अरविंद अकेला (कल्लू)
जिन्हें कल्लू और प्यार से कलुआ भी कहा जाता है, कैसे संघर्ष, मेहनत और जुनून से भोजपुरी मनोरंजन जगत में अपनी पहचान बनाई।
बचपन और परिवार की कहानियाँ
26 जुलाई 1997 को बिहार के बक्सर में जन्मे अरविंद ने एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में अपनी शुरूआत की। पिता चुनमुनजी और (माता किरण देवी) के संगीत से प्रेरित होकर उन्होंने संगीत के प्रति अपना रुझान विकसित किया।
गांव में संगीत की पहली झलक
बचपन में ही अरविंद ने गांव के विभिन्न मंचों पर गायन किया। पिता के साथ स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लेने से उन्हें गायकी का पहला अनुभव मिला
पहला कदम: गवनवा कहिया ले जईबा
इस एलबम की रिलीज के होते ही रातों-रात फेमस हो गए थे उनकी उम्र महज 9 साल थी
हिट गाना मुर्गा बेचैन बाटे
"मुर्गा बेचैन बाटे" गाना रातोंरात लोकप्रिय हो गया।
फिल्मों में पहला कदम: दिल भईल दीवाना
केवल गायकी तक सीमित न रहकर अरविंद ने भोजपुरी फिल्म "दिल भईल दीवाना" से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की
क्यों बने कल्लू और फिर कलुआ
अरविंद का असली नाम अरविंद अकेला है, पर दोस्तों और परिवार में कल्लू
के नाम से जाना जाता है। बाद में फैंस के प्यार से "कलुआ" नाम भी प्रचलित हो गया
गरीबी से सफलता की ओर
अरविंद का बचपन आर्थिक चुनौतियों से भरा रहा। सीमित संसाधनों और गरीबी के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और जुनून से अपनी पहचान बनाई
डिजिटल दुनिया में लोकप्रियता
इंस्टाग्राम: 1 मिलियन से अधिक फॉलोअर्स , यूट्यूब चैनल: उनके गानों के विडियो लाखों व्यूज क्रॉस करते हैं, नेट वर्थ: अनुमानित 4-5 करोड़ रुपये (2023 तक)
कम ज्ञात तथ्य
आस्था: भगवान गणेश के भक्त ,पालतू: एक कुत्ता पालते हैं ,समाज सेवा: स्थानीय स्कूलों में चीफ गेस्ट के रूप में जाते हैं ।