण गायन भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक अमूल्य हिस्सा है, जो सदियों से लोगों के जीवन को प्रभावित करता आया है। यह एक ऐसी कला है जो आध्यात्मिकता, दर्शन और संगीत का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है। भोजपुरी क्षेत्र से उत्पन्न होकर यह विश्व के कई हिस्सों में फैल गई है और विभिन्न स्थानीय संस्कृतियों के साथ मिलकर नए रूप धारण कर चुकी है।

आज के समय में जब दुनिया तेजी से बदल रही है, भोजपुरी निर्गुण गायन परंपरा का संरक्षण और प्रचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करेगा बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में भी मदद करेगा। साथ ही, इस अमूल्य कला को नए रूपों में विकसित करके हम इसे और अधिक समृद्ध बना सकते हैं।

Written by - Sagar

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2025-04-19 11:15:41

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